महाराष्ट्र के पुरंदर गांव के किसान सुदाम इंगले को अपनी 7.5 क्विंटल प्याज के लिए सिर्फ 664 रुपये की कमाई हुई. वो भी तब, जब इस फसल में उन्होंने 66,000 रुपये का खर्च किया था. भारी बारिश ने फसल को बर्बाद कर दिया, और जो थोड़ी बहुत बची, वो भी इतने कम दाम पर बिकी कि खर्चा निकालना भी मुश्किल हो गया. इंगले बोले, “अब मैं प्याज को रोटर से खेत में मिलाकर खाद बना दूंगा. बेचने से यही बेहतर है.”
नासिक की लासलगांव APMC, जो एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी मानी जाती है, वहां प्याज के भाव 500 रुपये से 1400 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहे. लेकिन भारी बारिश से 80 परसेंट फसल खराब हो चुकी है और जो प्याज बची है, वो भी खराब क्वालिटी की है. किसानों ने जो प्याज स्टोर कर रखी थी, उन्हें अब 'डिस्ट्रेस सेल' में बेचना पड़ रहा है.
एक APMC सदस्य ने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से कहा, “इस बार दीपावली सिर्फ शहरों में मनाई जा रही है. गांवों में दीया खरीदने के भी पैसे नहीं हैं.” खराब फसल, कम कीमत और महंगे परिवहन ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
किसान माणिकराव जेंडे ने 1.5 लाख रुपये की लागत से अनार की खेती की थी, लेकिन लगातार बारिश से पौधे काले पड़ गए और फसल बर्बाद हो गई. सीताफल की नर्सरी में भी उन्हें 1 लाख का नुकसान हुआ. जेंडे ने कहा, “कृषि से मुनाफा नहीं, नुकसान ही मिल रहा है. यही कारण है कि गांव के युवा या तो शहरों की ओर पलायन करते हैं या फिर अपराध की ओर झुकते हैं.”
लातूर और नासिक जैसे बड़े कृषि बाजारों में भी मंदी छाई है. व्यापारी रमेश सूर्यवंशी ने कहा, “पिछले दो सालों से सोयाबीन के दाम नहीं सुधरे. अब चना और तुअर भी मंदे में हैं. गांव में खरीदने की ताकत नहीं बची.”
यह परेशानी सिर्फ़ सब्जियों तक ही सीमित नहीं है. भारत की सबसे बड़ी सोयाबीन मंडियों में से एक, लातूर में लगभग आधी फसल बर्बाद हो गई है. व्यापारी रमेश सूर्यवंशी ने कहा, "अच्छी क्वालिटी का सोयाबीन 4,100-4,250 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है, लेकिन बारिश से प्रभावित स्टॉक का दाम सिर्फ 2,000-3,000 रुपये ही मिल रहा है." "इससे लागत का आधा भी नहीं निकल पाता."
जो लोग पिछले सीजन से बेहतर दाम की उम्मीद में अपनी उपज जमा करके रखे थे, उन्हें भी सस्ते दामों पर बेचने पर मजबूर होना पड़ रहा है. सूर्यवंशी ने कहा, "सोयाबीन की कीमतों में दो साल से कोई सुधार नहीं हुआ है. चना और तुअर दाल के दाम भी कम हैं." "अच्छी क्वालिटी का चना 5,400-5,500 रुपये में बिक रहा है, जबकि खराब स्टॉक 3,000 रुपये में बिक रहा है. तुअर दाल की कीमत अधिकतम 6,800 रुपये है."
किसानों के लिए इसका मतलब है कि त्योहारों के मौसम में खर्च करने के लिए उनके पास अतिरिक्त पैसा नहीं है -- और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी कोई सुधार की संभावना नहीं दिख रही है. सूर्यवंशी ने कहा, "किसानों की क्रय शक्ति खत्म हो गई है. दिवाली का कारोबार भी प्रभावित हो रहा है. कुल मिलाकर माहौल निराशाजनक है."
महाराष्ट्र के हजारों किसान आज कर्ज, बारिश और बाजार के त्रिकोण में फंसे हुए हैं. रबी सीजन की शुरुआत से पहले ही उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं. फसलों की बर्बादी और कीमतों के पतन ने गांवों की अर्थव्यवस्था को दिवाली के मौके पर अंधेरे में धकेल दिया है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today