पंजाब में पराली जलाने के मामलों में बीते 10 दिनों में तीन गुना से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) के आंकड़ों के अनुसार, इस सीजन में अब तक राज्य में 353 पराली जलाने की घटनाएं सामने आई हैं. इनमें सबसे ज्यादा मामले तरनतारन और अमृतसर जिलों से दर्ज किए गए हैं. 11 अक्टूबर तक राज्य में केवल 116 घटनाएं दर्ज हुई थीं, लेकिन इसके बाद 10 दिनों में यह आंकड़ा तेजी से बढ़ा है. अकेले तरनतारन जिले में 125 और अमृतसर में 112 मामले दर्ज हुए हैं. इसके अलावा फिरोजपुर में 27, पटियाला में 23 और संगरूर में 8 घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं.
पराली जलाने की यह प्रथा हर साल अक्टूबर-नवंबर में चरम पर पहुंचती है, जब किसान धान की फसल की कटाई के बाद सीमित समय में गेहूं की बुआई के लिए खेतों की सफाई करते हैं. चूंकि रबी फसल बोने का समय बहुत कम होता है, इसलिए किसान फसल अवशेष (पराली) को आग लगाकर जल्दी से खेत खाली कर लेते हैं.
सरकार की अपीलों और कई जागरूकता अभियानों के बावजूद किसान अब भी इस पारंपरिक और प्रदूषणकारी तरीके को अपनाने से बाज नहीं आ रहे हैं. PPCB के अनुसार, अब तक 162 मामलों में 8 लाख रुपये से अधिक का पर्यावरण मुआवजा (जुर्माना) लगाया गया है, जिसमें से 5.65 लाख रुपये वसूल भी कर लिए गए हैं.
इसके साथ ही, राज्य पुलिस ने 149 एफआईआर दर्ज की हैं, जिनमें तरनतारन में 61 और अमृतसर में 39 मामले शामिल हैं. ये सभी केस भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 223 (लोक सेवक द्वारा जारी आदेश की अवहेलना) के तहत दर्ज किए गए हैं.
सरकार ने पराली प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान चलाए हैं और किसानों को आधुनिक मशीनरी जैसे हैप्पी सीडर, सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, रोटावेटर आदि का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसके बावजूद, कई किसान पराली को खेत में जलाना सस्ता और आसान विकल्प मानते हैं.
पराली जलाने की वजह से पंजाब और हरियाणा में हर साल वायु प्रदूषण बढ़ जाता है, जिसका असर दिल्ली-एनसीआर तक देखने को मिलता है. वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में गिरावट आने के पीछे इस प्रदूषण का बड़ा योगदान रहता है.
आंकड़ों पर नजर डालें तो पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल की तुलना में उल्लेखनीय कमी आई थी. वर्ष 2024 में कुल 10,909 घटनाएं दर्ज हुई थीं, जबकि 2023 में यह संख्या 36,663 थी यानी करीब 70 प्रतिशत की कमी. 2022 में 49,922, 2021 में 71,304, 2020 में 76,590, 2019 में 55,210 और 2018 में 50,590 मामले सामने आए थे. (पीटीआई)
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