क्‍या हैं शांता कुमार कमेटी की सिफारिशें...मानी जाती हैं मोदी सरकार का एग्रीकल्‍चर रिफॉर्म प्‍लान!

क्‍या हैं शांता कुमार कमेटी की सिफारिशें...मानी जाती हैं मोदी सरकार का एग्रीकल्‍चर रिफॉर्म प्‍लान!

शांता कुमार कमेटी का गठन भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पुनर्गठन के लिए किया गया था. बात FCI के पुनर्गठन की हो रही है तो उसके लिए FCI के गठन की कहानी को समझना होगा.

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क्‍या हैं शांता कुमार कमेटी की सिफारिशें...मानी जाती हैं मोदी सरकार का एग्रीकल्‍चर रिफॉर्म प्‍लान!शांता कुमार कमेटी के अनुसार देश में सिर्फ 6 फीसदी किसानों को ही MSP का फायदा मिल पाता है

देश में कृषि और किसानों की 'बदहाली', मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों और 13 महीने तक चले किसान आंदोलन को एक सिक्‍के की तीन पहलुओं के तौर पर देखा जा सकता है. अब आप कहेंगे कि एक सिक्‍के के दो पहलुओं के बारे में तो सुना था, लेकिन एक सिक्‍के के तीन पहलुओं आखिर कैसे हो सकते हैं. तो इस पूरे मामले को विस्‍तार से समझना होगा.असल में इस कहानी की शुरुआत देश में कृषि और किसानों की 'बदहाली' से शुरू होती है, जिसमें सिक्‍के के दूसरा पहलु मोदी सरकार के तीन कृषि कानून थे.

इन तीन कृषि कानूनों को देश की कृषि व्‍यवस्‍था के सुधार के तौर पर लाए जाने का दावा केंद्र सरकार ने किया था, लेकिन इस सिक्‍के में तीसरे पहलू के तौर पर तीन कृषि कानूनों को खारिज करने की मांग करते हुए किसान आंदोलन की एंट्री हुई, जिसकी सफलता से तीनों कृषि कानून वापस हो गए, लेकिन देश में कृषि और किसानों की 'बदहाली' का आलम अभी तक बरकरार है. इसे दूर करने के लिए किसान संंगठन MSP गारंटी कानून बनाने, किसान कर्ज जैसी मांगें कर रहे हैं, लेकिन सवाल ये भी है कि केंद्र की मोदी सरकार किस आधार पर और किस विचार के साथ तीन कृषि कानून लेकर आई थी.

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ऐसे में माना जाता है कि केंद्र की मोदी सरकार, शांता कुमार कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप देश की कृषि व्‍यवस्‍था में रिफार्म का प्‍लान कर रही थी. जिस पर अभी भी काम किया जा रहा है. आइए जानते हैं कि आखिर शांता कुमार कमेटी की सिफारिशें थी क्‍या, जिसे देश में कृषि रिफॉर्म का माेदी सरकार का प्‍लान माना जाता है. 

शांता कुमार कमेटी... कैसे बनी, कब सौंपी रिपोर्ट 

शांता कुमार कमेटी का गठन केंद्र की मोदी सरकार ने 20 अगस्‍त 2014 को किया था. हिमाचल के पूर्व मुख्‍यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंंत्री और बीजेपी नेता शांता कुमार के नेतृत्‍व में बनाई गई इस कमेटी में छह सदस्‍य और एक विशेष आमंत्रित सदस्‍य थे. इस कमेटी को उच्‍च स्‍तरीय कमेटी भी कहा जाता है. इस कमेटी ने विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों, खाद्य सचिवों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श कर अपनी सिफारिशें एक रिपोर्ट में 21 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काे सौंपी थी.

क्‍यों बनाई गई थी कमेटी

शांता कुमार कमेटी का गठन भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पुनर्गठन के लिए किया गया था. बात FCI के पुनर्गठन की हो रही है तो उसके लिए FCI के गठन की कहानी को समझना होगा. असल में देश में गेहूं संकट को देखते हुए 1965 में FCI का गठन किया गया था. उसी समय पर किसानों को लाभकारी मूल्य की सिफारिश करने के लिए 1965 में कृषि मूल्य आयोग बनाया गया था, जिसके मद्देनजर FCI के तीन उद्देश्‍य निर्धारित किए गए. जिसमें  किसानों को प्रभावी मूल्य का समर्थन प्रदान करना, समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को सब्सिडी वाला खाद्यान्‍न उपलब्‍ध कराने के लिए पीडीएस में अनाज की खरीद और आपूर्ति करना, खाद्यान्नों के बाजार को स्थिर करने के लिए एक अनाजों का रिर्जव स्‍टॉक रखना. 

इन तीन उद्देश्‍य के साथ अस्‍तित्‍व में आए FCI के पुर्नगठन के लिए 2014 में गठित शांता कुमार कमेटी का उद्देश्‍य MSP यानी न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य का ऑपरेशन, अनाज की खरीद, भंडारण और वितरण में FCI की भूमिका को दोबारा व्यवस्थित करके PDS को बेहतर बनाना था.

MSP पर कमेटी की फाइडिंंग

शांता कुमार कमेटी ने जब काम करना शुरू किया तो कमेटी को MSP पर जो फाइडिंंग मिली, उसने देश की कृषि व्‍यवस्‍था और किसानों की परेशानियों की कलई खोल दी. कमेटी ने अपनी फाइडिंंग में 2012-13 के लिए एनएसएसओ के आंकड़ों से पाया कि जुलाई-दिसंबर 2012 के दौरान धान बेचने वाले सभी किसानों में से केवल 13.5 प्रतिशत किसानों ने इसे सरकारी खरीद एजेंसी को बेचा, जबकि जनवरी-जून 2013 के दौरान किसानों का अनुपात 10 फीसदी था.

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इसी तरह गेहूं के मामले में जनवरी-जून 2013 के बीच केवल 16.2 फीसदी गेहूं किसानों ने किसी खरीद एजेंसी को बेचा. कुल मिलाकर, खरीद एजेंसियों को गेहूं और धान बेचने का देशभर का औसत आंकड़ा सिर्फ 6 फीसदी ही पाया गया. सीधी से बात है कि कमेटी ने पाया कि MSP का फायदा सिर्फ 6 फीसदी किसानाें को ही होता है.

ये रही कमेटी की कुछ प्रमुख सिफारिशें

शांता कुमार कमेटी ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि जिन किसानों के पास छोटी जोत है, वह अपनी फसल MSP से बेचने को मजबूर होते हैं. ऐसे में कमेटी ने FCI को किसानों की मदद करते हुए बिहार, पश्‍चिम बंंगाल, पूर्वी यूपी से अनाजों की MSP पर खरीद करनी चाहिए,जबकि FCI को मध्‍य प्रदेश,पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्‍यों से खरीद बंद कर देनी चाहिए और खरीद की जिम्‍मेदारी राज्‍य सरकारों को दे देनी चाहिए. क्‍योंकि इन राज्‍यों के पास खरीद और प्रबंधन का अच्‍छा अनुभव है.

कमेटी ने अपनी सिफारिशों में कहा था कि निजी भागीदारी से वेयरहाउस बनाने पर जोर देना चाहिए. साथ ही देश में वेयरहाउस का मजबूत ढांचा बनाने की सिफारिश की थी. कमेटी ने इन सिफारिशाें के एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की थी. कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा था कि वेयर हाउस में स्‍टॉक अनाज के बदले किसानों को 80 फीसदी अग्रिम पेमेंट लेने या कर्ज की सुविधा दी जानी चाहिए. गोदाम में रखे अनाज को किसान बेहतर दाम मिलने पर बाजार में बेच सकते हैं और अग्रिम पेमेंट का बकाया चुका सकते हैं. कमेटी का मानना था कि इस व्‍यवस्‍था से केंद्र सरकार MSP से नीचे फसलों के दाम जाने पर किसानाें की नुकसान की भरपाई के तौर पर इस्‍तेमाल कर सकती है. 

कमेटी ने अपनी सिफारिशों में लेवी यानी मंडी शुल्‍क को भी एक समान करने की बात कही थी. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गुजरात-पश्चिम बंगाल में अनाज बेचने पर मंडी शुल्‍क या लेवी सिर्फ दो फीसदी ही लगती हैै, जबकि पंजाब में 14.5 फीसदी वसूला जाता है. कमेटी ने इसे MSP के चार फीसदी तक सीमित करते हुए MSP में शामिल करने की सिफारिश की थी. 

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किसानों को प्रोत्‍साहित करने की सिफारिश की थी. कमेटी ने देश की फर्टिलाइजर सब्‍सिडी का जिक्र करते हुए( जिसका भुगतान किसानों के बजाय फर्टिलाइजर कंपनियों को किया जाता है) सिफारिश की थी कि किसानों को 7 हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से सब्‍सिडी देनी चाहिए. जिसका भुगतान नगद सीधे किसानाें के बैंक खातों में किया जाना चाहिए.

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में मौजूदा MSP नीति की समीक्षा करने की सिफारिश की थी. कमेटी ने कहा था कि अभी 23 फसलों पर MSP दी जा रही है, लेकिन MSP पर सबसे अधिक गेहूं और धान की खरीद होती है. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में दालों और तिलहनी फसलों की कमी के बावजूद कई बार इनकी कीमत MSP से नीचे चली जाती है. 

वहीं कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कई बार सरकार तिलहनी और दलहनी फसलों का इंपोर्ट काफी कम दाम में कर लेती है, जिसका नुकसान किसानों को होता है. कमेटी ने अपनी सिफारिश में MSP पर तिलहनी और दलहनी फसलों की खरीद करने और इन फसलों का इंपोर्ट कम दाम में ना करने की व्‍यवस्‍था सुनिश्‍चित करने की बात कही थी.

कमेटी ने अपनी सिफारिशाें में कहा है कि FCI को अनाज खरीद की व्‍यवस्‍था को तर्कसंगत बनाने के लिए अनाज खरीद में राज्‍यों के साथ प्रतिस्‍पर्धा में निजी क्षेत्रों को मौका देना चाहिए.

सिफारिशें क्‍यों मोदी सरकार का एग्रीकल्‍चर रिफाॅर्म प्‍लान

शांता कुमार कमेटी को कई एक्‍सपर्ट मोदी सरकार का एग्रीकल्‍चर रिफार्म प्‍लान मानते हैं. कहा जाता है कि कमेटी की कई सिफारिशों पर पीएमओ का सीधा दखल रहा है. तो वहीं कमेटी की तरफ से सिफारिशें सौंपने के बाद से अब तक हुए मोदी सरकार के एग्रीकल्‍चर एक्‍शन में इसका अक्‍स भी दिखाई देता है, जिसमें तीन कृषि कानून प्रमुख थे. 

वहीं किसानों की सीधी सब्‍सिडी वाली सिफारिशों को पीएम किसान सम्‍मान निधि योजना से जोड़ा जा सकता है. हालांकि समिति की सिफारिश और योजना से मिल रही राशि में बड़ा अंतर है. इसी तरह तीनों कृषि कानून वापिस लिए जा चुके हैं, लेकिन सहकारिता मंंत्रालय के माध्‍यम से पैक्‍स की मजबूती और दुनिया का सबसे बड़ा अनाज भंडारण बनाने की योजना में भी शांता कुमार कमेटी की झलक दिखाई देती है.

इसी तरह पैक्‍स के गोदामों में अनाज रखने की योजना और उसके बदले किसानों को अग्रिम भुगतान या कर्ज की सुविधा वाली योजना भी समिति की ही सिफारिश है.

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