
कहानी है उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की. जिले के नून्नू खेड़ा गांव में रहते हैं ब्रजपाल. ब्रजपाल को जरूरत पड़ी लोन लेने की. वो बैंक गए. वहां जाकर उनका सिर घूम गया. उनको बताया गया कि उनके नाम तो दो-दो बैंकों से लोन पहले से चल रहे हैं. पहले का मतलब दो-चार महीना पहले से नहीं, दस साल पहले से. लोन भी जिस बैंक से लिया गया, वो न तो मुजफ्फरनगर में है, न उत्तर प्रदेश में. वो बैंक हैं हरियाणा में.
यह है कहानी का सार. इस पूरे मामले की जानकारी मिली किसान तक को. किसान तक ने तय किया कि हम कहानी की जड़ तक जाएंगे. तो हम गए. मुजफ्फरनगर गए, हरियाणा के महेंद्रगढ़ गए. जिन-जिन जगहों से कहानी के तार जुड़े थे, सब जगह गए. जिन-जिन लोगों से मिलना जरूरी थी, सबसे मिले. इन सबसे मिलकर जो सच सामने आया, अब वो आपके सामने पेश-ए खिदमत है.
आम आदमी लोन लेने जाए तो चप्पल घिस जाती हैं. जरूरी दस्तावेज जमा करते-करते लोन आवेदन की फाइल डेढ़ से दो किलो की तो हो ही जाती है. इतने पर भी बैंक अफसरों के सामने जी सर-जी सर करते रहना पड़ता है. लेकिन इतना सब करना इस बात की कतई गारंटी नहीं है कि लोन हो ही जाएगा. और भी ऐसी शर्त होती हैं जिन्हें पूरा करने पर ही लोन की फाइल मंजिल तक पहुंचती है.
लेकिन ब्रजपाल ऐसे किसान हैं, जो बैंक गए ही नहीं, लोन के लिए आवेदन दिया नहीं. बैंक ने जरूरी दस्तावेज जमा करने को नहीं कहा. बैंक के भी चक्कर नहीं लगाए. किसी अफसर के सामने जी सर-जी सर नहीं की. यहां तक की किसी ने कुछ खास शर्तें भी पूरी करने को नहीं कहा. बावजूद इसके किसी एक बैंक ने नहीं दो-दो बैंक ने किसान के नाम लोन जारी कर दिया, वो भी एक नहीं कई बार.
अब बात शुरुआत से. सोशल मीडिया पर किसान की परेशानी सामने आई. किसान तक की टीम ने तय किया कि इस मामले की जड़ तक पहुंचेंगे. रास्ते में हमने जहां भी ब्रजपाल का नाम लेकर उनका घर पूछा तो सभी ने एक बात कहीं, ‘वो ही ब्रजपाल जिस पर 25 लाख का लोन है.’ लेकिन इस तरह से हम बड़ी ही आसानी से उनके घर पहुंच गए. दो-तीन लोग ब्रजपाल के पास बैठे हुए थे. उन्हें समझा रहे थे कि कुछ नहीं होगा. जब हमने दिल्ली से आने का मकसद बताया तो एक उम्मीद के साथ उन्होंने हमें सारी बात बताई.
लोन की रकम ने किसान ब्रजपाल को घर में कैद होने पर मजबूर कर दिया. वह समझ नहीं पा रहे थे कि उनके साथ हुआ क्या है. रकम भी थोड़ी बहुत नहीं. ब्याज के साथ 25 लाख रुपये की हो चुकी थी. जायदाद के नाम पर पास में खेत के अलावा एक पुराना बना मकान था. अगर दोनों को बेच दें तब भी लोन नहीं चुकना था. लेकिन किसान की वीडियो वायरल होने के बाद जब किसान तक ने इस लोन की पड़ताल की तो एक बेहद चौंकाने वाली कहानी सामने आई.
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मुजफ्फरनगर शहर से करीब 25 किमी दूर है नून्नू खेड़ा गांव. किसान ब्रजपाल पुत्र सुमेर सिंह इसी गांव के रहने वाले हैं. उम्र करीब 65 साल है. गांव में एक छोटा सा मकान है. खेती के लिए 8.5 बीघा जमीन है. इसकी कीमत करीब 20 लाख रुपये है. पशुओं के नाम पर एक भैंस है, जिससे घर में ही दूध की जरूरत पूरी हो जाती है. घर भी कई साल से मरम्मत मांग रहा है, इसी की जुगाड़ में ब्रजपाल गांव के पास ही मौजूद पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) गए थे. यहां भी इसलिए गए क्योंकि इसी बैंक से उनका किसान क्रेडिट कार्ड बना हुआ है, साथ ही पिता के जमाने से जमीन के कागज रख हर साल इस बैंक से लाख-दो लाख का लोन लेते रहते हैं. वक्त से चुका भी देते हैं तो बैंक में साख बनी हुई है. ब्रजपाल आज से दो महीने पहले हमेशा की तरह से बैंक लोन मांगने गए. इस बार लोन की रकम 3.5 लाख रुपये थी.
इस पर बैंक ने कहां आपकी डिमांड ज्यादा है तो आप तहसील से 12 साला कागज बनवा लाइए. ये जमीन से जुड़ा दस्तावेज होता है. ब्रजपाल ने तुरंत कागज बनवाकर बैंक में जमा कर दिया. कुछ दिन बाद बैंक ने उन्हें बुलाकर बताया कि आप तो पहले ही दो बैंकों के कर्जदार हैं. आप पर करीब 21 लाख रुपये का लोन है. आप लोन भी नहीं चुका रहे हैं तो वो अब ब्याज के साथ करीब 25 लाख रुपये का हो गया है. ब्रजपाल तो ये सुनकर बेहोश होते-होते बचे. साथ में मौजूद बेटे ने किसी तरह उन्हें संभाला. बैंक अफसर ने बताया कि आपका सिबिल स्कोर बता रहा है कि आप डिफॉल्टर हैं. ये सब सुनने के बाद बेटा पिता ब्रजपाल को घर ले आया.
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बैंक की सारी बातें सुनने के बाद बदनामी के डर से करीब एक-डेढ़ महीना तक ब्रजपाल खामोश होकर घर में ही बैठे रहे. लोन मांगने के दौरान ही ब्रजपाल ने पास रखे कुछ पैसों से घर बनवाने के लिए रेत भी मंगवाकर रखी हुई थी. लेकिन जब रेत आने के कई दिनों बाद भी घर का काम शुरू नहीं हुआ तो साथ के लोगों ने पूछना शुरू कर दिया. किसी तरह लोन वाली बात लोगों को पता चल गई. इस दौरान किसी ने सलाह दी कि किसान नेता राकेश टिकैत से मिल लो. राकेश टिकैत ने सारी बात सुनने के बाद किसान के साथ एक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया.
पीएनबी बैंक द्वारा निकाले गए सिबिल स्कोर पर ब्रजपाल को लोन देने वाले बैंक का नाम और लोन अकाउंट नंबर था, लेकिन उसका पता और आईएफएससी कोड नहीं था. पता पीएनबी के अफसर भी नहीं बता सके. किसान तक ने लोन अकाउंट नंबर से ही उन बैंक ब्रांच को खोजना शुरू किया. हालांकि ये काम इतना आसान नहीं था, लेकिन पीड़ित किसान के लिए किसान तक ने ये जिम्मेदारी उठाई थी कि उसे राहत दिलाने की पूरी कोशिश करेंगे. बस इसी के चलते हमने अपनी पड़ताल शुरू की तो बैंक ब्रांच करीब 500 किमी दूर महेन्द्रगढ़, हरियाणा जिले के निकले. एक सरकारी बैंक शहर में ही था तो दूसरी प्राइवेट बैंक शहर से करीब 30 किमी दूर सतनाली कस्बे में थी. लोन की हकीकत जानने के लिए किसान तक की टीम का अगला पड़ाव था महेन्द्रगढ़ जहां हम पहुंच भी गए...
नोट- अब इस मामले से जुड़ा आगे का किस्सा हम कल आपको आने वाली खबर की दूसरी किस्त में बताएंगे.
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