वातावरण में प्रदूषण को सटीक प्रणाली और प्लानिंग से इस्तेमाल करने के लिए भारत सरकार नई-नई परियोजनाएं चलाती रहती है. इसी के चलते सरकार अभी किसानों के लिए कार्बन क्रेडिट पर काम कर रही है. हालांकि अभी तक इससे जुड़ी कोई परियोजना सरकार द्वारा नहीं जारी की गई है, लेकिन प्राइवेट कंपनियां कार्बन क्रेडिट को लेकर काफी एक्टिव हो चली हैं. कार्बन क्रेडिट प्राइवेट कंपनी की ओर से प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे उद्यमियों का उत्पादन बना रहे. इससे किसान भी कार्बन क्रेडिट से अधिक मुनाफा कमा सकते हैं और इससे पर्यावरण का शुद्दीकरण भी होगा. कार्बन क्रेडिट पर अधिक जानकारी के लिए पढ़ें पूरी खबर...
कार्बन क्रेडिट को लेकर नई-नई कंपनियां मैदान में उतर रहीं हैं. आने वाले कुछ ही सालों में कार्बन क्रेडिट को लेकर कंपनियों के बीच स्पर्धा भी बढ़ जाएगी. अभी ग्रो इंडिगो, नेचर फार्म और वराह जैसी कंपनियां कार्बन क्रेडिट के बिजनेस में उतर चुकी हैं. कृषि के क्षेत्र में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम और खेत की मिट्टी में स्वायल ऑर्गेनिक कार्बन को बढ़ा रहे किसानों को कार्बन क्रेडिट मिल सकता है. यह क्रेडिट किसानों के बैंक खाते में अतिरिक्त आय के रूप में पहुंच जाएगा. कार्बन क्रेडिट एक प्रकार का प्रमाणपत्र है जो किसी देश द्वारा अपने पर्यावरण परिवेश में हानिकारक गैसों की उत्सर्जन क्षमता को कम करने पर दिया जाता है. एक रिपोर्ट के अनुसार एक कार्बन क्रेडिट का दाम 50 तक डॉलर है. बता दें कि एक हेक्टेयर में धान के खेती से 8 कार्बन क्रेडिट तक कमा सकते हैं. यानि 8 कार्बन क्रेडिट से किसान 3339.34 रुपये तक का मुनाफा कमा सकते हैं. कार्बन क्रेडिट को लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान ने काम शुरु कर दिया है.
देश-दुनिया में पर्यावरण को बचाने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं, ऐसे में कार्बन उत्सर्जन कम करना हर देश की पहला उद्देश्य है. भारत ने सीओपी-26 जलवायु शिखर सम्मेलन में 2070 तक 'कार्बन न्यूट्रल' होने की बात कही है. जिसका मतलब है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में अधिक कमी लाना या कटौती कर देना. कार्बन क्रेडिट के खरीदार वही कंपनियां हैं जिनको कार्बन उत्सर्जन करने के लिए यूनिट मानकों की आवश्यक्ता होती है. इनमें उदाहरण के लिए एयरलाइंस कंपनियां, कोल कंपनियां और एनर्जी सेक्टर की कंपनियां इसे खरीदकर अपना काम चलाएंगी.
खेत से कार्बन क्रेडिट बेचकर कमाई के लिए किसानों को मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन बढ़ाना होगा, जिसे कंपनिया खरीदेंगी. बता दें कि ऑर्गेनिक कार्बन में सारे पोषक तत्वों का सोर्स होता है. इसकी कमी से पौधे का विकास रुक जाता है. साथ ही पौधों में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. खेती में कार्बन की क्षमता बढ़ाने का हर फसल का एक अलग तरीका है. इसमें धान की खेती में सीधी बुवाई कर सकते हैं, जिससे जुताई कम होगी और मिट्टी से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होगा. इसके साथ ही खेती करने के बाद पराली न जलाकर हैप्पीसीडर से बुवाई कर सकते हैं. इससे भी कार्बन का उत्सर्जन कम होगा.
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कार्बन क्रेडिट लेने के लिए किसानों को कंपनियों के साथ समझौता करना होता है. इसमें राज्य सरकार भी हिस्सा रहेगी. ऐसे में खेती में जितना ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम होने पर राज्य सरकार इसमें किसी प्रकार का जुड़ाव नहीं करेगी क्योंकि कार्बन क्रेडिट पर कंपनियां किसानों को पहले से पैसा दे रहीं हैं. कार्बन क्रेडिट लेने के लिए किसान को प्रोजेक्ट की एक रिपोर्ट जमा करनी होगी. इस दौरान किसानों को कंपनियों को कार्बन क्रेडिट बनाने का प्लान समय के हिसाब से जमा करना होगा. इस दौरान खेती में उपयोग किए जाने वाली विधि, पेस्टीसाइड, फर्टीलाइजर को भी दर्शाना होगा. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर किसान पारंपरिक तौर पर खेती करते हैं, तो कार्बन क्रेडिट में बढ़ौतरी जरूर आएगी. कंपनियां प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद पूरी तरह से वेरिफिकेशन करेंगी ताकि इस काम में कोई फर्जीवाड़ा न हो सके. (आर्यमन यादव की खबर)
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