
तीन केंद्रीय मंत्रियों के एक ग्रुप ने 18 फरवरी को आंदोलनकारी किसान नेताओं के साथ चंडीगढ़ में बैठक करके न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर पांच फसलों की पांच साल तक खरीद करने की कानूनी गारंटी का प्रस्ताव दिया था. इसमें अरहर, उड़द, मसूर, कपास और मक्का की बिना किसी लिमिट के खरीद करने का ऑफर शामिल था. लेकिन किसान संगठनों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? दरअसल, इसके पीछे पंजाब और हरियाणा में खेती से कमाई का बहुत बड़ा गणित शामिल है. केंद्र सरकार की ओर से गारंटीड खरीद के लिए ऑफर की गई फसलों से ज्यादा रिटर्न हरियाणा-पंजाब में गेहूं और धान की खेती से मिल रहा है. ऐसे में कोई भी किसान संगठन गारंटी मिलने के बावजूद क्यों अपने सूबे के किसानों का नुकसान होने देगा. जबकि आंदोलन को खासतौर पर इन्हीं दो सूबों के ही लोग आगे बढ़ा रहे हैं.
प्रमुख फसलों की लागत और उससे राज्यवार होने वाले रिटर्न पर केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट मौजूद है. यह रिपोर्ट खुद ही साफ कर देती है कि आखिर क्यों पंजाब-हरियाणा के किसान संगठनों ने सरकार के पांच फसलों की खरीद वाली गारंटी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. पंजाब में किसानों को धान, गेहूं से ज्यादा मूंग पर रिटर्न है, लेकिन वो इस पैकेज में शामिल नहीं है. सरसों पर भी रिटर्न ठीक है, लेकिन उसकी खरीद की गारंटी भी ऑफर नहीं की गई है. फसल विविधीकरण तभी होगा जब पुरानी फसल के मुकाबले नई फसल में लाभ ज्यादा मिले या फिर होने वाले घाटे की सरकार खुद भरपाई करे. वरना यह कड़वी बात है कि किसान चैरिटी नहीं कर रहे हैं. वो उन्हीं फसलों की खेती करेंगे जिनमें रिटर्न ज्यादा होगा.
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पंजाब में जितना धान होता है उसका 97.5 फीसदी तक एमएसपी पर खरीद लिया जाता है. गेहूं का जितना उत्पादन है उसका 75 से 90 फीसदी खरीदा जाता है. जहां तक लागत की बात है तो अन्य कई राज्यों के मुकाबले बहुत कम है. इन दोनों वजहों से इन दोनों सूबों में गेहूं, धान की खेती से किसानों को जितना रिटर्न मिलता है उतना बहुत कम ही फसलों पर मिलता है. पंजाब में मूंग पर गेहूं से ज्यादा रिटर्न है और हरियाणा में सरसों पर, लेकिन सरकार ने खरीद गारंटी में जिन पांच फसलों को शामिल किया है उनमें ये दोनों नहीं हैं. ऐसे में सवाल ये है कि पंजाब का किसान क्रॉप डायवर्सिफिकेशन के लिए अपना घाटा क्यों करेगा.
केंद्र सरकार मक्के की खरीद की गारंटी दे रही है लेकिन पंजाब में इसका रिटर्न 5.7 फीसदी ही है. राष्ट्रीय स्तर पर यह 42.2 फीसदी ही है. ऐसे में इस गारंटी से धान, गेहूं छोड़कर मक्का पर पंजाब के किसान तो आने से रहे. कॉटन पर पंजाब में 134.5 फीसदी का रिटर्न है. जबकि सरसों पर सिर्फ 116.5 फीसदी रिटर्न है. ऐसे में पंजाब में किसानों से धान-गेहूं की खेती से मक्का और सरसों पर शिफ्ट करना आसान नहीं है. क्योंकि जिन फसलों की सरकार खरीद गारंटी दे रही है उनसे पंजाब के किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हो सकती.
हरियाणा-पंजाब में गेहूं, धान की एमएसपी पर 'अघोषित' गारंटी की वजह से ही वहां धान की रकबा तेजी से बढ़ा है. हालांकि, यह ट्रेंड इन दोनों सूबों में जल संकट और पराली संकट को बढ़ा रहा है. फिर भी अन्य फसलों के मुकाबले ज्यादा मुनाफा मिलने की वजह से लोग इसकी खेती को छोड़ नहीं रहे हैं. जब तक सरकार कुछ ऐसी फसलों की खरीद की गारंटी नहीं देगी, जिसमें पंजाब-हरियाणा के किसानों को गेहूं-धान के मुकाबले ज्यादा दाम मिले तब तक क्रॉप डायवर्सिफिकेशन नहीं किया जा सकता. किसी किसान के एक फसल से दूसरी फसल पर शिफ्ट होने के कई कारण हो सकते हैं जिनमें सबसे अहम दाम है.
एमएसपी पर गेहूं-धान की सबसे ज्यादा खरीद और ज्यादा रिटर्न की वजह से ही पंजाब में दलहन, तिलहन और बागवानी फसलों की कोई हैसियत नहीं रह गई है. पंजाब के कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार 1960-61 में पंजाब में सिर्फ 4.8 फीसदी क्षेत्र में धान की खेती होती थी जो 2020-21 तक 40.2 फीसदी तक पहुंच गई. जबकि गेहूं का क्षेत्र 27.3 से बढ़कर 45.15 प्रतिशत तक पहुंच गया. इसी तरह साठ के दशक में 19.1 फीसदी क्षेत्र में दलहन फसलों की खेती होती थी, जो 2020-21 में घटकर महज 0.4 प्रतिशत रह गई. कॉटन 9.4 से घटकर मात्र 3.2 प्रतिशत और मक्का 6.9 से कम होकर महज 1.3 फीसदी क्षेत्र में ही रह गया. तिलहन फसलों का रकबा 3.9 से कम होकर मात्र 0.5 प्रतिशत रह गया.
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