देश में खरीफ सीजन शुरू हो गया है. इस सीजन की मुख्य फसल धान है, जिसकी बुवाई-रोपाई कई राज्यों में शुरू हो गई है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 9 जून तक देश में 3.52 लाख हेक्टेयर में धान की खेती हो चुकी है. इसके पीछे का मुख्य कारण ये है कि इन दिनों हो रही बेमौसम बारिश का फायदा उठाते हुए किसानों ने धान की रोपाई शुरू की है, लेकिन इन दिनों, जो हरियाणा के किसान धान की रोपाई कर रहे हैं. उनके लिए धान की खेती करना खतरनाक हो सकता है. मसलन, धान की खेती करने वाले किसान कानूनी शिकंजे में आ सकते हैं. सीधे शब्दों में कहें तो हरियाणा के किसान अगर 15 जून से पहले धान की रोपाई करते हैं तो उनकी लागत और मेहनत तो जाएगी ही, जुर्माना ऊपर से लगेगा. हरियाणा सरकार ने कैथल जिले के गुहला चीका में ऐसी ही एक कार्रवाई की है. जिसमें रोपी गई धान की फसल को कृषि विभाग के अधिकारियों ने ट्रैक्टर से नष्ट कर दिया.
दरअसल, यह कार्रवाई हरियाणा उप मृदा जल संरक्षण अधिनियम (Haryana Preservation of Sub Soil Water Act- 2009) के तहत की गई. यह एक्ट किसानों को 15 मई से पहले धान की नर्सरी लगाने और 15 जून से पहले धान की रोपाई करने से रोकता है ताकि जल स्तर में कमी को रोका जा सके. ऐसा ही एक्ट पंजाब में भी बना हुआ है. ये दोनों राज्य भूजल संकट का सामना कर रहे हैं.
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उपमंडल कृषि अधिकारी डॉ. पुष्पेंद्र कुमार ने गांव बलबेहड़ा गांव में एक किसान द्वारा रोपी गई धान की फसल को ट्रैक्टर से नष्ट करवाया. कहा कि इस अधिनियम के तहत 15 जून से पहले धान की रोपाई करना प्रतिबंधित है. यदि कोई किसान इस अधिनियम की अवमानना करते हुए पाया गया तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी करवाई की जाएगी. ऐसे किसानों पर 10 हजार रुपये प्रति एकड़ का जुर्माना लगाया जाएगा और धान की रोपाई नष्ट करने का खर्च भी किसान से वसूला जाएगा.
डॉ. पुष्पेंद्र ने कहा कि गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए सरकार ने किसानों के हित के लिए ही यह अधिनियम बनाया हुआ है. जिसके चलते किसानों को चेताया जा रहा है कि वे धान की रोपाई करने में जल्दबाजी न करें और कानूनी कार्रवाई से बचें. सही समय पर धान की रोपाई करके किसान गिरते भूजल स्तर को रोक सकते हैं. धान रोपाई का सही समय 15 जून से 30 जुलाई तक होता है. भूजल बचाने को लेकर सरकार काफी चिंतित है. इसलिए वो धान की सीधी बिजाई को प्रमोट कर रही है. धान की खेती न करने पर 7000 रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा दे रही है.
हरियाणा में जल संकट गहरा रहा है. यहां के कुल 7287 गांवों में से 3041 पानी की कमी से जूझ रहे हैं. यानी करीब 42 फीसदी गांवों के लोगों ने पानी के संकट का सामना करना शुरू कर दिया है. सूबे के 1948 गांव तो ऐसे हैं जो गंभीर जल संकट को झेल रहे हैं. इसकी वजह से सबसे बड़ी चुनौती खेती में आने वाली है. क्योंकि भारत में करीब 90 परसेंट भू-जल का इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में होता है. इसलिए इस समस्या का समाधान भी किसानों के जरिए ही करने का प्रयास किया जा रहा है. उनसे धान की खेती छोड़ने को कहा जा रहा है, क्योंकि एक किलो चावल तैयार होने में करीब 3000 लीटर पानी खर्च होता है. इसी कड़ी में समय से पहले रोपाई को भी रोका जा रहा है.
दरअसल, हरियाणा से पहले पंजाब ने ऐसा ही कानून बनाया था. साल 2009 में, पंजाब देश का पहला ऐसा राज्य बन गया था जिसने निर्धारित समय से पहले धान की बुवाई पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून बनाया था. इसके तहत किसानों को 10 मई से पहले नर्सरी लगाने और 10 जून से पहले रोपाई करने पर रोक है. पंजाब प्रिजर्वेशन ऑफ सब-स्वायल वाटर एक्ट (Punjab Preservation of Subsoil Water Act, 2009) के तहत पंजाब सरकार के पास धान की खेती को नियंत्रित करने का अधिकार हैं.
हालांकि, किसान संगठनों का कहना है कि देर से बुवाई और रोपाई करने पर धान की कटाई में देरी होती है. जिससे किसानों के सामने अगली फसल यानी गेहूं के लिए अपने खेतों को तैयार करने का बहुत कम समय बचता है. ऐसी स्थिति में किसान पराली को आग लगाते हैं और हंगामा मचता है. ऐसे में यह अधिनियम भी कहीं न कहीं किसानों के रास्ते में बाधा बन रहा है. सरकार के इस एक्ट की वजह से पराली जलाने की समस्या बढ़ती है और उसका सारा दोष किसानों पर जाता है.
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