भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से व्यापार डील की बातचीत चल रही थी, लेकिन आखिरकार यह डील टूट गई. मुख्य वजह रही भारत का डेयरी और कृषि क्षेत्रों में झुकने से इंकार. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 1 अगस्त 2025 से भारत के सभी निर्यात पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया है. इसके अलावा, अलग से पेनल्टी टैक्स भी लिया जाएगा. आइए सरल भाषा में समझते हैं कि क्यों यह डील नहीं हो पाई, और इसका भारत पर क्या असर होगा.
ट्रंप का कहना है कि भारत अमेरिका के सामान पर भारी टैरिफ (80% तक) लगाता है, जबकि अमेरिका भारतीय सामान पर सिर्फ 0% से 3% तक टैक्स लेता है. ट्रंप को यह असंतुलन मंजूर नहीं है. इसलिए उन्होंने रेसिप्रोकल टैरिफ की नीति अपनाई है, यानी जितना टैक्स भारत उनके सामान पर लगाएगा, उतना ही अमेरिका भी भारतीय सामान पर लगाएगा.
अमेरिका चाहता था कि उसकी डेयरी कंपनियों को भारत में एंट्री मिले. लेकिन भारत ने साफ मना कर दिया. वजह थी, नॉन वेजिटेरियन मिल्क. अमेरिका में गायों को ऐसे चारे खिलाए जाते हैं जिनमें मछली, सूअर, चिकन, यहां तक कि कुत्तों और बिल्लियों के अवशेष भी होते हैं. भारत में गाय को मां का दर्जा दिया जाता है, इसलिए ऐसा दूध भारतीय संस्कृति और आस्था के खिलाफ माना गया. इसी कारण भारत ने डेयरी डील को मंजूरी नहीं दी.
ट्रंप चाहते हैं कि भारत अमेरिका से आने वाले जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) सोयाबीन और मक्का खरीदने की इजाजत दे. इसके अलावा वे चाहते हैं कि भारत अमेरिका से आने वाले बाकी कृषि उत्पादों पर लगने वाला टैक्स या तो हटा दे या बहुत कम कर दे, जैसे अमेरिका में होता है. लेकिन भारत सरकार ऐसा करने के हक में नहीं है, क्योंकि इससे हमारे किसानों को नुकसान हो सकता है. अगर विदेश से सस्ते दाम पर अनाज आने लगेगा, तो हमारे किसानों को अपनी फसल बेचने में मुश्किल होगी और उन्हें कम पैसा मिलेगा या नुकसान हो सकता है. भारत सरकार अमेरिका के जीएम सोयाबीन और मक्का को खरीदने के लिए तैयार नहीं है. इसकी बड़ी वजह यह है कि भारत में फिलहाल कपास को छोड़कर किसी भी जीएम फसल को उगाने की इजाजत नहीं है. इसलिए इन्हें खाने या मंगाने की इजाजत देने का सवाल ही नहीं उठता. साथ ही, भारत में जो किसान सोयाबीन और मक्का उगाते हैं, उन्हें पहले से ही उनकी फसल की अच्छी कीमत नहीं मिल रही है. ऐसे में सरकार नहीं चाहती कि विदेश से माल मंगाकर अपने किसानों को और नुकसान पहुंचाए.
ट्रंप चाहते थे कि भारत अमेरिका के सेब, ड्रायफ्रूट्स, बादाम, अखरोट आदि पर टैरिफ कम करे. लेकिन भारत ने कहा कि इससे देश के किसानों को भारी नुकसान होगा. उदाहरण के लिए, अगर अमेरिका का वाशिंगटन एप्पल ₹200 किलो में मिलेगा और कश्मीर का सेब 250 रुपये किलो में, तो लोग सस्ता विदेशी सेब खरीदेंगे. इससे कश्मीरी किसान नुकसान में आ जाएंगे. भारत ने किसानों की रोजगार और जीवन यापन की रक्षा को प्राथमिकता दी.
डील टूटने की एक और वजह थी डेटा लोकलाइजेशन. अमेरिका चाहता था कि कंपनियों का डेटा अमेरिका में ही स्टोर किया जाए, जबकि भारत चाहता है कि भारतीय नागरिकों का डेटा भारत में ही स्टोर हो. यह भारत की डिजिटल सुरक्षा और निजता नीति से जुड़ा मसला है, जिस पर झुकना भारत के लिए संभव नहीं था.
वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने अमेरिका को 4.2 लाख करोड़ रुपये का निर्यात किया, जबकि अमेरिका ने भारत को 3.49 लाख करोड़ रुपये का सामान बेचा. यानी अमेरिका को भारत के साथ करीब 71,000 करोड़ रुपये का ट्रेड डेफिसिट हुआ.
अब जब अमेरिका भारत के सामान पर 25% टैरिफ लगाएगा, तो भारतीय प्रोडक्ट महंगे हो जाएंगे. इससे उनकी अमेरिका में मांग घटेगी, जिससे निर्यात घटेगा, और भारत के व्यापारी, किसान, मज़दूरों को नुकसान होगा.
अगर भारत का कोई उत्पाद अमेरिका में 100 रुपये में बिकता था, तो अब उस पर 25% टैरिफ के बाद उसकी कीमत 125 रुपये हो जाएगी. और अगर ऊपर से पेनल्टी भी लगी, तो कीमत और बढ़ेगी. कीमत बढ़ेगी तो मांग घटेगी, मांग घटेगी तो निर्यात घटेगा, और निर्यात घटेगा तो भारत के व्यापारियों, किसानों और कामगारों की आमदनी पर असर पड़ेगा.
भारत ने डेयरी और किसानों से जुड़े मामलों पर संवेदनशील रुख अपनाया और किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया. भले ही इसके चलते व्यापार डील नहीं हो पाई, लेकिन भारत ने अपनी संस्कृति और किसानों की रक्षा को प्राथमिकता दी.
अब देखना होगा कि यह टैरिफ युद्ध कितना लंबा चलता है और भारत इसमें क्या रणनीति अपनाता है. एक बात साफ है- भारत अपने मूल्यों से समझौता नहीं करेगा, चाहे उसके बदले में व्यापार घाटा ही क्यों न हो.
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