आज देश और दुनिया पर तमाम किस्म के खतरे मंडरा रहे हैं, जिनमें सबसे बड़ा खतरा सेहत का है. इससे जुड़ा सबसे बड़ा खतरा दूषित भोजन का है, जिसकी वजह है केमिकल युक्त भोजन. यही वजह है कि ऑर्गेनिक खेती का चलन बीते कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है और जैविक उत्पाद ने ये महसूस कराया है कि इंसान के हेल्थ के लिए यह बेहतर है. केमिकल खेती से होने वाले दुष्प्रभाव को देखते हुए लोगों में ऑर्गेनिक फूड को लेकर जागरुकता बढ़ी है क्योंकि सेहत का सीधा संबंध खान-पान से है. स्वस्थ रहने के लिए लोग अब तेजी से जैविक खाद्य पदार्थ अपना रहे हैं.
ऑर्गेनिक अन्न, फल और सब्जियां बाजार में मिलने वाले केमिकल वाली उपज की तुलना में अधिक दाम पर बिकते हैं. फिर भी बेहतर स्वास्थ्य के लिए लोग इन्हें खरीद रहे हैं, जिसके चलते आज देश के कई राज्यों में जैविक खेती का भविष्य उज्ज्वल नजर आता है. इसका सीधा फायदा जैविक खेती करने वाले किसानों को हो रहा है. लेकिन राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय मार्केट में अपने जैविक उत्पाद को बेचने के लिए प्रमाणित जैविक उत्पाद होना जरूरी है. ऐसा नहीं करते हैं तो जैविक उत्पाद भी केमिकल उत्पाद के मूल्य में बिकते हैं. इससे जैविक उत्पाद पर मिलने वाला मुनाफा नहीं मिल पाता है. इसलिए अगर जैविक खेती कर रहे हैं तो अपने उत्पाद को प्रमाणित जैविक उत्पाद के लिए सर्टीफिकेशन करना जरूरी है. इसके लिए एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है और खेत से लेकर मार्केटिंग तक के सभी पहलू पर ध्यान देना होता है.
जैविक खेती से अच्छा लाभ मिले, इस बात की गारंटी तब मिल सकती है, जब सर्टीफाइड जैविक प्रोडक्ट लेकर मार्केटिंग पर ध्यान देंगे. जब तक आप बाजार में सर्टीफाइड जैविक प्रोडक्ट लेकर नहीं जाएंगे, तो लोग इसे भी केमिकल से तैयार प्रोडक्ट के रेट मे ही खरीदेंगे. इस तरह लाभ की जगह नुकसान उठाना पड़ेगा. अगर कोई भी जैविक खेती करने का मन बनाया है, तो आपको सर्टीफाइड ऑर्गेनिक फार्मर बनने में 3 साल का समय लगता है. सर्टीफिकेशन वो प्रक्रिया है जिसमें प्रमाणीकरण एजेंसी से एक लिखित आश्वासन दिया जाता है कि जो किसान प्रोडक्ट लेकर बाजार में आया है, उसके खेतों में लगातार निरीक्षण किया गया है. उसके खेतों पर होने वाली गतिविधियों को भी लगातार देखा गया है और जैविक खेती के सिद्धांत को पूरी तरह पालन किया है. तब जाकर किसान के उत्पाद के सर्टीफिकेशन की प्रक्रिया पूरी होती है.
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इस काम के लिए जैविक प्रमाणीकरण सस्था ने देश में जैविक उत्पाद के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत नोडल एजेंसी खोल रखी है. भारत सरकार के विपणन मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के तहत जैविक प्रमाणीकरण प्रणाली का काम कर रही है. कृषि प्रसंस्करण उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) द्वारा यह संचालित होती है. इस कार्यक्रम के तहत 20 प्रमाणिकरण संस्थाओं को अधिकृत किया जा चुका है जिसका विवरण एपीडा की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
जैविक उत्पाद का प्रमाणीकरण कराने के लिए सर्टीफिकेशन की प्रक्रिया से गुजरना होता है. इस सर्टीफिकेशन प्रक्रिया में सबसे पहला काम प्रमाणीकरण संस्था में पंजीयन करवाना होता है. इसके बाद किसान को वार्षिक फ़सल योजना, भूमि दस्तावेज, पैन कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, फार्म का नक्शा सभी दस्तावेज जैविक प्रमाणीकरण संस्था को उपलब्ध कराना होता है .एक हेक्टेयर खेत का पंजीयन करवाने के लिए किसान को निर्धारित शुल्क जमा करना होता है और शुल्क जमा करने पर के बाद संस्था आवेदक की खेत का निरीक्षण करती है.
अगर कोई भी किसान केमिकल खेती से जैविक खेती की तरफ रुख कर रहा है तो जैविक खेती के प्रमाणीकरण के लिए कुछ बातों पर अमल करना होता है. सबसे पहले जिन खेतों को जैविक खेती के लिए चुना गया है, उन खेतों में लगातार 3 सालों तक केवल जैविक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग करना जरूरी है. साथ ही ये भी सुनिश्चित करना पड़ेगा कि बाहर से किसी भी प्रकार का केमिकल अंश खेतों में ना पहुंच सके. जैविक खेती करने वाले किसानों को इस बात का विशेष खयाल रखना चाहिए कि खेतों से मिल रही उपज का प्रमाणीकरण संस्था से समय-समय पर जांच होती रहे जिससे कि मिल रही उपज में केमिकल की मात्रा की जानकारी मिलती रहे. खेत के निरीक्षण के बाद सभी चीजें सही पाए जाने के बाद जैविक प्रमाणीकरण संस्था के द्वारा जैविक खेती का सर्टिफिकेट दिया जाता है.
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