Sugarcane Politics: आखिर तय समय से पहले क्यों बढ़ाया गया गन्ने का दाम, किसे साधना चाहती है सरकार

Sugarcane Politics: आखिर तय समय से पहले क्यों बढ़ाया गया गन्ने का दाम, किसे साधना चाहती है सरकार

देश के चार राज्यों में एफआरपी की बजाय एसएपी (स्टेट एडवायजरी प्राइस) लागू होता है. जो केंद्र सरकार द्वारा घोषित एफआरपी यानी उचित और लाभकारी मूल्य से ज्यादा होता है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा एसएपी के तौर पर अपने यहां खुद कीमतें तय करते हैं. बाकी में एफआरपी लागू होती है, जो एक ही होती है. बिहार में अलग व्यवस्था है.

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Sugarcane Politics: आखिर तय समय से पहले क्यों बढ़ाया गया गन्ने का दाम, किसे साधना चाहती है सरकारकितना होगा गन्ने का एफआरपी.

किसान आंदोलन के बीच मोदी सरकार ने गन्ने के दाम में रिकॉर्ड 25 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि कर दी है. इसके साथ ही अब चीनी सीजन 2024-25 के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 340 रुपये प्रति क्विंटल होगा. दरअसल, यह फैसला इसलिए अप्रत्याशित है क्योंकि दाम बढ़ाने का एलान तय वक्त से चार महीने पहले किया गया है. जबकि नया रेट लागू अपने समय यानी अक्टूबर 2024 से ही होगा. आमतौर पर जून में एफआरपी की घोषणा की जाती है. इसके बाद नया अक्टूबर से शुरू होने वाले चीनी सीजन में लागू हो जाता है. पिछले साल भी 28 जून 2023 को गन्ने की एफआरपी में वृद्धि को मंजूरी दी गई थी. तय वक्त से पहले इतनी बड़ी वृद्धि को लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. 

यह भी गौर करने वाली बात है कि एक साथ एफआरपी में 25 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि आमतौर पर नहीं होती. पिछले साल भी सिर्फ 10 रुपये ही बढ़ाकर इसे 315 तक लाया गया था. हालांकि केंद्र सरकार के इस दांव से न तो पंजाब, हरियाणा के आंदोलनकारी किसानों की जेब पर कोई असर पड़ने वाला और न तो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों को इससे फायदा होगा. क्योंकि इन राज्यों में पहले से ही इससे ज्यादा दाम मिल रहा है.

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पंजाब-हरियाणा और यूपी को फायदा क्यों नहीं?

देश के चार राज्यों में एफआरपी की बजाय एसएपी (स्टेट एडवायजरी प्राइस) लागू होता है. जो केंद्र सरकार द्वारा घोषित एफआरपी यानी उचित और लाभकारी मूल्य से ज्यादा होता है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा एसएपी के तौर पर अपने यहां खुद कीमतें तय करते हैं. बाकी में एफआरपी लागू होती है, जो एक ही होती है. बिहार में अलग व्यवस्था है. ऐसे में एफआरपी बढ़ने से न तो उत्तर प्रदेश की सियासत सधेगी और न तो हरियाणा-पंजाब के आंदोलनकारी किसानों पर इसका कोई असर पड़ने वाला.

  • इस समय पंजाब देश में सबसे ज्यादा गन्ने का दाम दे रहा है. यहां के किसानों को प्रति क्विंटल 391 रुपये के हिसाब से भुगतान हो रहा है.
  • गन्ने का दाम देने के मामले में दूसरे नंबर पर हरियाणा है, जहां पर किसानों को 386 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है. 
  • गन्ने का भाव देने के मामले में देश में तीसरे नंबर पर उत्तराखंड है, जहां के किसानों को प्रति क्विंटल 375 रुपये मिल रहे हैं. 
  • देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक उत्तर प्रदेश में हाल में ही एसएपी में 20 रुपये का इजाफा किया गया है. इस समय यहां के किसानों को 370 रुपये प्रति क्विंटल का दाम मिल रहा है. इसलिए 340 रुपये की एफआरपी का उत्तर प्रदेश में भी कोई असर नहीं पड़ने वाला.

महाराष्ट्र की राजनीति के लिए बड़ा दांव

देश का दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक महाराष्ट्र है. जहां एफआरपी लागू होती है. इसलिए केंद्र सरकार के वर्तमान फैसले का यहां पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा. किसानों के हाथ में ज्यादा पैसे आएंगे. महाराष्ट्र में एसएपी नहीं लेकिन, यहां गन्ने की कटाई और ढुलाई का खर्च सरकार देती है. बीजेपी अपने इस घोषणा को महाराष्ट्र में भुना सकती है क्योंकि वहां के किसान दाम को लेकर दूसरे राज्यों के मुकाबले हमेशा दबाव में रहते हैं. ऐसे में एक साथ 25 रुपये क्विंटल की वृद्धि से उन्हें बड़ी राहत मिली है. दक्षिण के राज्यों में भी इस फैसले से बीजेपी को फायदा पहुंच सकता है.

इंडस्ट्री पर कितना पड़ेगा बोझ

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि केंद्र सरकार के इस फैसले से उद्योगों पर करीब 10000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा. ऐसे में इंडस्ट्री यह जरूर चाहेगी कि चीनी का दाम बढ़े.

एक्सपोर्ट बैन खोलने से ज्यादा मिलेगा फायदा

महाराष्ट्र के किसान नेता राजू शेट्टी का कहना है कि केंद्र सरकार ने एफआरपी में 25 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि लोकसभा चुनाव को देखते हुए की है. यह नया रेट अक्टूबर 2024 से लागू होगा. सितंबर तक तो किसानों को पुराना दाम ही मिलेगा. असल में किसानों को तब फायदा मिलेगा जब सरकार चीनी का एक्सपोर्ट बैन खोल दे. गन्ना किसान जानता है कि जो रेट बढ़ाया गया है उसका फायदा अभी नहीं मिलने वाला.

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