पिछले एक साल से शंभू और खनौरी बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों की एक बड़ी मांग भारत को विश्व व्यापार संगठन (WTO) से बाहर निकलने की भी है, ताकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने पर लगाई गई अंतरराष्ट्रीय शर्तों से सरकार मुक्त हो जाए और उसका किसानों को फायदा मिले. एक सवाल के लिखित जवाब में खुद केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संसद में एमएसपी को लेकर डब्ल्यूटीओ द्वारा लगाई गई शर्तों की जानकारी दी है. दरअसल, डब्ल्यूटीओ के कृषि समझौते (AOA) के मुताबिक भारत जैसे विकासशील देश अपने यहां होने वाली फसलों की कुल कीमत पर एमएसपी को मिलाकर अधिकतम 10 फीसद ही सब्सिडी दे सकते हैं. वो निर्धारित सीमा से अधिक सब्सिडी देने वाले देशों को अंतरराष्ट्रीय कारोबार बिगाड़ने वाले देश के तौर पर देखने लगते हैं. बहरहाल, चौहान के जवाब के साथ ही WTO का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है.
किसान संगठन, सरकार पर डब्ल्यूटीओ से बाहर निकलने का दबाव बना रहे हैं, इस मुद्दे सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन डब्ल्यूटीओ द्वारा भारत पर थोपी गई शर्तों को लेकर बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस से सवाल पूछे जाने की जरूरत है, जो इन दिनों किसानों की सबसे बड़ी हितैषी बनी फिर रही है. क्योंकि उसी के शासन में भारत ने डब्ल्यूटीओ के कृषि समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जो बेहद भेदभावपूर्ण हैं. भारतीय किसान डब्ल्यूटीओ में कांग्रेस की ही गलतियों की सजा आज तक भुगत रहे हैं, जिसकी वजह से सरकार एक तय सीमा से अधिक एमएसपी नहीं दे पाती. केंद्र सरकार किसानों को सब्सिडी के तौर पर जो एमएसपी देती है उसे हर वर्ष उसकी जानकारी डब्ल्यूटीओ को देनी होती है.
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डब्ल्यूटीओ की स्थापना के साथ ही इसका कृषि समझौता भी 1 जनवरी 1995 को ही लागू हो गया था. भारत डब्ल्यूटीओ का संस्थापक सदस्य है. आरोप है कि इस एग्रीमेंट की वजह से ही आज ऐसे हालात हो गए हैं कि भारत अपने किसानों को थोड़ी सी भी सब्सिडी देता है तो कई विकसित देशों के पेट में दर्द हो जाता है. हालांकि, यह अलग बात है कि वो विकसित देश अपने किसानों को भारत से कई गुना अधिक सब्सिडी दे देते हैं. जब भारत ने एग्रीकल्चर एग्रीमेंट पा हस्ताक्षर किए थे तब यहां कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री पद पर बैठे हुए थे. कांग्रेस ने न जाने किस झांसे में आकर डब्ल्यूटीओ में सरकार के हाथ बांध दिए़, जिसकी वजह से आज भी भारतीय किसानों के साथ नाइंसाफी का सिलसिला जारी है.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड में सेंटर फॉर डब्ल्यूटीओ स्टडीज के प्रोफेसर सचिन कुमार शर्मा का कहना है कि भारत सरकार की कोशिश यही है कि डब्ल्यूटीओ का एग्रीकल्चर एग्रीमेंट बदला जाए. उसे किसानों का हितैषी बनाया जाए. किसानों की मांग भारत को डब्ल्यूटीओ के एग्रीकल्चर एग्रीमेंट से बाहर निकालने की है, लेकिन ऐसा संभव नहीं है. इसलिए सरकार इसे बदलवाने की कोशिश कर रही है. भारत सरकार अपने किसानों के समर्थन में डब्ल्यूटीओ की बैठकों में लगातार आवाज उठा रही है.
डब्ल्यूटीओ में शामिल विकसित देशों ने विकासशील देशों के प्रति भेदभावपूर्ण नीति बना रखी है. अमेरिका प्रति किसान सालाला 61286 यूएस डॉलर से ज्यादा की सब्सिडी देता है. वहीं भारत अपने किसानों को साल भर में सिर्फ 282 यूएस डॉलर ही सब्सिडी दे पाता है. इसके बावजूद डब्ल्यूटीओ भारत पर कृषि सब्सिडी कम करने और किसानों को एमएसपी न देने का दबाव बनाता रहता है. विकसित देशों का ऐसा मानना है कि यदि भारत अपने किसानों को ज्यादा सरकारी सपोर्ट यानी सब्सिडी देगा तो इसका असर वैश्विक कृषि कारोबार पर पड़ेगा. जिससे उनके हित प्रभावित होंगे.
दरअसल, विकसित देश चाहते हैं कि वो भारत से सस्ते कृषि उत्पाद लेते रहें. भारत ऐसी भेदभावपूर्ण नीतियों का विरोध करता रहा है लेकिन यह कड़वा सच है कि अब तक डब्ल्यूटीओ का एग्रीकल्चर एग्रीमेंट नहीं बदला जा सका है, जिसकी वजह से आज भी भारत के कृषि मंत्री को संसद में खड़े होकर एमएसपी पर उसकी शर्तों की बात करनी पड़ रही है.
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