पराली प्रबंधन के लिए सीआरएम (Crop Residue Management) मशीनों की महंगी कीमत ने उन्हें छोटे किसानों की पहुंच से दूर कर दिया है. सरकार की ओर से इन मशीनों के लिए किसानों को सब्सिडी और वित्तीय मदद मिलने में भी देरी की शिकायतें की गई हैं. जबकि, केवल एक तिहाई CRM मशीनें ही चालू होने की उम्मीद किसानों ने जताई है. एजेंसी के अनुसार पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में बढ़ोत्तरी की चिंता के बीच किसानों की ओर से धान की पराली मैनेजमेंट के लिए आर्थिक मदद की मांग उठ रही है. उनका कहना है कि छोटे किसानों के लिए अपने खेतों को साफ करने के लिए पराली प्रबंधन मशीनरी खरीदना आर्थिक रूप से काफी मुश्किल है.
अक्टूबर और नवंबर में धान की फसल की कटाई के बाद दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए अक्सर पंजाब और हरियाणा को पराली जलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है. पंजाब और हरियाणा में धान कटाई के साथ-साथ पराली जलाने की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिसके कारण राज्य के अधिकारियों को एफआईआर दर्ज करने और दोषी किसानों पर जुर्माना लगाना पड़ रहा है. लगभग 31 लाख हेक्टेयर से अधिक धान क्षेत्र वाले पंजाब में हर साल लगभग 180-200 लाख टन धान की पराली पैदा होती है. ज्यादातर किसान अगली फसल की बुवाई के लिए इसे खेत में ही जला देते हैं.
भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के महासचिव हरिंदर सिंह लाखोवाल ने कहा कि किसान धान की पराली के प्रबंधन के लिए वित्तीय मदद चाहते हैं. पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने यह भी कहा कि धान की कटाई के बाद गेहूं जैसी रबी फसलों के लिए समय बहुत कम होता है, इसलिए कई किसान अगली फसल की बुवाई के लिए पराली को जल्दी से साफ करने के लिए अपने खेतों में आग लगाने को मजबूर होते हैं. रिपोर्ट के अनुसार इस साल केंद्र सरकार की योजना के तहत लगभग 20,000 सब्सिडी वाली फसल अवशेष प्रबंधन (crop residue management) मशीनों के वितरण के बावजूद इस सीजन में कुल 1.5 लाख मशीनों में से केवल 1 लाख के चालू होने की उम्मीद है.
खेतों में फसल अवशेषों यानी पराली प्रबंधन के तहत कई मशीनों के जरिए खाद बनाने, चारा बनाकर पशुओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इन मशीनों में सुपर सीडर, स्मार्ट सीडर, हैप्पी सीडर, पैडी स्ट्रा चॉपर, श्रेडर, मल्चर, हाइड्रोलिक रिवर्सिबल मोल्ड बोर्ड हल और जीरो टिल ड्रिल जैसी फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी (CRM) और बेलर और रेक मशीनें सरकार की ओर से सब्सिडी पर उपलब्ध कराई जाती हैं. किसानों के लिए इन मशीनों पर सब्सिडी की दर लागत का 50 फीसदी और सहकारी समितियों और पंचायतों के लिए 80 फीसदी है.
किसान नेता ने कहा कि हम धान की पराली के प्रबंधन के लिए 3000 रुपये प्रति एकड़ की मांग कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि छोटे किसानों के लिए पराली प्रबंधन के लिए फसल अवशेष मशीनरी यानी सीआरएम खरीदना आर्थिक रूप से संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि सीआरएम मशीनें चलाने के लिए 60 हॉर्स पॉवर क्षमता वाले ट्रैक्टर की जरूरत होती है और इसकी लागत 10 लाख रुपये से अधिक होती है. एक छोटा किसान इतनी लागत पर मशीनरी खरीदने का जोखिम नहीं उठा सकता. इसीलिए हम कह रहे हैं कि किसानों को पराली के प्रबंधन के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए.
पंजाब किसान यूनियन के अनुसार राज्य में 60 फीसदी से अधिक किसानों के पास 5 एकड़ से कम भूमि है. उन्होंने यह भी कहा कि फसल अवशेष मशीनरी का रखरखाव लागत भी अधिक है, जो किसानों को उन्हें खरीदने से रोकता है. किसान नेता ने कहा कि धान की पराली के निपटान की अधिक लागत के चलते किसान इसे खेतों में जला देते हैं. उन्होंने कहा कि बेलर जैसी मशीनें खरीदने में होने वाले खर्च और सरकार की मामूली सब्सिडी की वजह से किसानों के पास अगली फसल की बुआई के लिए खेतों को तैयार करने के लिए धान की पराली जलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. उन्होंने कहा कि सरकार को यह तय करना चाहिए कि गांव स्तर पर पर्याप्त संख्या में पराली प्रबंधन मशीनें यानी सीआरएम उपलब्ध कराई जाएं.
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