भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में कृषि क्षेत्र की अहम भूमिका रही है. अमेरिका भारत के लिए एक बड़ा निर्यात बाजार है, खासकर खाद्य और कृषि उत्पादों के लिए. ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 में अमेरिका को 52,873 करोड़ रुपये के कृषि उत्पादों का निर्यात किया है. यह न केवल भारत के किसानों और निर्यातकों के लिए बड़ा अवसर है, बल्कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों की गहराई को भी दर्शाता है.
भारत से अमेरिका को सबसे ज्यादा निर्यात होने वाले कृषि उत्पादों में समुद्री उत्पाद (Marine Products) सबसे ऊपर हैं. अकेले इनका निर्यात 22,672 करोड़ रुपये के पार है. इनमें झींगा, मछली जैसे उत्पाद प्रमुख हैं. इसके बाद भारतीय मसाले आते हैं, जिनका निर्यात 5,482 करोड़ रुपये के करीब रहा है. भारतीय मसालों की अमेरिका में काफी मांग है, खासकर हल्दी, मिर्च और धनिया जैसे पारंपरिक स्वादों की.
इसके अलावा बासमती चावल, डेयरी उत्पाद, आयुष और हर्बल उत्पाद, प्रोसेस्ड फल और जूस, कैस्टर ऑयल, सीरियल प्रोडक्ट्स और चाय-कॉफी जैसे आइटम्स भी अमेरिका को भेजे जाते हैं. उदाहरण के तौर पर, बासमती चावल का निर्यात 2,849 करोड़ रुपये, डेयरी उत्पादों का 1,748 करोड़ रुपये और हर्बल उत्पादों का 1,599 करोड़ रुपये रहा है. यह दिखाता है कि भारत के विविध कृषि उत्पाद अमेरिकी बाजार में कितनी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.
2024-25 में अमेरिका को भारत ने 53,000 करोड़ रुपये के करीब जिन कृषि उत्पादों का एक्सपोर्ट किया, उनमें सबसे अहम हैं:
उत्पाद | एक्सपोर्ट वैल्यू (करोड़ में) |
मरीन प्रोडक्ट्स (झींगा, मछली आदि) | 22,672.07 करोड़ रुपये |
मसाले (हल्दी, मिर्च आदि) | 5,481.59 करोड़ रुपये |
बासमती चावल | 2,849.16 करोड़ रुपये |
डेयरी उत्पाद | 1,748.54 करोड़ रुपये |
आयुष और हर्बल उत्पाद | 1,599.11 करोड़ रुपये |
प्रोसेस्ड फल और जूस | 1,366.80 करोड़ रुपये |
सीरियल प्रोडक्ट्स (ब्रेकफास्ट आइटम्स) | 1,364.77 करोड़ रुपये |
कैस्टर ऑयल | 1,010.07 करोड़ रुपये |
चाय | 786.13 करोड़ रुपये |
कॉफी | 695.54 करोड़ रुपये |
दालें | 560.19 करोड़ रुपये |
अगर अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ वॉर शुरू होता है, यानी दोनों देश एक-दूसरे के उत्पादों पर आयात शुल्क (Import Duty) बढ़ा देते हैं, तो भारत के लिए यह चिंता का विषय बन सकता है. ऐसा होने पर भारत से अमेरिका को भेजे जाने वाले कृषि उत्पाद महंगे हो जाएंगे, जिससे उनकी मांग में गिरावट आ सकती है. अमेरिकी कंपनियां और उपभोक्ता तब शायद दूसरे देशों जैसे वियतनाम, थाईलैंड या ब्राज़ील से सस्ते विकल्प खरीदना शुरू कर दें.
इसका सीधा असर भारतीय किसानों, निर्यातकों और प्रोसेसिंग यूनिट्स पर पड़ेगा. विशेष रूप से मछली पालन, चाय, मसाले, फल और चावल के उत्पादकों की आमदनी प्रभावित हो सकती है. छोटे और मझोले स्तर के व्यापारी सबसे ज़्यादा दबाव में आ सकते हैं.
इस स्थिति से निपटने के लिए भारत को रणनीतिक तरीके से आगे बढ़ने की जरूरत है. सबसे पहले, भारत और अमेरिका को एक स्थायी और स्पष्ट व्यापार समझौता करना होगा जिससे दोनों देशों को व्यापार में सुरक्षा और स्थिरता मिले. इससे टैरिफ वॉर जैसी स्थितियों से बचा जा सकता है.
दूसरा जरूरी कदम है- नए अंतरराष्ट्रीय बाजारों की तलाश. सिर्फ अमेरिका पर निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है. यूरोप, खाड़ी देश, जापान और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में भी भारतीय कृषि उत्पादों के लिए बड़ा अवसर है. इसके अलावा, भारत को अपने उत्पादों की गुणवत्ता, पैकेजिंग और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर भी ध्यान देना चाहिए, ताकि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उसकी पकड़ बनी रहे.
भारत से अमेरिका को कृषि उत्पादों का 53,000 करोड़ रुपये का निर्यात भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. लेकिन वैश्विक राजनीति और व्यापार नीति में थोड़े बदलाव भी इस संतुलन को बिगाड़ सकते हैं. ऐसे में दोनों देशों के लिए ज़रूरी है कि वे आपसी समझ और सहयोग के साथ व्यापार संबंध बनाए रखें, जिससे किसानों, उपभोक्ताओं और व्यापारियों, सभी को लाभ हो.
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