
एमएसपी की लीगल गारंटी की मांग को लेकर भले ही साल भर से किसान आंदोलन चल रहा है, लेकिन मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले पूर्ण बजट में एमएसपी का नाम तक नहीं लिया है. गारंटी देने की बात तो बहुत दूर है. यही नहीं, किसानों के बीच सबसे लोकप्रिय स्कीम पीएम किसान सम्मान निधि की रकम बढ़ाने पर भी कोई बात नहीं की गई है, जबकि किसान लंबे समय से इस योजना के तहत मिलने वाली 6000 रुपये की रकम को डबल करने की मांग करते आ रहे हैं. ऐसे में कृषि बजट बढ़ने के बावजूद आंदोलनकारी किसान खुश नहीं हैं. हालांकि, खेती-किसानी के मोर्चे पर सरकार इस बजट के लिए तारीफों के पुल बांध रही है, लेकिन कड़वा सच यह है कि इस बजट में फसलों के दाम को सुनिश्चित करने की कोई बात कही गई है, जो किसानों की प्रमुख मांग है.
अभिमन्यु कोहाड़ शंभू और खनौरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में प्रमुख चेहरा हैं. 'किसान तक' से बातचीत में उन्होंने कहा कि किसानों की जो सबसे बड़ी मांग है वो एमएसपी गारंटी की, लेकिन सरकार ने इस पर कुछ भी नहीं कहा है. इससे सरकार की मंशा साफ हो गई है कि वो एमएसपी की गारंटी पर आगे नहीं बढ़ना चाहती. सरकार ने तूर, उड़द और मसूर पर विशेष ध्यान देने और छह साल के अंदर इन फसलों के मामले में आत्मनिर्भर होने की बात कही है. इसी तरह कपास की खेती में उत्पादकता बढ़ाने के लिए 5 वर्षीय मिशन की घोषणा की है, लेकिन ताज्जुब होता है कि यह सब कैसे होगा उसका कोई एक्शन प्लान नहीं है.
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कोहाड़ ने कहा कि वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में डायवर्सिफिकेशन का जिक्र किया है, लेकिन उसका भी कोई एक्शन प्लान नहीं है. सिर्फ डायवर्सिफिकेशन के नारे से काम नहीं चलेगा. किसानों को इससे होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई के लिए कोई योजना होनी चाहिए तभी डायवर्सिफिकेशन हो पाएगा.हमारे पॉलिसी मेकर्स को यह बात क्यों समझ नहीं आती कि जब तक सभी फसलों की एमएसपी गारंटी नहीं होगी तब तक क्रॉप डायवर्सिफिकेशन हो ही नहीं सकता.
एमएसपी गारंटी होगी तो उसके बाद अपने आप किसान डायवर्सिफिकेशन करने लगेगा. उसके बाद किसी के भाषणों की जरूरत नहीं होगी. बजट में किसानों के असली मुद्दों पर कोई बात नहीं की गई है. जो किसान मांग रहे हैं उसे आप दे नहीं रहे हैं और जो किसान नहीं मांग रहे हैं उसे उन पर थोप रहे हैं. इस तरह तो कृषि क्षेत्र और किसान आगे नहीं बढ़ेंगे.
जानेमाने कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा ने कहा कि 2014 में जब अरुण जेटली ने बजट पेश किया था तब उन्होंने सरकार की पांच प्राथमिकताएं बताई थीं. उसमें टॉप पर फामर्स इनकम थी. लेकिन, यह दुखद है कि आज भी किसानों की आय सबसे निचले पायदान पर है. वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने इस बजट में पहली बार स्वीकार किया है कि एग्रीकल्चर भी इंजिन ऑफ ग्रोथ है. इसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए कि वो कृषि को इतना महत्वपूर्ण मान रही हैं, लेकिन सच तो यह है कि एग्रीकल्चर सेक्टर इंजिन ऑफ ग्रोथ तब बनेगा जब किसानों की आय सुनिश्चित होगी. उसकी फसलों का गारंटिड दाम मिलेगा. किसानों को हाशिए पर रखकर एग्रीकल्चर को देश की इकोनॉमी का इंजिन आफ ग्रोथ नहीं बनाया जा सकता.
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार किसानों को फसलों के भाव न देकर कर्ज लेने पर मजबूर कर रही है. आज के इस बजट से ऐसा लगता है कि एमएसपी गारंटी कानून और C2+50 फार्मूले को लागू करने की मांग कर रहे किसानों को सिर्फ कर्ज की बढ़ी हुई लिमिट मिली है. किसानों इस बजट को सिरे से नकारते हैं. हालांकि, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि ये दूरदर्शी बजट है. इसमें हर वर्ग का ध्यान रखा गया है. इस बजट में कृषि विकास पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया है. किसान क्रेडिट कार्ड की लिमिट 3 से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने से किसानों को फायदा होगा.
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