Maize Export: भारतीय मक्के की विदेशों में बढ़ी मांग, इस वजह से अफ्रीकी देश करना चाहते हैं इंपोर्ट

Maize Export: भारतीय मक्के की विदेशों में बढ़ी मांग, इस वजह से अफ्रीकी देश करना चाहते हैं इंपोर्ट

पिछले कुछ दिनों में भारतीय मक्का के निर्यात में थोड़ी कमी आई है, लेकिन कुछ अफ्रीकी देशों में मोटे अनाजों की मांग बढ़ने की वजह से भारतीय मक्के की नए क्षेत्रों से मांग सामने आई है.

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Maize Export: भारतीय मक्के की विदेशों में बढ़ी मांग, इस वजह से अफ्रीकी देश करना चाहते हैं इंपोर्टभारतीय मक्के की विदेशों में बढ़ी मांग

भारतीय मक्के की मांग भोजन और चारा दोनों उद्देश्यों के लिए की जाती है. हालांकि, पिछले कुछ दिनों में भारतीय मक्का के निर्यात में थोड़ी कमी आई है, लेकिन कुछ अफ्रीकी देशों में मोटे अनाजों की मांग बढ़ने की वजह से भारतीय मक्के की नए क्षेत्रों से मांग सामने आई है. दरअसल, बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, नई दिल्ली स्थित एक व्यापार विश्लेषक ने कहा, "अफ्रीकी देश, विशेष रूप से पूर्व में, कम माल ढुलाई खर्च के मद्देनजर भारत से मक्का आयात करना चाहते हैं." हालांकि, ये देश छोटे खेप की मांग कर रहे हैं. एक अन्य क्षेत्र से मक्के की मांग भारत के लिए फायदेमंद है, क्योंकि भारत यहां कंपटीशन कीमत पर इस तरह की खेप निर्यात कर सकता है.

अफ्रीकी देश करना चाहते हैं भारतीय मक्के का आयात

नई दिल्ली स्थित निर्यातक राजेश पहाड़िया जैन ने कहा, "हमने सुना है कि अफ्रीकी देश भारतीय मक्के का आयात करना चाहते हैं, लेकिन हमसे किसी ने डायरेक्ट संपर्क नहीं किया है." मुंबई स्थित मुबाला एग्रो के निदेशक मुकेश सिंह ने कहा, “आमतौर पर, दुबई स्थित व्यापारी अफ्रीका को मक्के का निर्यात करते हैं. हमने सुना है कि अफ्रीकी भारतीय मक्का आयात करना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास कोई डायरेक्ट ऑर्डर नहीं आया है.” 

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कारोबारियों ने कहा कि हालांकि, भारतीय मक्के की मांग अच्छी है, लेकिन इस सप्ताह सौदे कम हुए हैं. एग्री कमोडिटीज एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (ACEA) के अध्यक्ष एम मदन प्रकाश ने कहा, “पिछले हफ्ते, हमें वियतनाम से अच्छे ऑर्डर मिले. इस सप्ताह, गति धीमी है.”

माल ढुलाई शुल्क कम होने कि वजह से इस साल भारतीय मक्का की मांग दक्षिण-पूर्व एशिया और खाड़ी देशों से अच्छी रही है. इसने अब अफ्रीकी देशों को भारत से अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया है. 

एमएसपी से ज्यादा कीमत 

दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय मक्के की कीमत 308-311 डॉलर प्रति टन है, जबकि निर्यातकों को बंदरगाहों पर 23,000-24,000 रुपये प्रति टन पर डिलीवरी मिल रही है. मक्के का भारित औसत मूल्य 2,163.77 रुपये प्रति क्विंटल है, जो एक सप्ताह पहले 2,222.3 रुपये और एक साल पहले इसी अवधि के दौरान 1,921.76 रुपये प्रति क्विंटल था. कीमतें इस फसल वर्ष से जून तक के लिए निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,962 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक हैं.

शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड में, मंगलवार को मई में डिलीवरी के लिए मक्का 680 सेंट बुशल ($ 266.7 प्रति टन) पर समाप्त हुआ. फरवरी में मक्के की कीमतों में दो फीसदी से ज्यादा की तेजी आई है.

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प्रकाश ने कहा, "तूतीकोरिन बंदरगाह पर डिलीवरी के लिए कीमतों में गिरावट आई है क्योंकि तमिलनाडु में कटी हुई फसल का आगमन शुरू हो गया है."

जैन ने कहा, “मक्का एक ऐसी फसल है जिसकी खेती सालभर होती है और इसकी कटाई किसी न किसी राज्य में होती है. हालांकि, मांग में सुस्ती को देखते हुए कारोबार सपाट है.'’ सिंह ने कहा, “मक्के की मांग अभी दो महीने से अच्छी है. कुछ अभी भी मांग को पूरा करने में लगे हुए हैं. खरीफ की आवक लगभग खत्म हो गई है, कुछ पुराने स्टॉक से कर रहे हैं.” कृषि मंत्रालय द्वारा 34.61 मिलियन टन  अनुमानित खरीफ मक्के के रिकॉर्ड उच्च उत्पादन से मोटे अनाज के निर्यात में सहायता मिली है.

मक्के का कम वैश्विक उत्पादन

इंटरनेशनल ग्रेन काउंसिल (आईजीसी) के अनुसार, अर्जेंटीना 314 डॉलर और ब्राजील 310 डॉलर पर मक्के को खरीद  रहा है, जबकि अमेरिका 300 डॉलर (सभी फ्री-ऑन-बोर्ड) की पेशकश कर रहा है. वहीं आईजीसी ने इस साल वैश्विक मक्का उत्पादन एक साल पहले के 1,220 मिलियन टन के मुकाबले 1,153 मिलियन टन रहने का अनुमान लगाया है. खाद्य और कृषि संगठन ने इसे 1,153 मिलियन टन बनाम 1,211.8 मिलियन टन होने का अनुमान लगाया है. इस साल उत्पादन कम है, क्योंकि यूरोप, रूस और अमेरिका में फसल प्रभावित हुई है.

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बांग्लादेश भारतीय मक्के का सबसे बड़ा आयातक

चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-नवंबर अवधि के दौरान 653.36 मिलियन डॉलर मूल्य के 19.53 लाख टन मक्के का निर्यात किया गया है. वहीं 2021-22 में, $1.02 बिलियन के मूल्य पर 36.90 लाख टन का निर्यात किया गया. इस अवधि के दौरान बांग्लादेश भारतीय मक्के का सबसे बड़ा आयातक रहा है, जिसने 11.5 लाख टन मक्के को खरीदा, जबकि नेपाल ने इस अवधि के दौरान 2.7 लाख टन और वियतनाम ने 2.3 लाख टन खरीदा.

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