पंजाब के मान सरकार ने फसल विविधीकरण और पराली प्रबंधन के प्रयासों में राज्य की मदद करने के लिए सरकार ने शुरू में छह महीने के लिए बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) को एक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया है. वैश्विक सलाहकार बीसीजी इस महीने के अंत तक घोषित होने वाली अपनी कृषि नीति तैयार करते समय सरकार को रास्ता सुझाएगा. जिसमें, कपास, बासमती धान, गन्ना, दलहन और तिलहन के तहत क्षेत्र को बढ़ाने के लिए कार्डों पर गेहूं और धान का मोनोकल्चर बदलाव से है. हालांकि, गीली मई (सामान्य से 136 प्रतिशत अधिक बारिश) के कारण नई कृषि नीति के लागू होने में बाधा उत्पन्न होने की संभावना है.
वहीं सरकार के सूत्रों ने कहा कि नीति तैयार करने के लिए कृषि विभाग द्वारा एक सलाहकार नियुक्त करने के लिए अनुरोध प्रस्ताव (आरएफपी) इस साल की शुरुआत में जारी किया गया था. तीन बार टेंडर निकाले जाने के बाद बीसीजी को सलाहकार के रूप में काम पर रखा गया है. क्योंकि टेंडर में भाग लेने के लिए कोई और आगे नहीं आया.
बीसीजी के पक्ष में टेंडर आवंटित होने के बाद मामले को मंजूरी के लिए पंजाब कैबिनेट के पास ले जाया गया. दरअसल कृषि में विविधीकरण और धान के पराली प्रबंधन दोनों के लिए राज्य द्वारा अपनाए जाने वाले मार्ग की योजना बनाने के लिए कंपनी को शुरू में 5.65 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना है. इस योजना के आधार पर, सरकार योजना के कार्यान्वयन के लिए सलाहकार को बनाए रखने के बारे में निर्णय लेगी.
ये भी पढ़ें:- Farmer Protest: भावान्तर योजना पर हरियाणा के कृषि मंत्री का बड़ा बयान, कहा- होगी पूरी भरपाई
दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने इससे पहले कृषि नीति तैयार करने में मदद के लिए पंजाब किसान और खेत मजदूर आयोग के अध्यक्ष सुखपाल सिंह की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति गठित की थी. बताया जा रहा है कि यह कमेटी कृषि नीति भी तैयार कर रही है. वहीं मुख्य सचिव विजय कुमार जंजुआ ने पिछले सप्ताह कहा था कि बीसीजी को टेंडर इसलिए आवंटित किया गया है, क्योंकि उसने आरएफपी की सभी शर्तों को पूरा किया है. उन्होंने कहा कि यह विश्व स्तर पर प्रसिद्ध सलाहकारों में से एक है और पहले से ही भारत सरकार द्वारा सूचीबद्ध है. हमने कृषि क्षेत्र को फिर से जीवंत करने के हमारे प्रयासों में मदद करने के लिए इसके साथ बातचीत करके इसे लगभग आधी दर पर किराए पर लिया है.
सूत्रों ने कहा कि नई नीति के तहत सरकार कपास के रकबे को 2.50 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 3 लाख हेक्टेयर करना चाहती है, लेकिन मई में बारिश के कारण कपास की खेती केवल 1.75 लाख हेक्टेयर में हो सकी है. वहीं सरकार मूंग का क्षेत्रफल बढ़ाकर 30,000 हेक्टेयर करना चाहती थी, लेकिन इसकी खेती के तहत केवल 20,000 हेक्टेयर ही लाया जा सका. ऐसा मई में बेमौसम बारिश के कारण हुआ है. वहीं इस साल गेहूं की देर से कटाई के कारण कपास का रकबा भी कम हुआ है. साथ ही यह भी पता चला है कि सरकार गन्ने का रकबा 1.25 लाख हेक्टेयर और बासमती का रकबा 6 लाख हेक्टेयर करना चाहती है, जो पिछले साल 4.94 लाख हेक्टेयर था.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today