‘उम्मीद है कि भारत में दूध उत्पादन इसी तरह से बढ़ता रहेगा. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि कुछ अन्य बातों के साथ ही दूध और उससे बने आइटम की खपत भी बढ़ाई जाए. इसके लिए सबसे बेहतर प्रोडक्ट है घी. हमे घी पर काम करने की जरूरत है. घी एक आयुर्वेद प्रोडक्ट है. इससे हमारी त्वचा अच्छी होती है, दिमाग भी अच्छा होता है. लेकिन हमे ये बात दूसरे देशों को बतानी होगी. जब इटली ऑलिव आयल के लिए और स्विट्जरलैंड चॉकलेट के लिए अपनी पहचान बना सकता है तो भारत भी घी में विश्व स्तर पर अपनी पहचान कायम कर सकता है.’
ये कहना है इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और अमूल के पूर्व एमडी आरएस सोढ़ी का. किसान तक से बात करते हुए उन्होंने बताया कि आज दुग्ध क्रांति के पितामाह डॉ. वर्गीस कुरियन की तरह से मिल्क रेव्युलेशन-2 चलाने की जरूरत है. इसके तहत हमे कई अहम बिन्दु्ओं पर काम करने की जरूरत है.
आरएस सोढ़ी ने एक बड़े खतरे की तरफ इशारा करते हुए कहा कि आज हमे ग्राहकों को ऐसे आइटम से जागरुक करने की जरूरत है जिनके बारे में दावा किया जाता है कि वो प्लांट बेस्ड हैं. असल में चार-पांच फीसद ही ये प्लांट बेस्ड होते हैं, बाकी तो कैमिकल से तैयार किए जाते हैं. अगर प्लांट बेस्ड आइटम की असलियत के बारे में हम ग्राहकों को समझाने में कामयाब हो गए तो घरेलू बाजार में भी डेयरी प्रोडक्ट की खपत बढ़ जाएगी.
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आरएस सोढ़ी ने बताया कि एक बार फिर से दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए मिल्क रेव्युलेशन-2 शुरू करना होगा. इसके तहत पहले तो दूध का उत्पादन बढ़ाना होगा. फिर प्रोसेसिंग प्लांट को आधुनिक बनाने के साथ उनकी संख्या बढ़ानी होगी. एक्सपोर्ट और घरेलू दोनों स्तर के बाजार का दायरा बढ़ाना होगा. उसके लिए हमे घी पर काम करने की जरूरत है. वहीं सरकार को चाहिए कि वो कोऑपरेटिव, डेयरी वैल्यू चेन और इंफ्रास्ट्रक्चर में बड़ा इंवेस्ट करे.
आरएस सोढ़ी ने बताया कि आज सबसे बड़ी जरूरत किसान को पशुपालन में रोकने की है. तीन-चार गाय-भैंस का पालन करने वाले किसान को कुछ बच नहीं पाता है. दूध की कमाई का एक बड़ा हिस्सा चारे में खर्च हो जाता है. बिजली बहुत महंगी हो गई है. यही वजह है कि आज किसान के बचचे पशुपालन में नहीं आना चाहते हैं. पशुपालन से बेहतर वो नौकरी करना समझते हैं. पशुपालन अनर्गेनाइज्ड होने के चलते दूध उत्पादन की लागत ज्यादा आती है. उत्पादन बढ़ाने से दूध की कीमतें भी कम होंगी.
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आरएस सोढ़ी ने बताया कि दूध की लागत दूध का उत्पादन बढ़ाकर ही कम की जा सकती है. हमारे साइंटिस्ट को ऐसा फीड तैयार करना होगा जिससे खाकर भैंस का दूध उत्पादन बढ़ जाए और फीड भी ज्यादा महंगा न हो. चारा भी ऐसा तैयार करना होगा जिसे खाने के बाद मीथेन गैस का उत्सार्जन कम हो. वहीं पानी और बिजली की खपत कम करनी होगी. गोबर का इस्तेमाल ऐसा हो जिससे पशुपालक को अच्छे दाम मिल जाएं. अच्छी और किफायती ब्रीडिंग टैक्नोलॉजी तैयार करनी होगी.
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