Organic Farming: मुनाफा और स्वास्थ्य का डबल डोज है जैविक सब्जी की खेती, जानिए कैसे ?

Organic Farming: मुनाफा और स्वास्थ्य का डबल डोज है जैविक सब्जी की खेती, जानिए कैसे ?

जैविक सब्जी की खेती किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद है, जो मुनाफे के साथ बेहतर स्वास्थ्य का दोहरा लाभ प्रदान करती है. रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग न होने से ये सब्जियां पूरी तरह से प्राकृतिक और पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं. इनके सेवन से शरीर हानिकारक रसायनों के दुष्प्रभाव से बचा रहता है, जिससे स्वास्थ्य बेहतर होता है. बाज़ार में जैविक सब्जियों की बढ़ती मांग के कारण किसानों को इनकी अच्छी कीमत मिलती है. साथ ही, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर खर्च न होने से खेती की लागत कम हो जाती है, जिससे किसानों का मुनाफा बढ़ता है और भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है.

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Organic Farming: मुनाफा और स्वास्थ्य का डबल डोज है जैविक सब्जी की खेती, जानिए कैसे ? ऑर्गेनिक फार्मिंग से किसानों को फायदा

आजकल लोग अपने भोजन की सुरक्षा और गुणवत्ता को लेकर ज़्यादा जागरूक हो गए हैं. इसी जागरूकता के चलते जैविक खेती एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभरी है. यह विधि न केवल हमें पौष्टिक और रसायन-मुक्त भोजन देती है और पर्यावरण की रक्षा करती है, बल्कि यह किसानों के लिए कम लागत में अधिक मुनाफ़ा कमाने का एक शानदार ज़रिया भी है. भारत की विविध जलवायु और मिट्टी जैविक सब्ज़ी उत्पादन के लिए अधिक बेहतर है, जिससे निर्यात द्वारा भी अच्छी आय अर्जित की जा सकती है. जैविक सब्ज़ी की खेती किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद है, जो मुनाफ़े के साथ बेहतर स्वास्थ्य का दोहरा लाभ प्रदान करती है.

रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग न होने से ये सब्जियां पूरी तरह से प्राकृतिक और पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं. इनके सेवन से शरीर हानिकारक रसायनों के दुष्प्रभाव से बचा रहता है, जिससे स्वास्थ्य बेहतर होता है. बाजार में जैविक सब्ज़ियों की बढ़ती मांग के कारण किसानों को इनकी अच्छी कीमत मिलती है. साथ ही, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर खर्च न होने से खेती की लागत कम हो जाती है, जिससे किसानों का मुनाफ़ा बढ़ता है और भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है.

जैविक सब्जियां पोषण और सेहत का खजाना

एक शोध के अनुसार, पारंपरिक खेती की तुलना में जैविक तरीके से उगाई गई सब्ज़ियों की पौष्टिकता कहीं ज़्यादा होती है. जैविक पालक में विटामिन सी 51 फीसदी, पत्तागोभी में 41 फीसदी और मटर में 19 फीसदी तक बढ़ जाता है. वहीं, टमाटर में कैंसर-रोधी तत्व लाइकोपीन 39 फीसदी तक अधिक पाया जाता है. वही जैविक सब्जियों में कैल्शियम 63 फीसदी, आयरन 73 फीसदी और मैग्नीशियम 118 फीसदी तक ज़्यादा पाया गया है. जैविक सब्ज़ियों का रंग, चमक और स्वाद प्राकृतिक रूप से बेहतर होता है.

जैविक आलू, गाजर और पत्तागोभी जैसी सब्ज़ियों में हानिकारक नाइट्रेट की मात्रा बहुत कम होती है, जो इन्हें सेहत के लिए सुरक्षित बनाता है. जैविक खेती मिट्टी को केवल एक माध्यम नहीं, बल्कि एक जीवित इकाई मानती है. यह मिट्टी को पुनर्जीवित और उपजाऊ बनाती है, जिसके कई कारण हैं. जैविक खाद के प्रयोग से मिट्टी में जैविक कार्बन जमा होता है, जो मिट्टी की संरचना को सुधारता है और उसे पोषक तत्वों का भंडार बनाता है. कार्बन बढ़ने से मिट्टी की पानी सोखने और नमी बनाए रखने की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे फसल को सूखे का सामना करने में मदद मिलती है. जैविक खाद मिट्टी में मौजूद करोड़ों सूक्ष्म जीवों के लिए भोजन का काम करती है. ये जीव पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

किसानों के लिए मुनाफ़े के अवसर 

जैविक खेती किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी बहुत फ़ायदेमंद है. बज़ार में जैविक सब्ज़ियों की कीमत पारंपरिक सब्ज़ियों से 10 फीसदी से 50 फीसदी तक ज़्यादा मिलती है. इसमें महंगे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होता, जिससे खेती की लागत कम हो जाती है. खेत पर ही उपलब्ध संसाधनों जैसे गोबर, फसल अवशेष का उपयोग होता है. भारत और दुनिया भर में जैविक उत्पादों का बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है, जिससे किसानों के लिए कमाई के नए रास्ते खुल रहे हैं. यह एक आम धारणा है कि जैविक खेती में पैदावार कम हो जाती है. यह बात शुरुआती 2-3 वर्षों  के लिए कुछ हद तक सही हो सकती है, क्योंकि मिट्टी को अपनी प्राकृतिक शक्ति वापस पाने में समय लगता है. लेकिन, लगभग छठे साल तक पैदावार न केवल पारंपरिक खेती के बराबर, बल्कि कई मामलों में उससे ज़्यादा हो जाती है. चूंकि जैविक उत्पादों का दाम ज़्यादा मिलता है, इसलिए किसानों को चौथे साल से ही बेहतर मुनाफ़ा मिलना शुरू हो जाता है.

जैविक खेती की तैयारी और प्रबंधन बेहद जरूरी

जैविक खेती की शुरुआत परिवर्तन काल से होती है, जिसमें किसी भी खेत को पूरी तरह जैविक बनाने में 2 से 3 साल का समय लगता है और इस दौरान किसी भी रासायनिक इनपुट का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दिया जाता है. इसके साथ ही, ऐसी फसलों और किस्मों का चुनाव करना महत्वपूर्ण है जो स्थानीय मिट्टी और जलवायु के अनुकूल हों, जिनमें प्राकृतिक रूप से बीमारियों और कीटों से लड़ने की क्षमता हो, और जिनके बीज प्रमाणित जैविक हों. खेती के दौरान मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए पूरी तरह से गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट (केंचुए की खाद), हरी खाद, खली और राइजोबियम जैसे जैव-उर्वरकों पर ही निर्भर रहा जाता है.

फसल सुरक्षा के प्राकृतिक तरीके

व्यावसायिक जैविक खेती में फसल सुरक्षा के लिए रासायनिक कीटनाशकों की जगह प्राकृतिक और एकीकृत तरीकों का इस्तेमाल होता है. जैविक खेती में फसल को सुरक्षित रखने के लिए खरपतवार और कीट-रोगों का प्रबंधन पूरी तरह से प्राकृतिक तरीकों पर निर्भर करता है. खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए समय पर निराई-गुड़ाई, मल्चिंग (ज़मीन को पुआल या प्लास्टिक से ढकना) और कवर क्रॉप्स जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है. इसी प्रकार, कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए एक एकीकृत रणनीति अपनाई जाती है, जिसमें प्रतिरोधी किस्में उगाना, फसल चक्र का पालन करना, ट्रैप क्रॉप्स लगाना और फेरोमोन ट्रैप का इस्तेमाल करना शामिल है. ज़रूरत पड़ने पर केवल नीम तेल जैसे वानस्पतिक कीटनाशकों और अन्य जैविक नियंत्रण विधियों का ही प्रयोग किया जाता है.

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