कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गेंदा के फूल की खेती (marigold farming) आप सर्दी, गर्मी और बरसात कभी भी कर सकते हैं. गेंदा के फूल का इस्तेमाल (Use of marigold flower) पूजा से लेकर शादी और हर शुभ कामों में किया जाता है. भारतीय संस्कृति और रीति-रिवाजों के अनुसार फूल का अपना अलग महत्व है. कोई भी पूजा हो या फिर शुभ काम, हर जगहों पर फूल का प्रयोग किया जाता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए किसान भी हर मौसम में गेंदे की खेती करना पसंद करते हैं.
ऐसे में किसान किसी भी मौसम में गेंदे की खेती कर मुनाफा कमा सकते हैं. पूजा-पाठ और सजावट में लोग इसका उपयोग सबसे अधिक करते हैं. गेंदा फूल पूरे देश में एक महत्वपूर्ण फूल है. इसका मुख्य कारण यह भी है कि इस फूल को आप लम्बे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं वो भी बिना किसी लागत के. इन फूलों का ज्यादातर इस्तेमाल माला और सजावट के लिए किया जाता है.
गेंदा की खेती मुख्य रूप से ठंड के मौसम में की जाती है. ठंड के मौसम में गेंदा की वृद्धि और फूलों की गुणवत्ता दोनों अच्छी होती है जिस वजह से यह मौसम इसके लिए अनुकूल माना गया है. हालांकि यह भी सच है कि इसकी खेती मानसून, सर्दी और गर्मी तीनों मौसमों में की जाती है. गेंदा की खेती (marigold farming) विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. गेंदा 7.0 से 7.6 के सतह क्षेत्र वाली मिट्टी में अच्छी तरह से बढ़ता है. गेंदा की फसल को धूप की बहुत जरूरत होती है. पेड़ छाया में अच्छे से बढ़ता हैं लेकिन फूल नहीं लगता है. ऐसे में गेंदा की खेती खुले जगह पर ही करें.
गेंदे की खेती (marigold farming) से अगर अगर आप अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों का खास ध्यान रखना होगा. जैसे की उन्नत किस्म:
यह किस्म लगाने के 123-136 दिन बाद फूल लगता है. झाड़ी 73 सेकंड में लंबा होता है और बढ़त भी अधिक होता है. फूल का रंग सुर्ख नारंगी रंग का होता है और लंबाई 7 से 8 सेमी. के बीच का होता है. उपज औसतन प्रति हेक्टेयर 35 मी. टन/हेक्टेयर है.
यह किस्म 135 से 145 दिनों में तैयार हो जाती है। फूल पीले रंग का होता है और 6 से 9 सेंटीमीटर का होता है.
गेंदे की फसल लेने के लिए भूमि को तैयार करते समय एक गहरी जुताई कर तीन-चार जुताई कल्टीवेटर से कर खेत को समतल बना लें. इसके अलावा जुताई के समय 15-20 टन सड़ी हुई गोबर खाद या कंपोस्ट खाद जमीन में मिला दें ताकि उपज अच्छी मिले. छह बोरी यूरिया, 10 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट और तीन बोरी पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेतों में मिला दें. यूरिया को तीन बराबर भागों मे बांटकर एक भाग एवं सिंगल सुपर फॉस्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा को रोपाई के समय दें. यूरिया की दूसरी व तीसरी मात्रा को रोपाई के 30 दिन एवं 45 दिन बाद पौधों के आसपास कतारों के बीच में दें.
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