
गेहूं के दाम ने इस वर्ष भी पिछले साल जैसा ट्रैक पकड़ लिया है. कई शहरों में भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी ऊपर चल रहा है. दूसरी ओर एक अप्रैल 2023 को सरकार के पास गेहूं का जो स्टॉक था, वो छह साल में सबसे कम है. तीसरी बात यह है कि 13 महीने से गेहूं एक्सपोर्ट पर बैन लगा हुआ है. चौथी बात यह है कि बफर स्टॉक यानी सेंट्रल पूल के लिए गेहूं खरीद के लक्ष्य से सरकार करीब 79 लाख मीट्रिक टन पीछे है. क्या ये चार फैक्ट मिलकर भारत में गेहूं क्राइसिस की ओर इशारा कर रहे हैं? अगर क्राइसिस नहीं है तो फिर देश में गेहूं का औसत दाम 26 रुपये प्रति किलो से ऊपर क्यों पहुंच गया है? वो भी तब जब केंद्र सरकार ने इस साल बंपर उत्पादन का अनुमान जारी कर दिया है.
कई एग्री एक्सपर्ट किसानों से गेहूं को स्टोर करने और अच्छा दाम मिलने का इंतजार करने की सलाह दे रहे हैं. कुछ किसान स्टोर करके रख चुके हैं तो कुछ एमएसपी से ऊंचे दाम पर व्यापारियों को गेहूं बेच रहे हैं. देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक उत्तर प्रदेश के गांवों में भी इसका भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर पहुंच गया है. इस साल सरकार 2125 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी पर गेहूं खरीद रही है, जबकि बाजार में दाम इससे कहीं अधिक है. दाम का गणित समझने से पहले हमें उत्पादन, खपत और सरकारी खरीद का हिसाब-किताब समझना होगा.
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ऐसे में सवाल ये है कि मांग से अधिक गेहूं रहने के बावजूद दाम में इतनी तेजी क्यों है? कमोडिटी एक्सपर्ट इंद्रजीत पॉल ने इसका जवाब दिया. उनका कहना है कि मार्केट को कंट्रोल में रखने के लिए सरकार के पास जिस तरह का स्टॉक चाहिए वो इस साल नहीं है. सरकार स्टॉक को लेकर अभी कंफर्टेबल जोन में नहीं है. एक अप्रैल 2024 को सरकार के पास बफर स्टॉक मेंटेन रखने के लिए 74.60 लाख मीट्रिक टन गेहूं चाहिए होगा. पीडीएस में देने के लिए इस साल 184 लाख मीट्रिक टन गेहूं जाएगा. जबकि पिछले साल यह 220 लाख टन था.
इस बार सरकार ने इसे घटा दिया है. हालांकि, यह बढ़ भी सकता है. दूसरी ओर, इस साल सरकार गेहूं खरीदने के अपने 341.5 लाख मीट्रिक टन से काफी पीछे है. कुल मिलाकर सरकार के पास गेहूं के भंडार की बहुत अच्छी स्थिति नहीं है. यही नहीं अब धान की फसल पर अलनीनो के इंपैक्ट का भी अंदेशा है. सूखा पड़ा तो उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा.
पॉल का कहना है कि सरकार अगर खरीद का टारगेट पूरा कर लेती तब वो गेहूं के स्टॉक को लेकर कंफर्टेबल जोन में होती. देश में गेहूं पर्याप्त है यह बात सच है. लेकिन यह भी सच है कि गेहूं की महंगाई घटती-बढ़ती है सरकारी स्टॉक की स्थिति से. सरकारी स्टॉक बहुत अच्छा नहीं है इसलिए मार्केट में अभी से गेहूं का दाम तेज है. ट्रेडर पूरे गणित को बहुत अच्छे से जानते और समझते हैं. हालांकि, जब गेहूं बहुत अधिक महंगा होगा तब सरकार पीडीएस में गेहूं की जगह चावल की मात्रा बढ़ाकर काम चला सकती है. तब वो फिर से ओपन मार्केट सेल लाकर दाम घटाने की कोशिश कर सकती है.
उपभोक्ता मामले विभाग के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के अनुसार 10 जून को देश में गेहूं का औसत थोक दाम 2663.6 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है. अधिकतम भाव 4000 और न्यूनतम 1900 रुपये प्रति क्विंटल है. वाराणसी में 2450, महराजगंज में 2400, इटावा में 2280, पीलीभीत में 2250, मुंबई में 3600, जलगांव में 2850, धनबाद में 2700 और मधुबनी में 2300 रुपये प्रति क्विंटल का भाव है.
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