Bamboo Day: छह साल में जंगल से होटल-रेस्टोरेंट और घर के ड्राइंग रूम तक पहुंचा बांस, जानें डिटेल

Bamboo Day: छह साल में जंगल से होटल-रेस्टोरेंट और घर के ड्राइंग रूम तक पहुंचा बांस, जानें डिटेल

इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश के साइंटिस्ट का कहना है कि देश के सभी राज्यों में बांस की अलग-अलग किस्म पैदा होती है. इस वक्त देश में बांस की करीब 100 से ज्यादा किस्म हैं. सभी का इस्तेमाल खासतौर पर कमर्शियल यूज में हो रहा है.

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Bamboo Day: छह साल में जंगल से होटल-रेस्टोरेंट और घर के ड्राइंग रूम तक पहुंचा बांस, जानें डिटेलसबसे ऊंचा और मोटा बांस. फोटो क्रेडिट-किसान तक

अगर छह साल पहले की बात करें तो बांस यानि बैम्बू सिर्फ जंगल में ही नजर आता था. लेकिन आज होटल-रेस्टोरेंट से लेकर घर के ड्राइंग रूम और यहां तक की छोटे से लेकर बड़ी इंडस्ट्री में चारों तरफ बांस ही बांस नजर आने लगा है. जबकि बीते कुछ वक्त पहले तक बांस का इस्ते माल सिर्फ कुछ खास जगहों पर ही होता था. अब तो बाजार में आप जिस चम्मच से आइसक्रीम खा रहे हैं वो भी बांस के बने आ रहे हैं. इंटीरियर के कारोबार में भी बांस फिट हो चुका है. बाजार और मेले-हॉट में जगह-जगह बांस के बने शोपीस आइटम बिकने लगे हैं.  

फॉरेस्ट एक्सपर्ट की मानें तो साल 2017 तक बांस फारेस्ट क्रॉप में शामिल था. इसे काटने के लिए वन विभाग से अनुमति लेनी होती थी. लेकिन 2017 में ही वन विभाग ने अपने एक्ट में बदलाव कर इसे कमर्शियल क्रॉप में शामिल कर दिया है. यही वजह है कि अब किसान ही नहीं बड़ी-बड़ी कंपनियां भी बांस के कारोबार में शामिल हो गई हैं. 

ऐसे प्रदूषण को कम कर रहा है बांस 

आईएचबीटी के साइंटिस्ट डॉ. रोहित मिश्रा ने किसान तक से बातचीत में बताया कि कुछ वक्त पहले की बात करें तो चाउमीन, आइसक्रीम, और जूस-शेक को मिलाने के लिए प्लास्टिक के चम्मच-कांटे और स्टिक का इस्तेमाल होता था. अच्छी बात ये है कि प्रदूषण फैलाने वाले प्लास्टिक के वो आइटम अब बाजार से काफी हद तक बाहर हो गए हैं. उनकी जगह बांस ने ले ली है. स्ट्री्ट फूड में अब बांस के बने चम्मच-कांटे और स्टिक इस्तेमाल हो रहे हैं.

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इतना ही नहीं जिस अगरबत्ती के कारोबार में लकड़ी की बनी स्टिक इस्तेमाल की जाती थी, वहां भी अब बांस की स्टिक अगरबत्ती में लगाई जा रही हैं. मोसो बांस अगरबत्ती‍ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. इसकी एक बड़ी खासियत ये भी है कि यह जलने पर कम कार्बन मोनो ऑक्साइड छोड़ता है. मतलब प्रदूषण कम होता है. 

बांस के पौधे से सजाए जा रहे हैं घर

डॉ. रोहित मिश्रा का कहना है कि खूबसूरत दिखाने के लिए बांस के पौधे घर में भी खूब सजाए जा रहे हैं. इन्हें ऑर्नामेंटल बैम्बू कहा जाता है. इसकी छह वैराइटी आती हैं. फूलों के मुकाबले इनकी केयर भी कम करनी होती है. पानी भी कम ही इस्तेमाल होता है. जैसे एक बांस की बेल आती है. इसे डाइनाक्लोबा के नाम से जाना जाता है. एक घास जैसा बांस भी आता है. इसे सासा ओरीकोमा कहते हैं. डेंट्रोकैलिमा जाइगेंटियस बांस की बात करें तो बांस की वैराइटी में ये सबसे मोटा और ऊंचा बांस है. इसकी लम्बाई 80 फीट तक होती है.  

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खाने की थाली तक पहुंचा बांस

रोहित मिश्रा ने बताया कि बांस का अचार बिकना और खाना तो आम बात है. लेकिन बांस की सब्जी भी खाई जा रही है और बांस का मुरब्बा भी बनाया जा रहा है. लेकिन ऐसा नहीं है कि किसी एक खास बांस की सब्जी बनाई जाती है या फिर उसका अचार डाला जाता है. असल में बहुत सारे बांस है जिनकी सब्जी खाई जाती है और उसका मुरब्बा बनाया जाता है. होता ये है कि जब बांस हरे रंग का होता है तो उसके ऊपर सफेद रंग की नई कोपल आती हैं. बस इसी सफेद रंग की कोपल को खाया और पकाया जाता है. इसमे मिनरल्स  काफी मात्रा में पाए जाते हैं.
 

 

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