प्याज की घटती कीमतों ने किसानों को परेशान कर दिया है. इसके चलते लागत तो दूर, उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. मजबूरी में किसानों को अपनी प्याज की उपज को बेचना पड़ रहा है. ऐसे में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के कृषि-अर्थशास्त्री के एक बयान ने सबका ध्यान खींच लिया है. कृषि अर्थशास्त्री ने कहा कि पूर्व में लागू होने वाले कृषि बिल अगर अमल में रहते, तो ऐसे दिन नहीं देखने पड़ते. लेकिन अब सरकार के हस्तक्षेप की वजह से सुधार की उम्मीद जगी है.
'आजतक' से खास बातचीत में BHU के कृषि विज्ञान संकाय के कृषि-अर्थशास्त्र विभाग के प्रो. राकेश सिंह ने कहा, तीन कृषि बिल अधिनियम बन गए थे और इसे सरकार को वापस लेना पड़ा. ये तीनों बिल एग्रीकल्चर के मार्केटिंग फील्ड में एक बड़े मार्केट रिफॉर्म थे. तीनों बिलों का मुख्य उद्देश्य यही था कि मार्केट में खरीदारों की संख्या बढ़ सके. अगर किसान बिल लागू हुए रहते तो प्रोसेसर, एक्सपोर्टर, होटल एसोसिएशन जैसे तमाम खरीदार बाजार में आते और मार्केट प्राइस उतनी न गिरती जितनी आज गिर चुकी है. बढ़े हुए दाम का फायदा किसानों को मिलता, ये उम्मीद की जा सकती है.
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प्रो. राकेश सिंह ने कहा, मौजूदा समय में 9 फरवरी तक महाराष्ट्र में प्याज की कीमतें 1100 रुपये प्रति क्विंटल थी. लेकिन जब तापमान बढ़ने लगा तो नमी कम होने लगी. प्याज की पैदावार का 40% हिस्सा महाराष्ट्र पूरा करता है. सप्लाई भी बढ़ गई. इस तरह पोस्ट खरीफ फसल भी बाजार में आ गई. मजबूरी यह हो गई कि तापमान बढ़ने की वजह से प्याज को चार माह से ज्यादा स्टोर नहीं किया जा सकता है. इसलिए दाम गिरकर 500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया.
प्रो. सिंह ने कहा, इसके बाद ट्रेडर एसोसिएशन ने मांग उठाई कि 'नेफेड' को प्याज खरीदना चाहिए. सरकार ने शुरू भी कर दिया और प्याज के क्रय केंद्र खोल दिए गए. ठीक यही प्रावधान उस बिल में था जिसमें खरीदारों की संख्या बढ़ाने की बात कही गई थी. इसलिए अगर अधिनियम लागू हो जाता तो और अधिक खरीदार मिल जाते. ऐसे में सरकार को भी प्याज खरीदने की जरूरत ना पड़ती और बाजार भाव अपने आप ऊपर चला जाता.
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बीएचयू के प्रो. सिंह ने कहा, तीनों कृषि बिल को पायलट बेस पर लागू करके इसके प्रभाव का अध्ययन करना चाहिए. अगर किसानों के हित का बिल लगता है तो उसे फिर से लागू करने की कोशिश करनी चाहिए. प्रो. सिंह ने बताया कि अब चूंकि नेफेड बाजार में आ गया है तो प्याज की दर का गिरना रुक जाएगा और सरकार ने एक्सपोर्ट को भी प्रमोट करने की कोशिश की है. ऐसे में दोनों ही कोशिशों से दाम बढ़ने लगेंगे. नई फसल मार्च-अप्रैल में आ जाएगी और रबी फसल की कटाई के बाद प्याज की कीमत और भी नीचे जा सकती है. लेकिन सरकार के हस्तक्षेप की वजह से उम्मीद है कि प्याज के दाम और ज्यादा नीचे नहीं जाएंगे.(रिपोर्ट/रोशन जायसवाल)
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