पंजाब में पराली जलाने की समस्या को लेकर सरकार और प्रशासन लगातार सक्रिय है. बठिंडा जिले में इस साल अब तक पराली जलाने की केवल एक घटना दर्ज की गई है. जिले की अतिरिक्त उपायुक्त (ADC) पूनम सिंह ने कहा है कि प्रशासन, किसानों और उद्योगों के बीच बेहतर समन्वय के जरिए यह समस्या अगले एक-दो सालों में पूरी तरह खत्म हो जाएगी. एडीसी पूनम सिंह ने बताया कि जिले में कृषि विभाग के अधिकारी गांव-गांव जाकर किसानों को पराली प्रबंधन के प्रति जागरूक कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, “हमारी पूरी टीम सक्रिय है. अधिकारी खेतों में जाकर किसानों को बता रहे हैं कि पराली जलाने की बजाय उसे प्रबंधित करने के क्या फायदे हैं, जिस तरह जिला प्रशासन और उद्योग मिलकर काम कर रहे हैं, उससे हमें विश्वास है कि आने वाले एक-दो वर्षों में पराली की समस्या खत्म हो जाएगी.”
गौरतलब है कि पराली जलाना पंजाब और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या रही है. हर साल फसल कटाई के बाद खेतों में जलाई जाने वाली पराली से भारी मात्रा में धुआं निकलता है, जो न सिर्फ वायु प्रदूषण बढ़ाता है बल्कि सर्दियों में धुंध और स्मॉग की समस्या को भी और गंभीर बना देता है. इससे सांस और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.
राज्य सरकार ने पराली जलाने पर सख्त प्रतिबंध लगाया है और किसानों को टिकाऊ विकल्प अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. सरकार बायो-डीकंपोजर, मशीनों और अवशेष प्रबंधन उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है, ताकि पराली को जलाए बिना मिट्टी में मिलाया जा सके.
उधर, अमृतसर जिले में पराली जलाने के मामलों में 80 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है. अमृतसर की उपायुक्त साक्षी सावनी ने बताया कि पिछले साल जहां 378 मामले सामने आए थे, वहीं इस साल केवल 73 घटनाएं दर्ज हुई हैं. यह कमी किसानों में जागरूकता और प्रशासनिक सख्ती का परिणाम है.
वहीं, पर्यावरण अभियंता सुखदेव सिंह ने बताया कि 15 से 27 सितंबर के बीच पंजाब में कुल 45 पराली जलाने के मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से 22 स्थानों पर आग लगने की पुष्टि हुई. इन मामलों में पर्यावरणीय मुआवजा वसूलने की कार्रवाई की गई है. (एएनआई)
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