पंजाब में बौना वायरस का असर देखा जा रहा है. इस वायरस को अंग्रेजी में सदर्न ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस यानी SRBSDV कहते हैं. पंजाब में इसे सबसे पहले 2022 में देखा गया था. उसके बाद इस वायरस ने इस साल फिर हमला बोला है. यह बैना वायरस धान के पौधों को छोटा कर देता है. जड़ें कमजोर कर देता है जिससे पौधे या तो सूख जाते हैं या फिर गिर जाते हैं. पंजाब के 8 जिलों में इस बौना वायरस का असर देखा जा रहा है.
इस वायरस ने न केवल किसानों को चिंता में डाला है बल्कि वैज्ञानिक और कृषि एक्सपर्ट भी परेशान हैं. सभी लोग मिलकर इस वायरस से निजात पाना चाहते हैं. इस वायरस की चपेट में आई फसलों के किसानों ने सरकार से अनुरोध किया है कि जल्द से जल्द गिरदावरी कराई जाए और फसल खराबे का मुआवजा दिया जाए.
बौना वायरस को फिजी वायरस की ही श्रेणी में रखते हैं और यह पहली बार दक्षिण चीन में पाया गया था. पंजाब में इस वायरस ने तीन साल पहले अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. उससे पहले किसानों को इस वायरस के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं थी. किसानों के लिए भी इस वायरस का अटैक नया था क्योंकि उन्हें अचानक धान के कुछ पौधे बौने नजर आए. बाद में वे पौधे सूख गए और गिर गए. इससे किसानों को भारी नुकसान देखा गया.
फिर इस वायरस पर गहन रिसर्च की गई तो पता चला कि इसके पीछे एक हॉपर जिम्मेदार है जिसका नाम वाइट ब्लैक प्लांट हॉपर यानी WBPH है. यह वायरस बहुत तेजी से इनफेक्शन फैलाता है और कम दिनों में कई पौधों को चपेट में ले लेता है. इस वायरस के निंफ यानी छोटे लार्वा बहुत तेजी से फैलते हैं और हवा के साथ दूर तक सफर तय कर लेते हैं. वे अपने साथ वायरस का पूरा बाजार लेकर चलते हैं. यही वजह है कि पहले किसी छोटे स्थान पर फैला इसका संक्रमण बाद में कई किलोमीटर का आकार ले लेता है.
इससे बचाव के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) के प्रधान कीट विज्ञानी डॉ. केएस सूरी ने किसानों को सलाह दी कि वे धान के पौधों को हल्के से झुकाकर और थपथपाकर साप्ताहिक खेत की जांच करें ताकि बौना वायरस के नवजात या वयस्क कीट बाहर निकल जाएं. ये कीट पानी की सतह पर तैरते या पौधे के आधार पर समूह बनाते देखे जा सकते हैं. इससे बचाव के लिए पीएयू ने कुछ कीटनाशकों का उपयोग करने का आग्रह किया है. इनमें पेक्सालॉन, उलाला, ओशीन/डोमिनेंट/टोकन, इमेजिन, ऑर्केस्ट्रा और चेस शामिल हैं.
वैज्ञानिकों ने अलग-अलग कीटनाशकों के लिए प्रति एकड़ आवश्यक खुराक या मात्रा और उनके प्रयोग की विधि, जैसे कि पौधों के आधार पर विशेष रूप से छिड़काव करना और अधिकतम प्रभाव के लिए फ्लैट-फैन या खोखले शंकु जैसे उचित नोजल का उपयोग करना, भी निर्धारित किया है. हालांकि, डॉ. सूरी ने कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग के प्रति आगाह किया और कहा कि इससे प्रतिरोध विकसित हो सकता है और पर्यावरण को नुकसान पहुंच सकता है.
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