पोल्ट्री फार्मिंग आज के समय में अंडे और मांस के लिए एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में उभरा है, जिसमें मुर्गी पालन सबसे सरल और फायदेमंद माना जाता है. हालांकि, बरसात का मौसम कई बीमारियों का प्रकोप लेकर आता है, जिससे मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है. मुर्गियों में बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों से 25 से 100 फीसदी तक मृत्यु दर होने की आशंका रहती है. ऐसे में, उपचार की तुलना में बचाव का तरीका सबसे अच्छा माना जाता है. पोल्ट्री चलाने वालों को मुर्गियों में होने वाले रोगों के लक्षण, रोकथाम, टीकाकरण और इलाज के संबंध में पूरी जानकारी होनी चाहिए.
कॉक्सीडियोसिस रोग मुर्गियों के सभी परजीवी रोग के बीच सबसे अधिक हानिकारक है. यह रोग सभी उम्र के मुर्गे-मुर्गियों को प्रभावित करता है. आम तौर पर कम से कम दो महीने के आयु वर्ग के चिकन ज्यादा प्रभावित होते हैं. बारिश के दिन में इस रोग का प्रकोप ज्यादा होता है. बरसात और सर्दियों के मौसम में मुर्गीघर को चारों तरफ से ढंक दिया जाता है तब मुर्गीघर में अमोनिया का लेवल बढ़ जाने पर रोग अधिकता से होता है.
मुर्गियों में कॉक्सीडियोसिस एक परजीवी रोग है जो कोक्सीडियोसिस नामक प्रोटोजोआ के कारण होता है. यह रोग मुर्गियों की आंतों को प्रभावित करता है, जिससे दस्त, वजन घटना, और गंभीर मामलों में मृत्यु हो सकती है. यह रोग मुर्गियों के मल, पानी, और भोजन के माध्यम से फैलता है. रोकथाम के लिए मुर्गियों के रहने की जगह को साफ और सूखा रखें, ताजा और साफ पानी उपलब्ध कराएं. टीकाकरण कराए. एंटीबायोटिक्स और कोक्सीडियोस्टैटिक्स का उपयोग किया जा सकता है. विटामिन ए और के की खुराक से भी मदद मिल सकती है.
यह मुर्गियों की सबसे भयानक और जल्दी फैलने वाली बहुत संक्रामक बीमारी है. रोग के प्रकोप होने पर 100 फीसदी तक चूज़े मर सकते हैं. इस रोग में छींकना, तेज सांस लेना, सांस लेने में कठिनाई, सांस लेने पर सीटी जैसी आवाज़ करना, खांसी, बुखार, दस्त जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. बाद में उनकी टांगों और पंखों में लकवा हो जाता है. इस घातक रोग से बचाव के लिए किसानों और मुर्गी पालकों के पास सिर्फ वैक्सीनेशन प्रोग्राम यानी टीकाकरण ही एकमात्र उपाय है. टीकाकरण स्वस्थ पक्षियों मे सुबह के समय करना चाहिए और उन्हें रोग से प्रभावित पक्षियों से अलग कर देना चाहिए. अगर वैक्सीनेशन के बाद भी रोग के लक्षण दिखाई दें तो ‘रानीखेत एफ-वन’ नामक वैक्सीन देने से 24 से 48 घंटे में पक्षी की हालत सुधरने लगती है.
यह एक छूत का रोग है जो बड़ी मुर्गियों और चूज़ों दोनों में ही होता है. रोग के कारण मुर्गियां मरती तो कम हैं पर अंडा उत्पादन काफी कम हो जाता है. इसमें त्वचा, आंख, नाक और मुंह में चेचक के दाने निकल आते हैं, शरीर के पंखहीन भागों, जैसे - कलगी, गर्दन, और टांगों, पर मोटी पपड़ी बन जाती है, आंखों पर सूजन आ जाती है. मुर्गियां बार-बार छींकती हैं और तेज बुखार चढ़ता है. फाउल पॉक्स रोग होने पर मुर्गियों को एंटीबायोटिक्स, मल्टीविटामिन जैसी दवाइयों को पानी में मिलाकर देना चाहिए. रोकथाम के लिए टीकाकरण ज़रूर करवाएं. मुर्गी आवास में मच्छर की रोकथाम करें.
वयस्क मुर्गियों में सांस लेने में परेशानी होती है, नाक से पानी आता है और खांसी भी होती है, छींकते हुए या सांस लेते समय आवाज सुनाई पड़ती है, मुर्गियां दाना कम खाती हैं, जिसके कारण अंडा उत्पादन घट जाता है, फेफ़ड़े और वायु कोष में पीले रंग के दाने पाए जाते हैं. इस रोग से बचने के लिए स्वस्थ चूजों को ही पालें. बीमार मुर्गी की पहचान करके स्वस्थ पक्षियों से अलग कर दें. रोग हो जाने पर टाइलोसीन या एरिथ्रोमाइसिन दवाओं को पानी में घोलकर पिलाना सही रहता है. इस तरह आप थोड़ी सी सावधानी रखकर मुर्गियों को संक्रामक रोग से बचा सकते हैं और पोल्ट्री बिजनेस से अधिकतम लाभ ले सकते हैं.
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