पराली का धुआंहर साल सर्दियां आते ही राजधानी दिल्ली प्रदूषण की चादर ओढ़ लेती है. दिल्ली में प्रदूषण का सबसे बड़ा जिम्मेदार हरियाणा-पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जलाई गई पराली को माना जाता है. पिछले कुछ सालों से पराली जलाने को लेकर काफी सख्ती दिखाई गई है. इस बार शुरुआत से ही पराली जलाने पर रोकथाम के लिए तैयारी की गई थी. लगातार किसानों को जागरूक किया जाता रहा. करनाल जिले में 90 फीसदी धान की कटाई हो चुकी है वही इस बार किसानों ने कमाल करके दिखाया है. पराली जलाने के केवल तीन मामले सामने आए हैं.
पराली को जहां धुएं और प्रदूषण का जिम्मेदार माना जाता था और किसानों पर जुर्माना और मुकदमे लगाए जाते थे वहीं इस बार किसानों के लिए ये पराली फायदे का सौदा साबित हुई है. करनाल के कृषि उप निदेशक डॉ. वजीर सिंह ने जानकारी देते हुए बताया किसानों द्वारा 80 प्रतिशत पराली का प्रबंधन किया गया है. पराली के गांठ बनाकर उन्हें फैक्ट्रियों में बेचकर किसानों ने कमाई भी की है. प्रदेश सरकार की और से भी ₹1200 प्रति एकड़ का अनुदान राशि किसानों को पराली ना जलाने की एवज में मिल रहे हैं.
डॉ. वजीर सिंह ने जानकारी देते हुए बताया जिले में अब तक 90 फीसदी धान की कटाई हो चुकी है. 80 फीसदी पराली का प्रबंधन हो चुका है. अब तीन मामले किसानों द्वारा पराली में आग लगाने के पाए गए हैं. सरकार द्वारा जो थे गाइडलाइन जारी कीजिए उसके नियम अनुसार उन पर जुर्माना लगाकर मामला दर्ज किया गया है.
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कृषि अधिकारी ने बताया किसानों के बीच जाकर लगातार उन्हें समझाया भी जा रहा है. किसान फसल कटाई के बाद पराली को खेत में ही मिलाए. उन्होंने कहा किसानों द्वारा इस बार भरपूर सहयोग मिला है. इससे पहले पराली जलाने की घटना काफी तेजी से बढ़ती थी, इस बार करनाल में मात्र 3 मामले सामने आए हैं.
किसान जिले में इस बार मॉडल की तरह उभरा है किसानों ने इस बार पराली में आग नही लगाई. उन्होंने कहा कि किसान बेलर मशीन द्वारा पराली की गांठ बनाकर उसे बेचकर कमाई का अतरिक्त साधन भी बना रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि किसान 3 से 4 हजार रुपए एकड़ का अतिरिक्त मुनाफा कमा रहे हैं. कृषि विभाग द्वारा भी किसानों को ₹1200 प्रति एकड़ दिया जा रहा है. और कृषि यंत्रों पर भी किसानों को 50 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है.
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