महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. जनवरी से मार्च 2025 के बीच सिर्फ महाराष्ट्र में 767 किसानों ने अपनी जान गंवा दी. ये आंकड़ा महाराष्ट्र सरकार ने जारी की है. यानी मात्र दो महीने में लगभग 800 किसानों का परिवार बेसहारा हो गए, जिनमें से 269 मामले केवल मराठवाड़ा क्षेत्र से हैं. बात करें इस क्षेत्र कि तो ये समुद्र तल से लगभग 700-800 फीट ऊपर है. ऐसे में पानी की कमी और मॉनसून का समय पर ना आना यहां के किसानों के लिए संघर्ष बनता जा रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं मराठवाड़ा में किसानों की आत्महत्या और कुदरत की बेरुखी पर जमीनी हालात क्या है.
दि लल्लनटॉप की ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक, यहां के किसानों ने बताया कि पिछले 10-15 साल से हम जो देख रहे हैं कि 1 साल बारिश होती है और दूसरे साल सूखा पड़ जाता है. वहीं, तीसरे साल इतनी ज्यादा बारिश हो जाती है कि पूरी फसल डूब जाती है, जिससे फसल खराब हो जाता है और किसानों को लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है. ये सिलसिला कई वर्षों से जारी है.
मराठवाड़ा में मुख्य रूप से सोयाबीन की खेती होती है. हालांकि, किसानों को लागत से कम दाम मिलने के कारण भारी घाटा उठाना पड़ता है. एक किसान ने बताया कि एक एकड़ सोयाबीन की खेती में 46 हजार रुपये का खर्च आता है. वहीं, सोयाबीन की MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,892 रुपये है. लेकिन मंडी में किसानों को प्रति क्विंटल 4000 रुपये का भाव मिलता है, जिससे किसानों को भारी घाटा होता है. उन्होंने कहा कि अगर किसान को लागत से कम दाम मिलेगा, तो वह खेती कैसे करेगा?
2014 में लातूर के पाशा पटेल और देवेंद्र फडणवीस जो आज के प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं उन्होंने लातूर से नागपुर तक एक आंदोलन किया गया था, जिसमें सोयाबीन के लिए 6000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिले इसकी मांग की गई थी. लेकिन आज भी किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार, किसानों को उत्पादन लागत +50% का मूल्य मिलना चाहिए, लेकिन महाराष्ट्र में यह कानून अभी तक लागू नहीं हुआ है. तो ऐसे में किसानों का सवाल है कि आज देवेंद्र फडणवीस खूद मुख्यमंत्री है और सत्ता में है फिर भी किसानों को उनकी मेहनत और लागत का दाम नहीं मिल रहा.
वहां के कई किसानों ने बताया कि उन्हें बैंक से लोन मिलने में कठिनाई होती है, जिससे वे प्राइवेट लोन लेने पर मजबूर होते हैं. लेकिन प्राइवेट लोन का ब्याज अधिक होने के कारण कर्ज बढ़ता चला जाता है और किसान इसे चुका नहीं पाते. धीरे-धीरे आर्थिक संकट और कर्ज के दबाव में कई किसान परेशान होकर आत्महत्या लेते हैं. ये सिलसिला यहां लगातार जारी है. कई महिलाओं ने बताया कि उनके पिता-पति इन्हीं कर्ज के कारण अब इस दुनिया में नहीं है और फांसी लगाकर अपनी जान दे चुके हैं.
कुदरत की बेरुखी झेल रहे इस क्षेत्र के किसानों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है. पानी की आपूर्ति बढ़ाने, मॉनसून की बारिश पर निर्भर किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम दिलाने के लिए नीतियां बनानी होंगी. इसके अलावा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना और एपीएमसी पर कार्रवाई करना भी आवश्यक है.
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