
महाराष्ट्र के वाशिम जिले में एक किसान ने सरकार की नीति के विरोध में एक अनोखा आंदोलन किया है. यहां के अडोली नामक गांव में रहने वाले किसान सतीश ईडोले वाशिम के मेन मार्केट में पहुंचे थे. यहां उनके गले में एक बैनर लटका हुआ था. इस बैनर पर बड़े अक्षरों में लिखा था, 'किसानों के शरीर के अंग मोल लीजिए'. इस नारे के नीचे किसान ने शरीर के अंगों की कीमत लिख रखी थी. किसान के इस प्रदर्शन ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. इस प्रदर्शन की चर्चा भी हर जगह हो रही है.
किसान ने बैनर पर अपने अंगों की कीमतें लिखी थीं. इनमें उसने किडनी की कीमत 75 हजार, लिवर 90 हजार, आंखें 25 हजार रुपए लिखी गई थी. भीड़ से भरे चौराहे पर हर कोई किसान के बैनर को देखने लगा. किसान ने राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को जिला अधिकारी कार्यालय की ओर से एक चिट्ठी भेजी है. इसमें उसने लिखा है, 'चुनाव के पहले देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि उनकी सरकार आएगी तो किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा. मेरे पास कर्ज अदा करने के लिए पैसे नहीं है और आत्महत्या के अलावा कोई मार्ग नजर नहीं आ रहा.'
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किसान सतीश ईडोले के पास दो एकड़ खेत है. जानकारी मिली है कि किसान ईडोले पर महाराष्ट्र बैंक का एक लाख रुपयों के करीब फसल ऋण है. आंदोलनकारी किसान सतीश ने कहा कि सत्ता में बैठे लोगों ने चुनाव से पहले वादा किया था कि अगर उनकी सरकार आई तो किसानों का कर्ज माफ करेंगे. वहीं उप-मुख्यमंत्री अजीत पवार ने अभी हाल ही में कहा है कि कर्ज माफ नहीं होगा, किसान कर्ज का भुगतान करे.
कर्ज की भरपाई करने के लिए पैसे न होने के कारण किसान ने अपने शरीर के अंगों की कीमत लगाई है. सतीश ईडोले के अनुसार उन्होंने सरकार से कहा कि उनकी किडनी कीमत से भी उसका कर्ज अदा नहीं हुआ तो उनकी पत्नी की किडनी कीमत 40 हजार, बड़े बेटे के किडनी की कीमत 20 हजार और छोटे बेटे के किडनी की कीमत 10 हजार रुपए है. ये किडनियां ले लें और उन्हें कर्ज से आजादी दिला दें.
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महाराष्ट्र में किसानों का कर्ज एक बार सुर्खियों में बना हुआ है. जहां उप-मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि सरकार चुनाव घोषणापत्र में किए गए सभी वादों को पूरा करेगी. वहीं उनके कैबिनेट सहयोगी अजित पवार के 'किसानों को फसल ऋण माफी के लिए इंतजार करने की जरूरत नहीं है. पवार ने कहा था, 'मैं महाराष्ट्र के लोगों को साफ तौर पर बताना चाहता हूं कि उन्हें 31 मार्च तक अपने फसल ऋण चुकाने होंगे. चुनाव के दौरान किए गए वादे हमेशा सीधे तौर पर काम में नहीं आते हैं. मौजूदा वित्तीय परिस्थितियों को देखते हुए भविष्य में निर्णय लिए जाएंगे. फिलहाल अभी और अगले साल भी, लिए गए ऋणों को चुकाना होगा.'
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