दिल्ली में शुक्रवार शाम को एचएस सुरजीत भवन में SKM महासभा (General Body) की बैठक हुई. इस महासभा में 12 राज्यों के 73 किसान संगठनों के 165 प्रतिनिधियों ने भाग लिया और सर्वसम्मति से केंद्र सरकार की राष्ट्रीय कृषि मार्केटिंग नीति फ्रेमवर्क (NPFAM) को खारिज कर दिया. किसान संगठन ने कृषि नीति को तीन काले कृषि कानूनों का नया संस्करण मानते हुए इसे पूरी तरह खारिज कर दिया. SKM ने कहा कि सरकार इसे राज्य सरकारों के माध्यम से पिछले दरवाजे से थोपने की कोशिश कर रही है.
बैठक में किसान नेताओं ने एक सुर में इस नीति को सरकारी मंडियों पर सीधा हमला बताते हुए कहा कि सरकार मंडियों का निजीकरण करके बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कॉरपोरेट्स को लाभ पहुंचाने की साजिश रच रही है. यह नीति स्थानीय ग्रामीण मंडियों को एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन), ई-नाम और ठेका खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) के माध्यम से कृषि प्रोसेसिंग उद्योगों के लिए सस्ते कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करने की चाल है. यह सब डब्ल्यूटीओ (WTO) और विश्व बैंक (World Bank) की सिफारिशों के अनुरूप किया जा रहा है.
एसकेएम ने कहा कि नई कृषि नीति यानी NPFAM में MSP की घोषणा, सरकारी खरीद और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के लिए खाद्यान्न भंडारण का कोई प्रावधान नहीं है. यह केवल बफर स्टॉक तक सीमित है, जो किसानों के हितों के खिलाफ एक बड़ा षड्यंत्र है. SKM ने घोषणा की है कि सभी राज्यों में पक्के मोर्चे लगाए जाएंगे और राज्य विधानसभाओं से एनपीएफएएम के खिलाफ प्रस्ताव पारित कराने की मांग की जाएगी. SKM महापंचायतों और सम्मेलन आयोजित करेगा ताकि इस नीति के खिलाफ देशभर में जनजागरण किया जा सके.
SKM ने 10 फरवरी को MPs (सांसद) के कार्यालयों के सामने विरोध धरने का आह्वान किया है ताकि उन्हें इस नीति के दुष्प्रभावों से अवगत कराया जा सके और किसानों की अन्य मांगों को समझाया जा सके. SKM ने अन्य जन आंदोलनों के साथ मिलकर संयुक्त संघर्ष करने का संकल्प दोहराया और स्पष्ट किया कि यदि केंद्र सरकार झुकी नहीं, तो SKM ‘ग्रामीण भारत हड़ताल’ का आह्वान करेगा.
इस कृषि नीति के खिलाफ सभी किसान संगठन एकजुट हुए हैं और सरकार से इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं. पंजाब में आमरण अनशन पर बैठे जगजीत सिंह डल्लेवाल भी इसे खारिज करते हुए सरकार से वापस लेने की मांग कर रहे हैं. पंजाब में इस प्रस्तावित नीति के खिलाफ सबसे अधिक विरोध देखा जा रहा है. पंजाब के किसान संगठनों ने सरकार पर दबाव बनाया और इस नीति को खारिज करने पर मजबूर किया. किसान संगठनों की मांग को मानते हुए पंजाब सरकार ने इसे लागू करने से मना कर दिया.
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