scorecardresearch
Uttarkashi Tunnel collapse : सुरंग की अंधेरी दुनिया इस कानून से चलती है- ज़रा सी चूक हुई और जान पर आफ़त

Uttarkashi Tunnel collapse : सुरंग की अंधेरी दुनिया इस कानून से चलती है- ज़रा सी चूक हुई और जान पर आफ़त

क्या आप जानते हैं सुरंग के अंदर की दुनिया कैसी होती है. सुरंग के स्याह अंधेरे में मिट्टी और पत्थर से बना पहाड़ हर जगह का अलग अलग होता है. लिहाजा टनल के अंदर दाखिल होते ही गहराई के साथ साथ पत्थरो का नेचर बदलता है. ऐसे में तो अगर जरूरी एहतियात ना बरते गए तो सीधे जान पर बन आती है.

advertisement

10 दिन से ज्यादा का वक्त हो गया है उत्तरकाशी के सिल्कराया में 41 मजूदरों को बचाने की जद्दोजहद जारी है. सुरंग के अंदर फंसे मजदूरों को निकालने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी एक्सपर्ट बुलाए गए हैं और काम कर रहे हैं. इधर पीएम मोदी भी लगातार पूरे राहत और बचाव कार्य पर नजर रखे हुए हैं और उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी से फोन पर अपडेट ले रहे हैं. सुंरग के अंदर फंसे मजदूरों से अब संपर्क भी स्थापित हो गया है, उनसे लगातार बातचीत की जा रही है, साथ ही उन्हें 6 इंच की पाइप के जरिए गर्म और ताजा खाना खाने के लिए दिया जा रहा है.  

क्या आप जानते हैं सुरंग के अंदर की दुनिया कैसी होती है. सुरंग के स्याह अंधेरे में मिट्टी और पत्थर से बना पहाड़ हर जगह का अलग अलग होता है. लिहाजा टनल के अंदर दाखिल होते ही गहराई के साथ साथ पत्थरो का नेचर बदलता है. ऐसे में तो अगर जरूरी एहतियात ना बरते गए तो सीधे जान पर बन आती है. किसी चीज़ से ट्रिगर होने पर लूज नेचर के पहाड़ों के गिरने तक की नौबत आ जाती है. यही वजह है कि तय समय पर सुरंग की जांच की जानी चाहिए. नही तो एक बार पत्थर गिरना शुरू होने पर उसे रोक पाना बड़ा मुश्किल होता है. 

ये भी पढ़ेंः Agri Quiz: गेहूं में पानी लगते ही बगुले क्यों इकट्ठे हो जाते हैं? जानिए इसका सही जवाब

खदान के सुरक्षा उपायों को जानना जरूरी 

नाम नहीं छापने की शर्त पर एक भूवैज्ञानिक ने बताया कि हिमालय य़ंग एज का है, मतलब इस रीजन में अक्सर एक्टिविटी होती है. लिहाजा हर तरह के सुरक्षात्मक उपाय यहां पर अपनाने चाहिए. क्योंकि यहां पर हर समय कुछ ना कुछ होता है. ऐसे में जान लेना जूरूरी है कि खदानों में लेबर और सेफ्टी कैसे रेगुलेट किया जाता है. सबसे बड़ी बात सुंरग के अंदर खाने पीने और नैचुरल क्रिया के लिए क्या नियम कानून होते हैं. माइन्स एक्ट के तहत खदानों में काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य और उनकी सुरक्षा देखी जाती है. तेल का कुआं और कोल माइंस,  समेत अन्य  माइन्स में काम करने वाले मजदूरों पर भी ये लागू होता है. हालांकि मौके पर मौजूद साइट इंजीनियर इसे लागू करने या ना करने का फैसला लेता है.

सुरंग में लागू होता है ये कानून 

  • माइंस एक्ट 1952 के सेक्शन 19 के मुताबिक पीने का पानी किसी यूरिनल या धोने की जगह के 6 मीटर की दायरे में नहीं होना चाहिए.
  • माइंस एक्ट 1955 के 30वें नियम के अनुसार खदान में काम करने वाला एक व्यक्ति सिर्फ 2 लीटर पीने के पानी की मात्रा ही ले जा सकता है. कामगारों से वाटर सप्लाई के लिए कोई पैसा नहीं लिया जाएगा.
  • एक समय पर 100 या 100 से ज्यादा व्यक्ति अगर काम करते हैं वहां इंस्पेक्टर पीने के पानी को यांत्रिक तरीके से या फिर दूसरे तरीके से ठंडा करने का ऑर्डर दे सकता है.
  • माइनिंग के नियमों के मुताबिक़ ऐसे मज़दूरों की नियमित स्वास्थ्य जांच के अलावा हर पांच साल पर विशेष जांच करायी जानी चाहिए, लेकिन ऐसा अक्सर नहीं होता है.
  • माइंस रुल्स एंड रेगुलेशन के तहत पीने के पानी की आपूर्ति पाइपलाइन के जरिये होनी चाहिए लेकिन अक्सर ऐसा नहीं है.

ये भी पढ़ेंः नकली एग्री इनपुट ने बढ़ाई क‍िसानों और उद्योगों की च‍िंता, आख‍िर कैसे लगेगी रोक?  

जागरूकता की है कमी

एक रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ देश में ही नही बल्कि विदेशों में खदान के अंदर काम करने वाले कामगारों के बीच किए गए सर्वे में पाया गया कि उन्हें नियमों की जानकारी नहीं थी. वे जागरूक थे पर उन्हें नियमों की जानकारी नहीं थी. पर इसके बावजूद यह नियम लागू किया गया और फिर इन नियमों का भी उल्लंघन किया जाता है इसके कारण खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती है. डॉ. डेविड लॉरेंस स्कूल ऑफ माइनिंग इंजीनियरिंग, यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स, सिडनी, ऑस्ट्रेलिया के एसोसिएट प्रोफेसर ने यह शोध किया और इसे साइंस डायरेक्ट में जगह दी गई. डेविड ने पिछले 25 वर्षों से ऑस्ट्रेलियाई और अंतर्राष्ट्रीय खनन उद्योगों में एक खनिक, महाप्रबंधक, मुख्य खान निरीक्षक और एक अकादमिक सहित विभिन्न भूमिकाओं में काम किया है.