लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां शुरू हो गई हैं. शुरू से ही इस लोकसभा चुनाव को खेती-किसानी के लिहाज से बेहद ही दिलचस्प माना जा रहा था. इसके पीछे की वजह तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 26 दिसंबर 2020 से शुरू होकर 13 महीने तक चला किसान आंदोलन था. देश के 30 से अधिक किसान संगठनों के संयुक्त बैनर संयुक्त किसान मोर्चा यानी SKM के बैनर तले हुए इस किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार को तीनों कानूनों को वापस लेना पड़ा था, लेकिन इसके बाद भी किसान आंदोलन की तासीर गर्म रही थी. मसलन, MSP गारंटी कानून बनाने, किसान कर्ज माफी जैसे कई मुद्दाें को लेकर SKM एक्टिव रहा.
हालांकि इस बीच SKM में बिखराव भी हुआ, लेकिन SKM के बैनर तले लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़े किसान आंदाेलन की संभावनाएं बनी हुई थी, जिसे किसानों के शक्ति परीक्षण के तौर पर देखा जा रहा था, लेकिन कई गुटों में SKM के बिखराव से संभावित किसान आंदोलन दो राहों पर नजर आ रहा है. इस वजह से लोकसभा चुनाव से पहले अपनी शक्ति का परिचय देने की चाह रखने वाला एक सामान्य किसान उलझा हुआ नजर आ रहा है.
संयुक्त किसान मोर्चा यानी SKM से जुड़े किसान संगठनों ने लोकसभा चुनाव से पहले किसान आंदोलन की कॉल की है, लेकिन ये पूरी कवायद अलग-अलग आंदोलन के जरिए शक्ति परीक्षण की दिखाई दे रही है. किसान संगठन कई गुटों में बंंटे हुए दिखाई दे रहे हैं. जिसमें SKM और SKM गैर राजनीतिक प्रमुख किसान गुट हैं. पंजाब के कम्युनिस्ट नेता डॉ दर्शन पाल के संयोजन वाले SKM ने 26 जनवरी को देशभर में किसान ट्रैक्टर मार्च का ऐलान किया हुआ है. तो वहीं इसके बाद 15 फरवरी से देश में ग्रामीण बंद का ऐलान भी कर दिया है. हालांकि SKM 28 जनवरी को बैठक कर आगामी आंदोलन की रणनीति को और धार देने की बात कर रहा है.
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वहीं दूसरी तरफ पंजाब के किसान नेता सरवन सिंह पंधेर और जगजीत सिंंह दल्लेवाल के बैनर तले SKM गैर राजनीतिक 13 फरवरी को दिल्ली चलो आंदोलन का ऐलान कर चुका है. वहीं इस तरफ बीकेयू उगराहां ने 22 जनवरी से 26 जनवरी तक पंजाब के किसानों की मांग करते हुए मोर्चेबंदी कर रहा है. हालांकि SKM के आंदोलन का वह हिस्सा रहेगा.
फरवरी में अलग-अलग किसान आंदोलन के बाद SKM अपनी फूट संंभालने में जुटा हुआ है. इसी कड़ी में डॉ दर्शनपाल के संयोजन वाली SKM ने 16 दिसंबर को अपने जालंधर सम्मेलन में अपने हुए टूटे तारों को कसा है, जिसमें चुनाव के नाम पर SKM से अलग हो चुके किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे बलवीर सिंंह राजेवाल को मनाने में SKM सफल होता हुआ दिख रहा है. SKM के जालंधर अधिवेशन में शामिल हुए राजेवाल से किसान तक ने बात की, जिसमें उन्होंने SKM में वापसी की बात को तो स्वीकारा, लेकिन 28 जनवरी की बैठक के बाद ही अगली रणनीति तय करने की बात भी की.
वहीं SKM और SKM गैर राजनीतिक के बीच जमी बर्फ अभी पिछलती हुई दिखाई नहीं दे रही है. SKM में फूट को लेकर SKM के पदाधिकारी किसान नेता अविक शाह कहते हैं कि SKM एक ही है, जब आंदोलन हुआ था. उस दौरान कई संंगठन अलग हुए थे. 16 जनवरी को जालंधर सम्मेलन में 32 संगठन शामिल हुए थे. ये 32 संंगठन किसान आंदोलन का हिस्सा थे. वह सरवन सिंह पंढेर और दल्लेवाल के नेतृत्व वाली SKM गैर राजनीति के सुलह और बातचीत पर कहते हैं कि वह SKM नहीं है.
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13 फरवरी से SKM गैर राजनीति के शुरू हो रहे किसान आंदोलन पर वह कहते हैं कि सरकारी समर्थन से एक किसान आंदोलन SKM के किसान आंदोलन के सामने खड़ा किया जा रहा है. वहीं वह कहते हैं गुरनाम सिंह चढूनी को SKM को वापस लेने की कोशिशें जारी हैं. वहीं SKM की फूट से किसानों के बीच उलझन के सवाल पर बीकेयू उगराहां के प्रधान जोगिंदर सिंह उगराहां कहते हैं कि ये बात सच है कि इस तरह की फूट से किसान उलझन में हैं, लेकिन सिद्धांतों से समझौता नहीं किया जा सकता है.
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