जम्मू-कश्मीर के बाद अब रिसर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) तकनीक का इस्तेमाल हिमाचल प्रदेश में करने की तैयारी चल रही है. जानकारों की मानें तो इस तकनीक पर आधारित करीब 15 तालाब हिमाचल के अलग-अलग शहरों में बनाए जाएंगे. पीएम नरेन्द्री मोदी की ड्रीम योजना प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत इन तालाबों का निर्माण किया जाएगा. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर सबसे पहले ऊना, मंडी और सूरमोर जिलों में जमीनी तालाब बनाए जाएंगे. योजना के तहत कुल पांच तालाबों का निर्माण किया जाएगा. जिनसे हर साल 40 टन मछली का उत्पालदन होने की उम्मीद है.
तालाब इसी वित्त वर्ष में बनकर तैयार होने की उम्मीद है. वहीं आने वाले पांच साल में किन्नौर, सिरमौर, शिमला, मंडी, चंबा और कुल्लू जिलों में फैले ठंडे पानी वाले इलाकों में 10 तालाब बनाए जाने की योजना है. अफसरों ने हर एक तालाब से चार से लेकर 10 टन तक सालाना मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा है.
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हिमाचल प्रदेश मछली पालन विभाग से जुड़े अफसरों का कहना है कि इन 15 तालाबों के पूरी तरह से बनकर तैयार होने के बाद हर साल करीब 270 टन मछली उत्पादन होने का अनुमान है. तालाबों में ट्राउट, पैंगासियस, तिलापिया और सामान्य कार्प की खेती की जाएगी. इसमे से इंद्रधनुष ट्राउट की खेती ठंडे पानी के तालाबों में की जाएगी. वहीं पैंगासियस, तिलापिया और सामान्य कार्प की खेती सामान्य पानी में की जाएगी.
जम्मू-कश्मीर के मछली पालन विभाग के डायरेक्टर मोहम्मद फारुख डार का कहना है कि बीते वित्त वर्ष में राज्य को मछली पालन से 3.66 करोड़ रेवेन्यू मिला है. खासतौर पर ट्राउट मछली से ज्यादा रेवेन्यू मिला है. अगर हम बीते चार साल की बात करें तो साल 2019 में कश्मीर में ट्राउट का 598 टन उत्पादन हुआ था. जबकि 2022-23 में यही आंकड़ा बढ़कर 1990 टन पर पहुंच गया. आगे भी इसके बढ़ने की उम्मीद है.
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क्योंकि ज्यादातर लोग ट्राउट का पालन कर रहे हैं. सरकारी योजनाओं के चलते लोग मछली पालन में आ रहे हैं. खास बात ये है कि बीते चार साल में ही सरकारी मदद से 56 फीसद यानि 611 यूनिट ट्राउट की लगी है. अगर इसमे लोगों की प्राइवेट यूनिट भी जोड़ ली जाएं तो 1144 ट्राउट यूनिट संचालित हैं.
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