समुद्री शैवाल, जिसे आमतौर पर एल्गी या सी-वीड के नाम से जाना जाता है, अब केवल समुद्री वनस्पति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे "21वीं सदी का चिकित्सा भोजन" कहा जाने लगा है. ये सूक्ष्म शैवाल जो समुद्र तट पर कम गहराई वाले और चट्टानी किनारों पर पनपते हैं, अपने बहुमूल्य जैव सक्रिय यौगिकों के कारण मानव, पशु और कृषि क्षेत्रों के लिए एक अविश्वसनीय संसाधन के रूप में उभरे हैं. इसका इस्तेमाल मानव और पशुओं के लिए पोषण पूरक के रूप में घेंघा, कैंसर, बोन रिप्लेसमेंट थेरेपी और कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी जैसे गंभीर रोगों के उपचार में किया जा रहा है. साथ ही सौंदर्य प्रसाधन, स्किनकेयर और अन्य व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों सहित वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और रासायनिक उत्पादन में किया जा रहा है. उपभोक्ता अब सिंथेटिक कॉस्मेटिक्स के बजाय समुद्री शैवाल से बने उत्पादों को अधिक पसंद कर रहे हैं, क्योंकि इनमें प्राकृतिक और शुद्ध तत्व होते हैं.
विशेषज्ञो के अनुसार, भारत की 7516.6 किलोमीटर लंबी तटरेखा 9 समुद्री राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुई है. यह क्षेत्र लगभग17 करोड़ तटीय आबादी का घर है, जिसमें लगभग 40 लाख मछुआरे भी शामिल हैं. इन मछुआरों और तटीय समुदायों के लिए समुद्री शैवाल की खेती आय का एक बेहतर जरिया बन सकती है. भारत के समुद्री क्षेत्र में अब तक सी-वीड की 844 प्रजातियां पाई गई हैं, जिनमें रेड एल्गी की 434, ब्राउन एल्गी की 194 और ग्रीन एल्गी की 216 प्रजातियां शामिल हैं. हालाकि, अनुमानित 58,715 टन का स्टॉक वर्तमान में सी-वीड आधारित उद्योगों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नही है. यहीं पर इसकी खेती का महत्व और बढ़ जाता है. माइक्रोबायोलॉजी विशेषज्ञ के अनुसार, सी-वीड की खेती बेहद आसान और सस्ती है और इसे तैयार होने में भी ज्यादा समय नहीं लगता. इसकी खेती समुद्र के किनारे कम गहरे पानी में की जाती है, जिसके लिए बांस के राफ्ट या ट्यूब नेट का उपयोग होता है.
इसके लिए पानी में नमक की मात्रा 30 पीपीटी प्रति हजार होनी चाहिए, सतह पर चट्टानी या बलुई मिट्टी होनी चाहिए और तापमान 26 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा पानी के बहाव की गति बहुत धीमी होनी चाहिए. आमतौर पर इसके लिए तीन मीटर के वर्गाकार बांस के राफ्ट का इस्तेमाल किया जाता है, जो समुद्र में तैरता रहता है. एक राफ्ट पर लगभग ₹2000 का खर्च आता है. सी-वीड की एक फसल 45 से 60 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे प्रति राफ्ट 40-50 किलो से लेकर 240-260 किलो तक गीला सी-वीड प्राप्त होता है. सूखने के बाद इसका वजन दसवें हिस्से के बराबर रह जाता है. गीला सी-बीड का प्रति किलो 5 से 10 रुपये और सुखा सी-वीड का 40 रुपये से लेकर 70 रुपये प्रति किलो बिक जाता है. सालभर में एक ऱाफ्ट से किसान 1 लाख से 1.50 रुपये तक कमा सकता है इसमें 60 फीसदी का मुनाफा होता है .
सी-वीड से बने उर्वरक फसलों के लिए बेहद लाभकारी सिद्ध हो रहे हैं. ये पूरी तरह से प्राकृतिक होते हैं और कोई हानिकारक अवशेष नहीं छोड़ते. इनमें पाए जाने वाले जैव सक्रिय पदार्थ धीरे-धीरे मिट्टी में पोषक तत्व छोड़ते रहते हैं, जिससे पौधे को लंबे समय तक पोषण मिलता रहता है. सी-वीड खाद में पौधे की वृद्धि के लिए जरूरी उत्प्रेरक हार्मोन जैसे इंडोलैसिटिक एसिड, साइटोकिनिन, जिब्रेलिन और खनिज तत्व जैसे आयोडीन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज और टाइटेनियम प्रचुर मात्रा में होते हैं. ये सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का उचित उपयोग करके पौधे को मजबूत और हेल्दी बनाते हैं. ये मिट्टी की संरचना में सुधार करते हैं. इसके अलावा सी-वीड खाद से पौधा स्वस्थ, रोगमुक्त और मौसम की मार से सुरक्षित रहता है.
इस दिशा में कोऑपरेटिव सोसायटी इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर्स कोऑपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) ने समुद्री शैवाल से बना बायो-फर्टिलाइजर 'सागरिका' निकाला है, जो फसल के उत्पादन और मिट्टी की गुणवत्ता दोनों के लिए फायदेमंद है. समुद्री शैवाल में मौजूद हार्मोन बीज की सुस्ती को तोड़ते हैं, अंकुरण को तीव्र करते हैं, फसल की वृद्धि और परिपक्वता को बढ़ावा देते हैं और नई जड़ों के निर्माण सहायक होते हैं. समुद्री शैवाल, अपने कई तरह के लाभों और खेती में आसानी के साथ, निश्चित रूप से भारत के तटीय समुदायों के लिए एक बेहतर आय का जरिया और देश के लिए एक स्थायी भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहा है.
इस क्षेत्र को और मजबूत करने के लिए, आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) के मंडपम क्षेत्रीय केंद्र को समुद्री शैवाल विकास के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में नामित किया गया है. साथ ही, लक्षद्वीप द्वीप समूह को समुद्री शैवाल क्लस्टर के रूप में पहचाना गया है. भारत सरकार के उर्वरक विभाग ने तमिलनाडु, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव तथा लक्षद्वीप में समुद्री शैवाल बीज बैंकों की स्थापना हेतु प्रधानमंत्री समुद्री शैवाल योजना के अंतर्गत परियोजनाओं को मंजूरी दी है. इसके अतिरिक्त, उर्वरक विभाग ने 21 अक्टूबर 2024 को भारत में जीवित समुद्री शैवाल के आयात हेतु दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं, जिससे उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के आयात की अनुमति मिल गई है. ये सभी कदम भारत में समुद्री शैवाल उद्योग के विकास को गति प्रदान करेंगे.
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