सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने सरकार से जुलाई से पहले मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत खरीदे गए सोयाबीन की बिक्री की अनुमति न देने का आग्रह किया है. क्योंकि इससे कीमतें और गिरेंगी जो पहले से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के स्तर से नीचे चल रही हैं. अगर, कीमतें और गिरेंगी तो खरीफ की बुवाई प्रभावित हो सकती है. सोपा के अध्यक्ष दाविश जैन ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह को लिखे पत्र में कहा कि सोयाबीन बेचने का कदम गलत समय पर उठाया गया है और इससे कीमतों में और गिरावट आएगी और किसान आगामी खरीफ सीजन में सोयाबीन की बुवाई करने से हतोत्साहित होंगे.
जैन ने कहा कि हमें पता चला है कि पीएसएस के तहत किसानों से एमएसपी पर सोयाबीन खरीदने वाली एजेंसियों में से एक नेफेड 3 मार्च से खुले बाजार में सोयाबीन बेचने जा रही है. जबकि सोयाबीन का मौजूदा मंडी मूल्य 3,900 से 4,100 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है, जो 4,892 के एमएसपी से काफी कम है. ऐसे में अगर अभी सोयाबीन बेचने का कदम उठाया गया तो इससे सोयाबीन की कीमतों में और गिरावट आएगी. सोयाबीन की बुवाई जून के तीसरे सप्ताह में शुरू होती है और 15 जुलाई तक जारी रहती है. कीमतों में और गिरावट निश्चित रूप से किसानों को सोयाबीन की बुवाई से हतोत्साहित करेगी.
खरीफ मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए 4,892 रुपये के एमएसपी पर पीएसएस के तहत नेफेड ने 14.71 लाख टन से अधिक सोयाबीन खरीदा है. इसमें से आधे से अधिक महाराष्ट्र से खरीदा गया है. महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 8.36 लाख टन से अधिक की है. जबकि 3.8 लाख टन मध्य प्रदेश से खरीदा गया. इसे बाजार में मार्च के पहले सप्ताह से ही लाने की तैयारी है. जबकि सोपा का कहना है कि नेफेड और एनसीसीएफ द्वारा रखे गए सोयाबीन के स्टॉक को 15 जुलाई के बाद ही खुले बाजार में बेचा जाए जब किसान इसकी बुवाई पूरी कर लें. वरना दाम और गिरेंगे जिससे बुवाई घट जाएगी.
उधर, नवंबर में जारी पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार, सरकार को 2024-25 के लिए सोयाबीन की फसल 133.60 लाख टन होने की उम्मीद है, जो पिछले साल के 130.62 लाख टन से थोड़ा अधिक है. हालांकि, सोयाबीन की गिनती दलहन और तिलहन दोनों फसलों में होती है और दोनों के हम आयातक हैं. ऐसे में उत्पादन बढ़ने से दाम नहीं गिरने की संभावना कम है. दाम गिरने की एक बड़ी वजह इंपोर्ट ड्यूटी में पहले के मुकाबले कटौती है. ऐसे में अब अगर पीएसएस के तहत खरीदे गए सोयाबीन को सरकार मार्केट में लाएगी तो किसानों को और नुकसान पहुंचेगा, क्योंकि दाम और कम हो जाएंगे.
महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बड़ी संख्या में किसान सोयाबीन की खेती में कम होते लाभ से निराश हैं. आने वाले सीजन में अधिक लाभकारी फसलों की ओर रुख करेंगे. क्योंकि 4892 रुपये की एमएसपी वाला सोयाबीन वो मात्र 3500 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचने को मजबूर हैं. ऐसे में अब अगर सरकार सोयाबीन की बिक्री करेगी तो इसकी खेती और कम हो जाएगी. जिन किसानों को तिलहन फसलें उगाने पर पुरस्कृत किया जाना चाहिए उन्हें इस वक्त कम दाम का दंड मिल रहा है.
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