दुनियाभर में भैंस से ज्यादा संख्या गायों की है. वो भी विकसित देशों के मुकाबले विकासशील देशों में गायों का आंकड़ा बड़ा है. भारत में भी खेती और पशुपालन में गायों का बहुत ही महत्व है. उससे भी ज्यादा बड़ी बात ये कि गाय की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है. देश में गायों की 51 रजिस्टर्ड नस्ल हैं. इसके अलावा सभी राज्यों में कुछ ऐसी भी नस्ल हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं. देश के कुल दूध उत्पादन में गाय के दूध की हिस्सेदारी करीब 50 फीसद है. इसमे विदेशी नस्ल की गाय शामिल नहीं हैं. गायों पर रिसर्च के लिए मेरठ, यूपी में देश का सबसे बड़ा कैटल रिसर्च सेंटर बनाया गया है.
गिर, राठी, नागौरी, सहीवाल और ब्रद्री गायों की अव्वल देसी नस्ल में शामिल हैं. मध्य प्रदेश, यूपी, राजस्थान और बिहार में देसी नस्ल की गायों की संख्या सबसे ज्यादा है. मेरठ, यूपी में देसी नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाने के लिए आर्टिफिशल सीमेन टेक्नोलॉजी भी इस्तेमाल की जा रही है. यूपी के कई शहरों में काऊ सेंचुरी बनाई जा रही हैं.
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सांस लेने में दिक्कत, गले में सूजन होती है. एंटीबायोटिक दवा और इंजेक्शन इलाज है. साथ ही बरसात के मौसम से पहले वैक्सीनेशन कराना चाहिए.
थनों में दिक्कत, दूध में छर्रे आना, थनों में सूजन इस बीमारी के लक्षण है. अलग-अलग दवाएं दी जाती हैं. पशु के दूध और थन की समय-समय पर जांच करते रहना चाहिए.
106-107 डिग्री तक बुखार होना, पशु के पैरों में सूजन, पशु का लंगड़ा कर चलना. बरसात से पहले वैक्सीनेशन करवाना और बीमार पशुओं को हेल्दी पशुओं से दूर रखना.
शरीर का तापमान कम हो जाना, सांस लेने में परेशानी होना. प्रसव के 15 दिन तक पूरा दूध न निकालें और पशु को कैल्शियम से भरा आहार और सप्लीमेंट दें.
मुंह और खुर में दाने होते हैं, दाने छाला बनकर फट जाते हैं और घाव गहरा हो जाता है. फौरन ही डॉक्टर को दिखाना चाहिए बरसात से पहले टीकाकरण कराना चाहिए और बारिश में पशु को खुले में चरने नहीं देना चाहिए.
पेशाब और गोबर में खून आना, तेज बुखार होना. पशु चिकित्सक से संपर्क कर स्थिति के हिसाब से उपचार करना चाहिए. इस रोग से बचाने के लिए वक्त रहते टीकाकरण करा लेना चाहिए.
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पशु सुस्त हो जाता है, सूखी खांसी और नाक से खून आने लगता है. रोग के लक्षण दिखते ही पशु को अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए. पशु के आहार का खास ध्यान रखना चाहिए.
पांच-छह महीने में योनिमुख से तरल गिरता है, बच्चे होने के लक्षण दिखते हैं, लेकिन गर्भपात हो जाता है. पशु की ठीक से सफाई करनी चाहिए, डीवॉर्मिंग करनी चाहिए और पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. छह से आठ महीने के पशु को ब्रुसेला का टीका लगवाना चाहिए.
पशु का बायां पेट फूल जाता है, पेट को थपथपाने पर ढोलक की आवाज आती है.
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