हाल ही में, केंद्र सरकार ने प्याज पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क हटाने में हो रही देरी ने किसानों को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाया है. 22 मार्च को सरकार ने इस शुल्क को हटाने का निर्णय लिया था, लेकिन इस फैसले को 1 अप्रैल से शुरू किया गया. इस देरी का सीधा असर किसानों के प्याज के दामों पर पड़ा है, और अब किसानों को अपनी प्याज की फसल को बाजार समितियों में बहुत कम कीमतों पर बेचना पड़ रहा है.
2 अप्रैल को नासिक जिले के लासलगांव मार्केट में ग्रीष्मकालीन प्याज की कीमतें 700 रुपये प्रति क्विंटल से लेकर 1602 रुपये प्रति क्विंटल तक थी. औसतन प्याज की कीमत 1250 रुपये प्रति क्विंटल रही. जबकि, मार्च माह के अंत में, 27 मार्च को किसानों को अपनी ग्रीष्मकालीन प्याज के लिए औसतन 1500 रुपये प्रति क्विंटल का दाम मिल रहा था. इस कमी के कारण किसानों को भारी नुकसान हुआ, क्योंकि प्याज की कीमतें गिरने से उनकी मेहनत का सही मूल्य नहीं मिल पाया.
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निर्यात शुल्क हटाने में हुई देरी ने किसानों के लिए बहुत सारी परेशानियाँ खड़ी कर दी हैं. खेतों में पड़ी प्याज की फसल बिक नहीं पा रही है, और इसके कारण किसानों को अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है. इसके अलावा, किसान अब विदेशों में प्याज का निर्यात बढ़ाने के लिए सरकार से प्याज निर्यात पर सब्सिडी की मांग कर रहे हैं, ताकि उनकी फसल को सही मूल्य मिल सके और उनका नुकसान कम हो सके.
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किसान संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने जल्द ही प्याज के दामों में बढ़ोतरी के लिए कदम नहीं उठाए, तो महाराष्ट्र राज्य के प्याज उत्पादक और किसान संघ राज्यभर में जोरदार विरोध प्रदर्शन करेंगे. संगठन के संस्थापक अध्यक्ष, भरत दिघोले ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया है और सरकार से शीघ्र समाधान की मांग की है.
इस स्थिति में सरकार को चाहिए कि वह जल्दी से जल्दी प्याज निर्यात को बढ़ावा दे और किसानों के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करे. अन्यथा, आने वाले समय में किसानों का और भी अधिक नुकसान हो सकता है, और इससे प्याज उत्पादक क्षेत्रों में गुस्सा फैल सकता है.
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