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खेती छोड़ क‍िसान ने शुरू क‍िया रेशम उत्पादन...जानें फायदा हुआ या नुकसान? 

खेती छोड़ क‍िसान ने शुरू क‍िया रेशम उत्पादन...जानें फायदा हुआ या नुकसान? 

Sericulture: किसान नाना पाटिल के पास पांच एकड़ जमीन है, ज‍िसमें से उन्होंने दो एकड़ रेशम की खेती में लगाया. केले और कपास की खेती में कुछ वर्षों से लाभ नहीं म‍िल रहा था. क्योंक‍ि दोनों का उच‍ित दाम नहीं म‍िल रहा था. इसल‍िए उन्होंने एक नया रास्ता चुना. 

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रेशम की खेती से किसानों को हो रहा हैं अच्छा मुनाफा रेशम की खेती से किसानों को हो रहा हैं अच्छा मुनाफा

महाराष्ट्र में किसान अब पारंपरिक खेती को छोड़कर कृषि में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं. कुछ क‍िसान खेती का सेट पैटर्न बदल रहे हैं तो वहीं कुछ क‍िसान नई टेक्नोलॉजी पर भरोसा कर रहे हैं. ऐसा ही कुछ नया प्रयोग जलगांव जिले के जामनेर तालुका स्थ‍ित देव पिंपरी गांव में रहने वाले किसान नाना पाटिल ने क‍िया है. जलगांव की पहचान केला और कपास की खेती के लिए होती है, लेकिन नाना पाटिल ने पारंपरिक खेती छोड़ रेशम उत्पादन में हाथ आजमाया. अब इससे उन्हें पारंपर‍िक फसलों के मुकाबले अच्छा मुनाफा हो रहा है. उन्होंने क्षेत्र के दूसरे किसानों के लिए मिसाल कायम की है. उनका मानना है क‍ि फसल और खेती के पैटर्न में बदलाव बहुत जरूरी है. 

किसान नाना पाटिल बताते हैं कि उनके पास पांच एकड़ जमीन है, वो पहले पारंपरिक तरीके से केले और कपास की खेती करते थे, लेकिन कुछ सालों से उन्हें इन दोनों फसलों का उचित भाव नहीं मिलने से नुकसान झेलना पड़ रहा था. पाटिल बताते हैं क‍ि इन फसलों की खेती करने में कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था. कभी मजदूरी की समस्या, कभी फसलों पर बीमारी, कभी फसल का दाम न मिलने जैसी अनेक समस्याओं को देखते हुए उन्होंने रेशम की खेती का विकल्प चुना. 

कितना आया खर्च 

पाटिल कहते हैं कि पारंपरिक खेती में हर साल आने वाली इन मुश्किलों के चलते उन्होंने रेशम की खेती की ओर रुख किया. अपनी पांच एकड़ में से दो एकड़ जमीन में रेशम की खेती की. रेशम उत्पादन के लिए उन्होंने पूरी तरह से जैविक तरीकों का इस्तेमाल करते हुए शहतूत लगाया. पानी और खाद की उचित योजना बनाकर पाटिल अच्छी गुणवत्ता वाली शहतूत की पत्तियों का उत्पादन करने में सफल रहे. 

शहतूत लगाने के बाद उन्होंने अपने दो एकड़ खेत में रेशम के कीड़ों के लिए 30 गुणा 50 फीट का शेड बनवाया. इसके लिए उन्हें कुल पांच लाख रुपये खर्च क‍िए. हालांक‍ि, इसकी खेती के ल‍िए सरकारी योजना से उन्हें तीन चरणों में अनुदान भी मिला था. इसके चलते उनकी जेब पर इस खर्च का बोझ नहीं पड़ा. 

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कितना मिल रहा है मुनाफा 

पाटिल बताते हैं कि जैसे सिल्क एग कोशा की कीमत कभी 50 हजार, कभी 80 हजार रुपये प्रति क्विंटल होती है तो उन्हें औसतन सत्तर से अस्सी हजार रुपये प्रति माह का मुनाफा हो जाता है. पाटिल का मानना ​​है कि रेशम उत्पादन आय का एक स्थायी स्रोत है. इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है. वो कहते हैं क‍ि पहले केले और कपास की फसल के लिए बहुत मेहनत करने पर भी पर्याप्त आय नहीं होती थी, इसके अलावा मजदूरों की कमी के कारण कृषि कार्य में हमेशा तनाव बना रहता था. 

पारंपरिक खेती में एक साल मेहनत करने के बाद भी भरोसा नहीं था कि हाथ में पैसा बचेगा या भी नहीं. लेकिन अब महज बाईस दिन में रेशम उत्पादन से इतनी आमदनी हो रही है, जितनी दूसरी फसलों से नहीं होती. पाटिल की पत्नी सुरेखा पाटिल ने कहा है कि रेशम खेती में कम श्रम की आवश्यकता होती है और अच्छा लाभ भी मिलता है.