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Mustard: MSP पर 25 फीसदी सरसों खरीद का नियम...किसानों की ये है बड़ी परेशानी, पढ़ें Inside Story

Mustard: MSP पर 25 फीसदी सरसों खरीद का नियम...किसानों की ये है बड़ी परेशानी, पढ़ें Inside Story

सरसों, सोयाबीन जैसे तिलहनी फसलें नीतियों के मकड़जाल में फंसी हुई हैं, जिसमें MSP पर कुल 25 फीसदी सरसों जैसी तिलहनी फसलों की खरीदारी का नियम किसानों की मुश्‍किलें बढ़ाता है.

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तिलहनी और दलहनी फसलों की MSP पर 25 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती खरीदारी तिलहनी और दलहनी फसलों की MSP पर 25 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती खरीदारी

भारत खाद्य तेलों की अपनी घरेलू जरूरतों का 60 फीसदी से अधिक हिस्‍सा इंपोर्ट करता है. सीधे शब्‍दों में कहा जाए तो भारत में खाद्य तेलों की कमी है और इस कमी का अस्‍थाई समाधान करते हुए भारत सरकार विदेशों से खाद्य तेल मंगवाती है, तो वहीं स्‍थाई समाधान के लिए सरकार देश को खाद्य तेलों के मामले में आत्‍मनिर्भर बनाने की कोशिशें कर रही हैं, लेकिन इसके उलट देश में तिलहनी फसलों की खेती करने वाले किसानों काे उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिल पाता.

तिलहनी फसलों के मामले में इस विरोधाभास का आलम ये है कि सरसों, सोयाबीन के दाम MSP से नीचे चल रहे हैं और पिछले कुछ सालों से दामों में गिरावट एक परिपाटी सी बन गई है. अब सवाल ये है कि जब गेहूं और धान की MSP पर वाजिब खरीद होती है तो MSP की घोषणा के बाद भी सरसों, सोयाबीन जैसे तिलहनी फसलों के किसानों को बाजिब दाम क्‍यों नहीं मिल पाता है.

मसलन, उनकी फसल MSP से नीचे क्‍यों बिकती है. इस मामले की पड़ताल करने में ये समझा जा सकता कि सरसों, सोयाबीन जैसे तिलहनी फसलें नीतियों के मकड़जाल में फंसी हुई हैं, जिसमें MSP पर कुल 25 फीसदी सरसों जैसी तिलहनी फसलों की खरीदारी का नियम किसानों की मुश्‍किलें बढ़ाता है. इसके साथ ही MSP पर खरीद के नियम किसानों के लिए बड़ा सिरदर्द हैं. आइए इसी कड़ी में समझते हैं कि पूरा मामला क्‍या है. 
  

कांग्रेस ने तिलहनी फसलों की खरीद पर लगाई थी लिमिट 

केंद्र सरकार 23 फसलों की MSP घोषित करती है, लेकिन गेहूं और धान की MSP पर सबसे अधिक खरीद होती है और तिलहनी और दलहनी फसलें बहुत कम MSP पर खरीदी जाती है. मसलन, नियमानुसार सरसों, साेयाबीन जैसी तिलहनी फसलें MSP पर 25 फीसदी खरीदने का ही नियम है. इस नियम की जानकारी देते हुए किसान महापंचायत के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि 2014 में कांंग्रेस शासित मनमोहन सरकार फसलों की खरीद के लिए Price Support Scheme लेकर आई थी. इस स्‍कीम की गाइडलाइंस के मुताबिक गेहूं और धान की MSP पर खरीद की कोई लिमिट तय नहीं की गई है, जबकि तिलहनी और दलहनी फसलों की MSP पर खरीद की लिमिट तय की गई है, जिसके तहत कुल उत्‍पादन की 25 फीसदी ही सरसों, सोयाबीन और दालों की MSP पर खरीदी राज्‍य सरकारों के माध्‍यम से की जाती है. 

बीजेपी ने नियमों को और कठिन बना दिया 

सरसों, सोयाबीन के दाम मौजूदा वक्‍त भी MSP से नीचे चल रहे हैं. इसके पीछे का मुख्‍य कारण ये है कि इन फसलों की MSP पर खरीद की व्‍यवस्‍था ठीक नहीं है. मसलन, कांग्रेस सरकार के समय खरीद की लिमिट का नियम अभी भी लागू है, बल्‍कि बीजेपी सरकार में ये और कठिन बन गया है. इस पूरे मामले को समझाते हुए किसान महापंचायत के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि कांग्रेस की Price Support Scheme को बीजेपी सरकार ने भी जारी रखा.मसलन, इस योजना को 2018 में पीएम अन्‍नदाता आय संरक्षण अभियान यानी PM Asha नाम दिया गया है, लेकिन बीजेपी सरकार में हुए एक बदलाव से ये नियम और कठिन बन गया.

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वह बताते हैं कि कांग्रेस के समय शुरू हुई  Price Support Scheme में तिलहनी और दलहनी फसलों की MSP पर खरीद 25 फीसदी से अधिक बढ़ाने का अधिकार केंद्रीय कृषि मंंत्री को दिया गया था. मसलन, अगर केंद्रीय कृषि मंंत्री चाहे तो वह सरसों, साेयाबीन और दालों की MSP पर खरीद कुल उत्‍पादन का 40, 60 फीसदी या इससे अधिक कर सकते थे, लेकिन बीजेपी सरकार ने इस मंजूरी के लिए केंद्रीय कृषि, वित्‍त और वाणिज्‍य मंत्री की एक समिति बना दी. मसलन, ये समिति ही अब खरीद की सीमा बढ़ाने का फैसला ले सकती है. 

MSP पर 25 क्‍विंटल और अधिकतम 90 दिन खरीद

सरसों, सोयाबीन और दालों किसानों की मुश्‍किलें MSP पर 25 फीसदी खरीद का नियम ही नहीं बढ़ता है. बल्‍कि MSP पर खरीद के कुछ अन्‍य नियम भी हैं, जो बड़ी समस्‍या हैं. इसके बारे में बताते हुए रामपाल जाट कहते हैं कि नियमों के अनुसार सरसों, सोयाबीन जैसे तिलहनी और दलहनी फसलों की अधिकतम 90 दिन ही MSP पर खरीद की जा सकती है. ऐसे में राज्‍य सरकारें MSP पर 60 दिन से अधिक खरीद नहीं करना चाहती हैं. साथ ही वह कहते हैं कि नियमों के अनुसार एक किसान 25 क्‍विंटल से अधिक सरसों, सोयाबीन जैसी फसलें नहीं बेच सकता है, ये नियम सभी तिलहनी और दलहनी फसलों पर लागू है. इस वजह से किसानों को उनकी उपज का दाम नहीं मिल पाता हैं.

बदलने होंगे नियम 

किसान महापंचायत के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि भारत को तिलहन और दलहन के क्षेत्र में आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए ये नियम बदलने होंगे. वह कहते हैं कि जब 12 महीने के बाद अनाज होता है. तो 60 दिन खरीद का प्रावधान गलत है. किसानों से MSP पर 365 दिन खरीद होनी चाहिए. 25 फीसदी लिमिट को हटाना चाहिए. इस नियम की वजह से किसानों की 75 फीसदी उपज बेहतर दाम से वंचित हो जाती है और किसानों के हिस्‍से नुकसान आता है.

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साथ ही वह कहते हैं कि 25 फीसदी खरीद के लिए किसानों को रजिस्‍ट्रेशन कराना होता है. रजिस्‍ट्रेशन की प्रक्रिया में कई पेंच हैं और रजिस्‍ट्रेशन के बाद भी कई किसान MSP पर खरीद की प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पाते हैं. वहीं एक दिन में एक किसान से 25 क्‍विंटल से अधिक की खरीद की व्‍यवस्‍था भी किसानों का खर्च बढ़ता है. जरूरी है कि ये नियम बदलें जाएं.