जानकारों की मानें तो देश में एक्वापोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. एक्वाकल्चर और हाइड्रोपोनिक्स को साथ मिलाकर की जाने वाली खेती को एक्वापोनिक्स नाम दिया गया है. एक्सपर्ट का कहना है कि इस नई एक्वापोनिक्स तकनीक से खेती में जहां शुद्ध पानी की लागत कम आती है वहीं मछली को की खुराक पर आने वाली लागत भी कम हो जाती है. एक्वापोनिक्स के तहत जहां मछली पालन किया जाता है वहीं दूसरी ओर कुछ खास तरह की पत्तेदार सब्जियों की खेती की जाती है. इससे मछलियों का उत्पादन भी बढ़ जाता है.
एक्सपर्ट की मानें तो एक एक्वापोनिक्स फार्म की स्थापना करते वक्त सही जगह का चुनाव करना सबसे अहम है. जगह ऐसी होने चाहिए कि जहां से पानी को साफ करना आसान हो तो पानी में अमोनिया को कंट्रोल करना भी मुश्किल ना हो. वहीं सबसे अहम बात ये कि पानी की गुणवत्ता को लगातार बनाए रखने के लिए पानी की आपूर्ति भी सही ढंग से होती रहे.
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एक्वापोनिक्स में पानी मछली और फसलों दोनों की खेती के लिए बीच का काम करता है. जहां जगह की कमी होती है वहां ये तकनीक बहुत ही कारगर है और एक ही जगह पर मछली पालन और खेती दोनों ही हो जाते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर एक्वापोनिक्स के तहत खेती कर रहे हैं तो सब्जियों का चुनाव बहुत ही सोच समझकर करें.
जैसे जहां तक मुमकिन हो तो पोषक तत्वों की जरूरत वाली हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे कैप्सिकम, टमाटर, सलाद और तुलसी पर ध्यान देना चाहिए. ऐसा करने से मछलियों को भी जगह की कमी नहीं पड़ती है. मछलियों का चुनाव भी राज्य और जगह के हिसाब से एक्सपर्ट की सलाह पर ही करें. एक्सपर्ट दावा करते हैं कि अगर दोनों का चुनाव ठीक ढंग से किया जाए तो मछली उत्पादन पांच गुना तक बढ़ सकता है.
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एक्सपर्ट का कहना है कि जिस टैंक में मछली होती है तो मछलियों के मल से टैंक के पानी में अमोनिया संग और ऐसी दूसरी चीजें पैदा हो जाती हैं जो पौधों के लिए फायदेमंद होती हैं. इसलिए मछलियों के टैंक वाले पानी को सब्जियों वाले टैंक में छोड़ दिया जाता है. जहां पौधे पानी से जरूरी पोषक चीजें खुद से ले लेते हैं. ऐसे में पौधों को बीमारियों से बचाने और उनकी ग्रोथ के लिए केमिकल और खाद देने की भी जरूरत नहीं पड़ती है.
इस प्रक्रिया के दौरान पौधे भी पानी में कुछ चीजें छोड़ते हैं, जिसमे पौधों के अवशेष भी होते हैं जो मछलियों के काम आता है. कुछ दिन बाद वापस इसी पानी को मछलियों के टैंक में वापस छोड़ दिया जाता है. इस तरह से कम पानी और लागत में सब्जी तैयार हो जाती है. वहीं मछलियों की खुराक पर भी लागत कम आती है.
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