पंजाब से हजारों किसान दिल्ली की ओर मार्च कर रहे हैं. शंभू बॉर्डर पर किसान अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. पुलिस उन्हें तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल कर रही है. आंसू गैस के इस्तेमाल और पूरे प्रदर्शन स्थल पर धुआं फैलने से कई पत्रकार भी घायल हो गए. आइए ऐसे में जानते हैं कि आंसू गैस क्या है और क्या होता है इसका प्रभाव.
वास्तव में आंसू गैस क्या है और यदि आप इसके संपर्क में आ जाएं तो क्या होगा? आंसू गैस का इस्तेमाल प्रदर्शनकारियों को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए किया जाता है. आंसू गैस के कारण चुभन महसूस होती है और आंसू आने लगते हैं. इससे सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. इससे खांसी और घुटन महसूस हो सकती है.
आंसू गैस, जिसे लैक्रिमेटर भी कहा जाता है, पदार्थों का एक समूह है जो आंखों की झिल्ली को परेशान करता है. इससे चुभन महसूस होती है और आंसू आने लगते हैं. साथ ही यह फेफरों को भी परेशान कर सकता है, जिससे खांसी, दम घुटना और सामान्य दुर्बलता (शारीरिक कमजोरी) हो सकती है.
अधिकांश मामलों में आंसू गैसों के प्रभाव अस्थायी होते हैं. सक्रिय चारकोल फिल्टर वाला गैस मास्क उनके खिलाफ अच्छी सुरक्षा प्रदान करता है.
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अगर आप किसी आंदोलन का हिस्सा हैं, या आपको उस आंदोलन को अपनी नौकरी के हिस्से के रूप में कवर करना है, तो आपको इन बातों का ध्यान रखना चाहिए. अगर आप किसी आंदोलन का हिस्सा हैं या नौकरी के तौर पर कार्यक्रमों को कवर कर रहे हैं तो आपको अपना चेहरा ढककर रखना चाहिए.
खासतौर पर अपनी नाक को ढककर रखें ताकि आंसू गैस निकलने पर आपको धुएं में सांस लेने में दिक्कत न हो. इसके लिए आप किसी भी कपड़े, बेडशीट या स्कार्फ का इस्तेमाल कर सकते हैं. अपनी आंखों को हर कीमत पर सुरक्षित रखें. तैराकी के चश्मे का उपयोग किया जा सकता है. इससे आपकी आंखों में जलन नहीं होगी और आंखों से पानी भी नहीं आएगा.
आपको अपनी आंखों के आसपास के क्षेत्र को अच्छी तरह से ढककर रखना होगा. आप काला चश्मा भी पहन सकते हैं लेकिन इससे पूरी सुरक्षा नहीं मिलेगी. सीडीसी का कहना है, 'अगर आपकी आंखों में जलन होने लगे या देखने में दिक्कत होने लगे तो अपनी आंखों को 10 से 15 मिनट तक साफ पानी से धोएं, जिससे आंखों को ठंडक मिलेगी और आपको राहत मिलेगी.
पहले विश्व युद्ध के दौरान सबसे पहले आंसू गैस का प्रयोग किया गया था. देखा गया कि इसका लोगों पर कोई गंभीर असर नहीं होता और यह भीड़ हटाने में कारगर है. सुरक्षा एजेंसियों ने बाद में इसका इस्तेमाल प्रदर्शनकारियों, भीड़ और दंगाइयों पर करना शुरू कर दिया.
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