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Wheat Price: गेहूं का दाम घटाने पर सरकार ने लगाया पूरा जोर, ऐसे में कैसे बढ़ेगी क‍िसानों की आय?

Wheat Price: गेहूं का दाम घटाने पर सरकार ने लगाया पूरा जोर, ऐसे में कैसे बढ़ेगी क‍िसानों की आय?

Farmers Income: गेहूं का दाम घटाने की सरकारी कोश‍िश के पीछे तर्क यह है क‍ि इससे महंगाई कम होगी. लेकिन महंगाई कम करने की ज‍िम्मेदारी स‍िर्फ क‍िसानों के कंधे पर ही क्यों होनी चाहिए? वह भी तब, जबकि आज की तारीख में देश में क‍िसानों की औसत शुद्ध आय मात्र 28 रुपये प्रत‍िद‍िन है? 

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ऐसी नीत‍ियों से कैसे बढ़ेगी क‍िसानों की आय? ऐसी नीत‍ियों से कैसे बढ़ेगी क‍िसानों की आय?

केंद्र सरकार का क‍िसानों की आय (Farmers Income) डबल करने पर जोर है, ताकि गांवों की स्थिति में सुधार हो और देश के 14 करोड़ से ज्यादा किसान परिवारों के घर में खुशहाली आए. लेकिन गेहूं को लेकर बन रही सरकारी नीतियों ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीर खींच दी है. रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं का दाम घटाने पर सरकारी सिस्टम ने पूरा जोर लगा द‍िया है. कारण यह है कि इस समय ओपन मार्केट में गेहूं का 3300 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक का औसत भाव चल रहा है. जबक‍ि भारतीय खाद्य न‍िगम ने ओपन मार्केट सेल के तहत र‍ियायती दर पर बेचे जाने वाले गेहूं का दाम अब स‍िर्फ 2125 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल कर द‍िया है. यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बराबर. ऐसे में सवाल यह उठता है क‍ि क‍िसानों की इनकम डबल कैसे होगी? क‍िसान पूछ रहे हैं क‍ि दाम घटाकर इनकम डबल करने का सरकार के पास कौन सा फार्मूला है. 

यह बात भी सच है कि गेहूं का मूल्य (Wheat Price) बढ़ने से महंगाई बढ़ेगी, लेकिन महंगाई कम करने की ज‍िम्मेदारी स‍िर्फ क‍िसानों के कंधे पर ही क्यों होनी चाहिए? वह भी तब, जबकि आज की तारीख में देश में क‍िसानों की औसत शुद्ध आय मात्र 28 रुपये प्रत‍िद‍िन है. तर्क यह है कि देश का गरीब वर्ग पहले ही सस्ता अनाज खा रहा है. सरकार का ही दावा है क‍ि 80 करोड़ से अध‍िक लोगों को फ्री या फ‍िर दो-तीन रुपये क‍िलो के नाम मात्र के शुल्क पर अनाज उपलब्ध करवाया जा रहा है.

ऐसे में सवाल यह उठता है क‍ि फ‍िर गेहूं का दाम क‍िसके ल‍िए कम क‍िया जा रहा है. क्या महंगाई स‍िर्फ गेहूं का दाम कम करने से खत्म हो जाएगी. जब रबी सीजन की मुख्य फसल का दाम ही कम करने की इतनी कोश‍िश की जाएगी तो फ‍िर क‍िसानों की आय कैसे बढ़ेगी? इस बारे में जब हमने डबल‍िंग फार्मर्स इनकम कमेटी के सदस्य रहे और वर्तमान में बीजेपी के राज्यसभा सांसद व‍िजयपाल तोमर से बात की तो उन्होंने चुप्पी साध ली. क‍िसान नेता रामपाल जाट कहते हैं क‍ि सरकार की दोहरी नीत‍ियों के बीच क‍िसान प‍िस रहा है. ज‍िस फसल का दाम घट जाए उसका कोई माई-बाप नहीं है, ले‍क‍िन यद‍ि क‍िसी का भाव बढ़ जाए तो उसे घटाने के ल‍िए पूरा तंत्र सक्रिय हो जाता है. 

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ऐसी नीत‍ियों से प‍िस रहा क‍िसान

क‍िसान शक्त‍ि संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र स‍िंह का कहना है क‍ि सरकार एक तरफ कहती है क‍ि वो एमएसपी की गारंटी नहीं देगी. ओपन मार्केट में क‍िसानों को अच्छा दाम म‍िलेगा. लेक‍िन जब ओपन मार्केट में दाम बढ़ने लगता है तो वो परेशान होने लगती है. साल 2022 में जब रूस-यूक्रेन युद्ध और हीट वेव के असर से दाम बढ़ने लगा तब क‍िसानों के ल‍िए कमाई का मौका था. लेक‍िन केंद्र ने 13 मई से गेहूं और 12 जुलाई 2022 से आटा, मैदा और सूजी के एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी. इससे क‍िसानों को आर्थ‍िक चोट पहुंची. अब 30 लाख टन का ओपन मार्केट सेल और सस्ता आटा बाजार में लाकर अप्रैल में आने वाले नए गेहूं के दाम को कम करवाने के ल‍िए माहौल बनाया जा रहा है. जो क‍िसानों की आर्थ‍िक सेहत के ल‍िए ठीक नहीं है.

क‍िसानों पर आर्थ‍िक चोट

स‍िंह का कहना है क‍ि ओपन मार्केट सेल से कुछ शहरी उपभोक्ताओं को राहत म‍िलेगी, लेक‍िन क‍िसानों को नुकसान नहीं बल्कि भयंकर नुकसान होगा. इसका असर अप्रैल में आने वाली गेहूं की नई फसल पर पड़ेगा. गेहूं की ओपन मार्केट सेल लाकर उसे 2125 रुपये क्व‍िंटल के दाम पर बेचने के पीछे असली मंशा तो यही है क‍ि अप्रैल तक दाम घट जाए, ताक‍ि बफर स्टॉक के ल‍िए एमएसपी पर खरीद हो सके. आख‍िर कृष‍ि उपज का ही दाम घटाने के ल‍िए ही सरकार क्यों इतनी बेचैन रहती है. जबक‍ि ऐसा करने से क‍िसानों को सीधे तौर पर आर्थिक चोट पहुंचती है. दाम घटाने की यह कोश‍िश क‍िसानों के ह‍ित के ख‍िलाफ है.

क‍िसानों की आय का ऐसा है हाल.
क‍िसानों की आय का ऐसा है हाल.

क्या दाम घटाने में जल्दबाजी हो रही है? 

जुलाई-2021 में सोयाबीन का दाम 10 हजार रुपये प्रत‍ि क्विंटल तक पहुंच गया था. तब इसका एमएसपी 3950 रुपये क्व‍िंटल ही था. महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे बड़े सोयाबीन उत्पाद सूबों के क‍िसान खुश थे. लेक‍िन, पोल्ट्री इंडस्ट्री परेशान हो गई. उसकी परेशानी को देखते हुए सरकार ने अगस्त 2021 में 12 लाख मिट्रिक टन सोयामि‍ल (सोयाबीन की खली) इंपोर्ट की अनुमति दे दी. इस आदेश के तीन-चार द‍िन बाद ही दाम 2000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक कम हो गए. इस सरकारी नीति ने पोल्ट्री इंडस्ट्री के ह‍ितों के ल‍िए क‍िसानों की कमाई पर सीधी चोट की.

इस समय महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में प्याज और लहसुन का भाव जमीन पर है. कहीं 2 तो कहीं स‍िर्फ पांच रुपये प्रत‍ि क‍िलो का दाम म‍िल रहा है. पूरे साल क‍िसान सरकार से दाम बढ़वाने की अपील करते रहे. लेक‍िन, सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. जब प्याज का दाम बढ़ता है तो उसे घटाने की कोश‍िश शुरू हो जाती है, लेक‍िन एक कड़वी सच्चाई यह है कि जब दाम 100-200 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक रह जाता है तब क‍िसानों की चिंता कोई नहीं करता. एक बार भी अफसरों की बैठक नहीं होती क‍ि दाम कैसे बढ़ेगा. ऐसी नीत‍ियों की वजह से ही आज क‍िसानों की इनकम चपरासी से भी कम रह गई है.  

इस समय क‍िसानों को 7000 से 8000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक कॉटन का दाम म‍िल रहा है. जो प‍िछले साल से पांच-छह हजार रुपये कम है. इसके बावजूद कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया परेशान है क‍ि इसका इतना दाम क्यों? उसका तर्क है क‍ि साल 2022-23 के ल‍िए कॉटन की एमएसपी 6380 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल है. जब दाम एमएसपी से कम रहता था तो उसे बढ़ाने के ल‍िए कॉटन एसोस‍िएशन ऑफ इंड‍िया ने कुछ नहीं क‍िया. लेक‍िन दाम एमएसपी से ऊपर जाते ही उसे द‍िक्कत होने लगी है. एसोस‍िएशन ने वाणिज्य और कपड़ा मंत्री से कॉटन पर 11 फीसदी आयात शुल्क तत्काल प्रभाव से खत्म करने का आग्रह किया है. हालांक‍ि, सरकार ने इस पर अभी कोई फैसला नहीं ल‍िया है. 

दोहरी चाल न चले सरकार

क‍िसान शक्त‍ि संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र स‍िंह का कहना है क‍ि सरकार अगर वाकई क‍िसानों की आय बढ़ाने की समर्थक है तो दोतरफा चालें न चले. जब क‍िसान एमएसपी गारंटी की बात करते हैं तब सरकार उसे देने से इनकार करती है. सरकार में शाम‍िल लोग और उसके समर्थक खुले बाजार की पैरोकारी करते हैं. लेक‍िन जब क‍िसी फसल का दाम खुले बाजार में बढ़ने लगता है तब उसको घटाने की कोश‍िश शुरू हो जाती है. यह कौन सी नीत‍ि है? सरकार इनकम बढ़ाना चाहती है तो फ‍िर गेहूं का भाव घटाने के ल‍िए इतना जोर क्यों लगा रही है. सरकार को साफ करना चाह‍िए क‍ि वो क‍िसानों की इनकम बढ़ाना चाहती है या घटाना?   

क‍िसानों पर कर्ज का बोझ

चीनी म‍िलों पर मेहरबानी, क‍िसानों से परेशानी 

क‍िसान फसलों के न्यूनतम दाम की गारंटी मांग रहे हैं. लेक‍िन, सरकार ऐसा करने से मना कर रही है. क‍िसानों का कहना है क‍ि उनकी सभी फसलों की उत्पादन लागत के ह‍िसाब से मुनाफा जोड़कर न्यूनतम दाम फ‍िक्स कर द‍िया जाए. उससे कम पर कोई भी व्यक्त‍ि उसे खरीद न सके. लेक‍िन, सरकार और उसके समर्थकों का कहना है क‍ि ऐसा संभव नहीं है. सरकार के कुछ समर्थक तो यहां तक कहते हैं क‍ि गारंटी देने से भारत की इकोनॉमी पाक‍िस्तान से भी बदतर हो जाएगी. 
 
दूसरी तरफ, चीनी म‍िलों को हो रहे घाटे की भरपाई के ल‍िए सरकार ने उसी रास्ते का इस्तेमाल क‍िया, जो क‍िसान कह रहे हैं. चीनी की कीमतों में कमी के कारण मिलों को होने वाले नकद नुकसान को रोकने के लिए सरकार ने जून, 2018 में चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू कर दी थी. इसके तहत घरेलू खपत के लिए म‍िल से 31 रुपये प्रत‍ि क‍िलो से कम दाम पर चीनी नहीं म‍िलती. सवाल यह है क‍ि जब ओपन मार्केट में एमएसपी से ऊपर बढ़ते दाम को आप कम कर रहे हैं तो फ‍िर चीनी म‍िलों की तरह न्यूनतम दाम की गारंटी देने में परहेज क्यों है?

क‍िसानों को क‍ितना नुकसान?

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है क‍ि आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD)  की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2016-17 के बीच भारतीय किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम न मिलने की वजह से लगभग 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. यह नुकसान ऐसी ही नीत‍ियों की वजह से हुआ है. जब क‍िसानों को अच्छा दाम म‍िलने की बारी आती है तब पूरी व्यवस्था उसके ख‍िलाफ खड़ी हो जाती है. क‍िसानों को उनके हक का यह पैसा म‍िलता तो वह स्व‍िस बैंक में नहीं जाता. वह बाजार में खर्च होता और हमारी इकोनॉमी के ल‍िए बूस्टर डोज का काम करता. 

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