भारत में सिंदूर (Sindoor) को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. शादी के बाद महिलाएं इससे मांग भरती हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि जिस सिंदूर का इतना महत्व है, वह तैयार कैसे होता है. हो सकता है आपने ये सुना हो कि सिंदूर को पौधे से तैयार करते हैं. मगर क्या आपको पता है कि उस पौधे का नाम क्या है और उसकी खेती कैसे की जाती है? आइए इन तमाम सवालों के जवाब लेते हैं.
सिंदूर जिसे अंग्रेजी में Vermillion कहते हैं, उसके पौधे को कुमकुम ट्री या कमील ट्री कहते हैं. यह एक औषधीय पौधा है जिसका बोटेनिकल नाम बिक्सा ओरियाना है. बाकी पौधों की तरह सिंदूर का भी पौधा होता है. यह ऐसा पौधा है जिसका फल पाउडर और तरल रूप में सिंदूर जैसा लाल रंग पैदा करता है. यही वजह है कि कई लोग इसे लिक्विड लिपस्टिक ट्री भी कहते हैं, क्योंकि इससे निकलने वाला रंग होठों को प्राकृतिक रंग देता है. सिंदूर का यह पौधा देश में हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में व्यावसायिक रूप से उगाया जाता है.
एक पौधे से डेढ़ किलो तक सिंदूर के बीज निकलते हैं. आमतौर पर इसके बीजों का उपयोग रंग यानी पिगमेंट बनाने के लिए किया जाता है. इसमें लाल रंग की मात्रा अधिक होती है. इससे निकलने वाले रंग यानी पिगमेंट का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों (कॉस्मेटिक्स) और खाद्य पदार्थों में भी किया जाता है.
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सिंदूर के पौधे का कई औषधि महत्व भी है. इसे सिंदूरी भी कहा जाता है. कॉस्मेटिक्स में इससे लिपस्टिक, हेयर डाई, नेल पॉलिश और लिक्विड सिंदूर बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा पेंट बनाने में भी इसके प्राकृतिक रंग का इस्तेमाल होता है. बाजार में बिकने वाले सिंदूर में मरकरी सल्फेट होता है जो हमारी त्वचा और बालों दोनों के लिए नुकसानदायक होता है. यही वजह है कि देश-दुनिया में प्राकृतिक सिंदूर की बहुत मांग है और इसमें लगातार तेजी देखी जा रही है. इसे देखते हुए भारत में इसके पौधे पर बड़ा रिसर्च चल रहा है.
सिंदूर के महत्व को देखते हुए बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU) में इस पर महत्वपूर्ण शोध चल रहा है. यह शोध प्राकृतिक, गैर-विषाक्त और पर्यावरण-अनुकूल सिंदूर विकसित करने पर केंद्रित है. बीएयू के वैज्ञानिकों के अनुसार, सिंथेटिक सिंदूर में पाए जाने वाले रसायन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए, इस परियोजना में एक्सट्रैक्शन, स्टेबलाइजेशन और फॉर्मुलेशन तकनीकों का उपयोग किया गया है जिससे प्राकृतिक सिंदूर का रंग स्थायी रहेगा, शेल्फ-लाइफ बढ़ेगी और उत्पाद की क्वालिटी में सुधार होगा.
इसकी खेती गर्म जलवायु में होती है और जहां धूप की अधिक मात्रा हो, वहां बहुतयात में इसकी खेती की जाती है. इसके पौधे की खेती बीज और कलम दोनों से की जाती है. अगर बीज से खेती करते हैं तो उसे घर के गमले में मिट्टी में लगा सकते हैं. पहले से तैयार कलम की मदद से भी सिंदूर को लगा सकते हैं. इसकी खेती बड़े पैमाने पर या घऱ के गमले में छोटे स्तर पर भी कर सकते हैं. अभी देश में इस पर रिसर्च जारी है, इसलिए व्यावसायिक स्तर पर बहुत अधिक खेती नहीं हो रही है.
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