देश में खेती-किसानी, पशुपालन और मछलीपालन को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) में अब बड़े बदलाव की तैयारी हो रही है. इसके लिए एक हाई लेवल कमेटी का गठन किया गया है जो 24 मई तक अपनी रिपोर्ट देगी. आईसीएआर के अधीन 111 रिसर्च संस्थान और 71 कृषि विश्वविद्यालय हैं. इसे दुनिया के सबसे बड़े राष्ट्रीय कृषि सिस्टम में गिना जाता है. बताया जा रहा है कि इसका पुनर्गठन करके इसे छोटा करने की योजना है. सरकार इसे तर्कसंगत बनाना चाहती है. हालांकि, आईसीएआर में बदलाव के लिए यह कोई पहली बार कोशिश नहीं हो रही है. पहले भी कई बड़े वैज्ञानिकों की कमेटियां बन चुकी हैं. उनकी रिपोर्ट पर तो कोई काम हुआ नहीं और अब एक और नई कमेटी बना दी गई. अब जो नई कमेटी बनी है उसमें कोई बड़ा वैज्ञानिक नहीं है और इतने बड़े सिस्टम में बदलाव के लिए उसे रिपोर्ट सिर्फ 30 दिन में देनी है.
आईसीएआर में बदलाव के लिए इससे पहले मशहूर वैज्ञानिक डॉ. आरए माशेलकर और हरित क्रांति के जनक डॉ. एमएस स्वामीनाथन जैसे नामचीन लोगों की अध्यक्षता में भी कमेटियां बनी थीं. कुछ साल पहले डॉ. रामासामी समिति ने भी अपनी सिफारिशें दी थीं. हालांकि, इन कमेटियों की रिपोर्ट पर कोई एक्शन नहीं लिया गया. देखना यह है कि नई कमेटी की रिपोर्ट लागू की जाएगी या फिर उसे भी ठंडे बस्ते में बंद कर दिया जाएगा. नई कमेटी का गठन 24 अप्रैल को हुआ है.
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केंद्रीय कृषि मंत्रालय के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) एक स्वायत्तशासी संस्था है. रॉयल कमीशन की कृषि पर रिपोर्ट पर सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के तहत इसे रजिस्टर्ड किया गया था. करीब 94 साल पहले 16 जुलाई 1929 को इसकी स्थापना हुई थी. तब इस सोसाइटी का नाम इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च था. इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है.
बताया गया है कि अब इसका पुनर्गठन करके इसका आकार छोटा करने की तैयारी है. हालांकि, आधिकारिक तौर पर इसे लेकर कोई कुछ नहीं बोल रहा है. कमेटी क्या करेगी? इसके बारे में कहा गया है कि कमेटी आईसीएआर को तर्कसंगत और राइट साइजिंग बनाने के लिए सिफारिशें देगी. ताकि इसे एक डायनामिक, लीन और एफिशिएंट ऑर्गनाइजेशन बनाया जा सके. इसमें वैज्ञानिक संवर्ग के कुल स्वीकृत पदों की संख्या 6586 है. लेकिन करीब 20 फीसदी पद खाली बताए जाते हैं.
आईसीएआर को तर्कसंगत बनाने के लिए जो कमेटी बनाई गई है उनमें डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड एजुकेशन (डेअर) के अतिरिक्त सचिव और सेक्रेटरी आईसीएआर को चेयरमैन बनाया गया है. कुल 11 सदस्य हैं. नीति आयोग में सीनियर एग्रीकल्चर एडवाइजर डॉ. नीलम पटेल और कृषि अर्थशास्त्री डॉ. पीके जोशी को भी कमेटी में लिया गया है. नीलम पटेल पहले भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में प्रिंसिपल साइंटिस्ट रह चुकी हैं. इसके छह सदस्य प्रशासनिक अधिकारी हैं, जो संयुक्त सचिव और अतिरिक्त सचिव स्तर के हैं.
अन्य सदस्यों में आईसीएआर के फाइनेंशियल एडवाइजर, आईसीएआर के डीडीजी (फिशरीज), डीडीजी (एनआरएम) और आएडीजी (टीसी) शामिल हैं. कृषि, पशुपालन और मछलीपालन विभाग के प्रतिनिधि भी इसमें शामिल हैं. आईसीएआर के संयुक्त सचिव (प्रशासन) कमेटी के सदस्य सचिव बनाये गए हैं.
आईसीएआर में क्या रिसर्च हो रहा है, क्या ग्राउंड पर उसका कोई असर है? क्या सिर्फ पेपर बनाने के लिए रिसर्च हो रहा है या किसानों के लिए भी इसमें गंभीरता से कोई काम हो रहा है? किसानों की इनकम बढ़ानी है इसे लेकर कोई ठोस काम नहीं दिखता. आईसीएआर के कई संस्थानों में प्राइवेट कंपनियों का बोलबाला है.आईसीएआर टेक्नोनॉजी बनाकर उसे निजी कंपनियों को बेच देता है. जबकि वो खुद भी किसानों तक टेक्नोलॉजी पहुंचाने में सक्षम है. किसानों की बजाय कंपनियों पर ज्यादा फोकस है.
आईसीएआर के तमाम डायरेक्टर और वैज्ञानिक बड़ी-बड़ी एग्रो कंपनियों के मंच पर मिल जाएंगे. जाहिर है कि ये कंपनियां अपना हित साधने के लिए इनका इस्तेमाल करती हैं. यह भी गौर करने वाली बात है कि पिछले कई साल में कोई बहुत बड़ा रिसर्च निकलकर नहीं आया है. जीएम मस्टर्ड भी दिल्ली यूनिवर्सिटी की देन है, उसमें आईसीएआर सिस्टम का कोई योगदान नहीं है.
दावा है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देश में हरित क्रांति लाने और उसके बाद कृषि में लगातार विकास करने में अपनी अहम भूमिका निभाई है. खासतौर पर अपनी रिसर्च और टेक्नोलॉजी से. वर्ष 1950-51 से 2017-2018 तक खाद्यान्न का उत्पादन 5.6 गुणा, बागवानी फसलों का 10.5 गुणा, मछली उत्पादन 16.8 गुणा, दूध उत्पादन 10.4 गुणा और अंडा उत्पादन 10.4 गुणा बढ़ा है. कहीं बदलाव करने या इसका आकार छोटा करने से अच्छा होने की बजाय सिस्टम और खराब न हो जाए.
आईसीएआर के पुराने सिस्टम को सपोर्ट करने वालों का कहना है कि भारत मल्टी एग्रो क्लाइमेटिक जोन वाला देश है. यहां विभिन्न फसलों पर रिसर्च के लिए अलग इंस्टीट्यूट है. जिसके जरिए ही हमें हरित क्रांति से लेकर बागवानी, मछलीपालन और दुग्ध उत्पादन में बड़ी कामयाबी मिली है. अगर आईसीएआर का राइट साइजिंग संस्थानों को बंद करना या एक दूसरे में मिलाना है तो यह देश के कृषि क्षेत्र के लिए हितकर नहीं होगा. अब देखना यह है कि नई कमेटी क्या रिपोर्ट देगी और उस पर आईसीएआर में क्या बदलाव होगा.
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