अल्फॉन्सो यानी हापुस आम न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि पूरे भारत और पूरी दुनिया में फेवरिट हैं. इन आमों के आने का इंतजार सबको रहता है. भारत से इन आमों को विदेशों जैसे अमेरिका, यूके और यूरोपियन यूनियन (ईयू) के कुछ देशों को भी भेजे जाते हैं. लेकिन एक दशक से कुछ ज्यादा समय पहले तक ईयू के कुछ देशों की गर्मियां अल्फॉन्सो आम के बगैर ही कटी थीं. वजह थी यूरोपियन यूनियन का अल्फॉन्सो आमों पर लगाया गया बैन. ईयू का वह बैन आज तक आम के सीजन का सबसे चर्चित किस्सा है. जानिए क्या था सारा मामला और कब यूरोपियन यूनियन ने अल्फॉन्सो पर लगे बैन को हटाने का फैसला किया था.
यह बात है अप्रैल 2014 की जब 28 सदस्यों वाली यूरोपियन यूनियन ने भारत से पहुंची कुछ खेपों में 'गैर-यूरोपियन फल मक्खियों' जैसे अवांछित कीटों के पाए जाने के बाद अल्फॉन्सो आमों को बैन कर दिया था. अल्फॉन्सो जिसे 'फलों का राजा' का भी कहा जाता है, उस पर लगे प्रतिबंध ने भारत के व्यापारियों को नाराज कर दिया था और किसान इससे मायूस हो गए थे. सरकार से जुड़े संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (FIEO) ने तब कहा था कि अब सभी खेपों को सर्टिफिकेशन और टेस्ट से गुजरना पड़ रहा है ताकि यूरोपियन यूनियन की चिंताओं को दूर किया जा सके.
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यूरोपियन यूनियन प्लांट हेल्थ केयर कमेटी की तरफ से आम पर प्रतिबंध का ऐलान किया गया था. जिन सब्जियों को बैन किया गया था उनमें करेला और बैंगन शामिल थे. यह भी दिलचस्प था कि प्रतिबंधित माल भारत से ईयू आयात किए जाने वाले कुल ताजे फलों और सब्जियों का पांच प्रतिशत से भी कम है. लेकिन यूरोपियन यूनियन का मानना था कि नए कीटों के आने से उसके देशों की खेती और उत्पादन को खतरा हो सकता है. अल्फॉन्सो, बैंगन और करेला पर प्रतिबंध 1 मई 2014 से दिसंबर 2015 तक लगाए गए थे. हालांकि ईयू ने अप्रैल 2015 में ही इस बैन को हटा लिया था.
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यूरोपियन यूनियन ने फ्रूट फ्लाई को 'खतरा' घोषित किया हुआ है. उसका मानना है कि ये 'आक्रामक' मक्खियां फलों की फसलों को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं. इससे उपज में कमी, गुणवत्ता खराब होती है और नियंत्रण उपायों की लागत में भी इजाफा होता है. आखिर में इसका बोझ कंज्यूमर पर पड़ता है. अगर यूरोपियन यूनियन के बॉर्डर पर किसी शिपमेंट में ये मक्खियां पाई जाती हैं तो उसे वहीं पर नष्ट कर दिया जाता है और आयात ही प्रतिबंधित कर दिया जाता है.
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