खेती में अच्छी पैदावार के लिए किसान की मेहनत, खाद, बीज और सिंचाई के साथ-साथ उसमें काम में लिए गए उपकरणों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. क्योंकि खेती में यंत्रीकरण से उत्पादन एवं उत्पादकता दोनों में बढ़ोतरी होती है. लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने से ज्यादातर किसान महंगे उपकरण खरीद नहीं पाता. वहीं, बाजार से उपकरण काफी महंगे किराये पर मिलते हैं. गांवों में सीमित संख्या में उपकरण होने के कारण किसान को समय पर नहीं मिल पाते. ऐसे किसानों को इस समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए राज्य सरकार की ओर से क्रय-विक्रय सहकारी समितियों (केवीएसएस), ग्राम सेवा सहकारी समिति (जीएसएस) और कृषक उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से कस्टम हायरिंग केन्द्र बनाए जा रहे हैं.
जयपुर जिले के धानक्या गांव के रहने वाले किसान भरोसी जाट ने पिछले दिनों कस्टम हायरिंग केंद्र से फसल निकालने के लिए थ्रेशर किराये पर लिया. उन्हें इसका किराया 900 रुपये प्रति घंटे की दर से चुकाया. भरोसी बताते हैं, “अगर मैं बाजार में किसी का निजी थ्रेशर लाता तो उसकी रेट 1300 रुपये प्रति घंटा चल रही है.
कस्टम हायरिंग सेंटर से थ्रेशर मिलने से मुझे 800 रुपये की बचत हुई. क्योंकि दो घंटे थ्रेसर चला. इसी तरह कालवाड़ स्वरूप कुमार कहते हैं कि वे खेत में जुताई, बुवाई और फसल कटाई के लिए कस्टम हायरिंग केंद्र से ही कृषि यंत्र किराए पर लेते हैं. ये बाजार दर से कम किराये पर मिल जाते हैं. इससे काफी पैसा बचता है.
कस्टम हायरिंग केन्द्रों को कृषि विभाग की ओर से दी गई सब्सिडी के माध्यम से सहकारिता विभाग कृषि यंत्रों की खरीद के लिए आठ लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता देता है. इन केंद्रों पर ट्रैक्टर, थ्रेशर, रोटावेटर, रीपर, सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल जैसे उन्नत कृषि यंत्रों की खरीद की जाती है. किसान अपनी जरूरत के वक्त इन केन्द्रों से कृषि यंत्रों को किराये पर लेते हैं तथा खेती में इस्तेमाल करते हैं.
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इस सुविधा से किसानों पर आर्थिक भार नहीं पड़ता और उनका काम कम किराये में हो जाता है. साथ ही उन्हें उन्नत तकनीकों को काम में लेकर कृषि करना आसान हो जाता है. अच्छे और नई तकनीक से बने कृषि यंत्रों के उपयोग से फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है और इससे किसानों की आय बढ़ती है. इन केन्द्रों के माध्यम से लघु एवं सीमांत कृषकों को कम दर पर कृषि यंत्र किराए पर मिल रहे हैं. वहीं, सहकारी समितियां भी मजबूत हो रही हैं.
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