पंजाब में संगरूर के किसानों ने पराली को लेकर एक ऐसी तरकीब निकाली है जिससे पूरा सरकारी महकमा सोच में पड़ गया है. दरअसल, गेहूं की ठूंठ जलाने के बाद किसान धान की तैयारी कर रहे हैं. लेकिन फसल अवशेष या पराली को जलाने पर प्रतिबंध है. ऐसे में किसानों ने पराली को जलाना बंद तो नहीं किया, लेकिन उसके लिए एक नई तरकीब निकाल ली. किसान गेहूं के बचे हुए अवशेष या भूसा को खेत में ही जला देते हैं. फिर सरकारी कार्रवाई से बचने के लिए और राख को खत्म करने के लिए वे पूरे खेत में पानी भर देते हैं. इससे सरकारी महकमा सोच में पड़ गया है क्योंकि अभी पानी बचाने का अभियान चल रहा है. मगर खेत में पानी भरने के लिए पानी की बहुत जरूरत होती है और किसान इसमें पानी की बहुत बर्बादी करते हैं.
पंजाब सरकार एक तरफ प्रदेश में पानी और बिजली बचाने की मुहिम चला रही है. इसके लिए कई तरह के सरकारी अभियान चलाए जा रहे हैं. दूसरी ओर किसान खेतों में गेहूं के अवशेष जलाकर पूरे खेत में पानी भर देते हैं. खेत में पानी भरने के लिए पानी की बहुत जरूरत होती है और इसका दबाव ट्यूबवेल पर भी पड़ता है. ट्यूबवेल चूंकि बिजली से चलता है, इसलिए ऊर्जा बचाने की मुहिम में एक तरह से पलीता लग रहा है.
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संगरूर के बाहरी इलाके के एक किसान ने 'दि ट्रिब्यून' से कहा, मैंने अपने पूरे खेत में पानी भर दिया है और इसमें कोई बुराई नहीं है. फिर अगले महीने भी ऐसा ही करना है क्योंकि धान की रोपनी होगी. धान रोपाई से पहले भी पूरे खेत में पानी भरा जाएगा. एक और किसान गुरमीत सिंह कहते हैं, मैं धान की फसल लगाने की तैयारी कर रहा हूं. मैंने गेहूं के अवशेष को खेत में ही जला दिया क्योंकि दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था.
संगरूर के किसान राजबीर सिंह ने कहा, धान की खेती को लेकर अभी राज्य सरकार की तरफ से कोई एडवाइजरी जारी नहीं की गई है. उससे पहले ही किसानों ने धान की तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए किसान खेतों में अवशेष जलाते हैं और उसे छिपाने के लिए पानी भर देते हैं. पानी का बेजां खर्च सरकारी विभागों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है क्योंकि अभी पूरी कोशिश पानी बचाने पर है. दूसरी ओर किसान सरकारी कार्रवाई से बचने के लिए और पराली की राख छिपाने के लिए खेतों में पानी भरते हैं.
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संगरूर के चीफ एग्रीकल्चर ऑफिसर हरबंस सिंह कहते हैं, खेतों में पानी भरने का मुद्दा हमारी जानकारी में था और वे किसानों को इस बारे में सलाह दे रहे हैं. हरबंस सिंह ने कहा, जली पराली को छिपाने के लिए किसान खेतों में पानी भर रहे हैं. इससे पानी और बिजली दोनों का बेतहाशा खर्च बढ़ रहा है. हालांकि किसानों को धान रोपनी के नाम पर खेतों में पानी भरने की बिल्कुल जरूरत नहीं है क्योंकि 10 जून के बाद ही रोपनी का काम शुरू होगा.
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