Farmer Protest: आंदोलन पर किसान... क्‍यों इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल को रद्द करने की कर रहे हैं मांग 

Farmer Protest: आंदोलन पर किसान... क्‍यों इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल को रद्द करने की कर रहे हैं मांग 

इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2022 के बारे में जानकारी देते हुए इलेक्‍ट्रिसिटी इंपालाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के उपाध्‍यक्ष सुभाष लांबा कहते हैं कि ये विधेयक 8 अगस्‍त 2023 को सदन में रखा गया था, जो मौजूदा वक्‍त में संसद की स्‍थाई समिति के पास लंबित है.

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Farmer Protest: आंदोलन पर किसान... क्‍यों इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल को रद्द करने की कर रहे हैं मांग इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2022 को रद्द करने की मांग कर रहे किसान संगठन

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले देश का माहौल गरमाया हुआ है. किसान सड़कों पर हैं. आंदोलित किसान MSP गारंटी कानून बनाने समेत कई मांगों को लेकर 12 फरवरी से पंजाब-हरियाणा बाॅर्डर पर डटे हुए हैं. किसानों की इन मांगों पर बात करें तो इसमें किसान संगठनों की तरफ से इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2022 को रद्द करने की भी मांग की जा रही है.आइए इसी कड़ी में जानते हैं कि आखिर क्‍या है इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2022 और क्‍यों किसान संगठन इसे रद्द करने की मांग कर रहे हैं.

क्‍या है इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 

इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल को इलेक्‍ट्रिसिटी एक्‍ट 2003 का एक्‍सटेंशन कहा जा सकता है. जिसके तहत इसमें कई संशोधन की रूपरेखा तैयार की गई है.इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल के बारे में जानकारी देते हुए इलेक्‍ट्रिसिटी इंपालाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के उपाध्‍यक्ष सुभाष लांबा कहते हैं कि ये विधेयक 8 अगस्‍त 2023 को सदन में रखा गया था, जो मौजूदा वक्‍त में संसद की स्‍थाई समिति के पास लंबित है. वह इस विधेयक के प्रावधान के बारे में बताते हैं कि इसमें बिजली आपूर्ति के लिए प्राइवेट लाइसेंस देने का प्रावधान किया गया है,वह बताते हैं कि इस बिल के तहत निजी बिजली कंपनियां सरकारी बिजली कंंपनियों के समान्‍तर बिजली वितरण का काम कर सकेंगी, लेकिन उन्‍हें बिजली वितरण का कोई ढांचा नहीं बनाना होगा, वह सरकारी बिजली कंंपनियों के ढांचे का प्रयोग कर सकती हैं. 

इस बदलाव से चिंता क्‍या हैं

इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल के कानून बनने पर संभावित चिंताओं को लेकर इलेक्‍ट्रिसिटी इंपालाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के उपाध्‍यक्ष सुभाष लांबा कहते हैं कि इस विधेयक की सबसे बड़ी चिंता ये है कि निजी बिजली कंंपनियां जिसे चाहेंगी, उसे ही वह कनेक्‍शन दे सकती हैं, जिसका सीधा सा मतलब है कि जहां उन्‍हें फायदा होगा, वह वहीं बिजली की आपूर्ति करेंगी. ऐसे में सरकारी बिजली कंपनियों की मुश्‍किलें बढ़ेंगी. मतलब, जिनको निजी कंपनियां बिजली नहीं देंगी, उन्‍हें बिजली आपूर्ति करने की जिम्‍मेदारी सरकारी कंपनियों की होगी. ऐसे में कई डिफाल्‍टर, नुकसान वाली जगहों पर बिजली आपूर्ति की बाध्‍यता सरकारी बिजली कंपनियों की होगी. इससे सरकारी कंंपनियों को बंदी का संकट झेलना पड़ सकता है.उनका हाल बीएसएनएल की तरह हो जाएगा और सरकारी बिजली कंपनियां अगर बंंद हो जाएगी, तो निजी बिजली कंंपनियों को एकाधिकार होगा.

लांबा कहते हैं कि बिल के तहत नए प्रस्‍तावित कानूनों के तहत निजी बिजली कंपनियां मीटर में बदलाव कर सकती हैं, उसे प्रीपेड किया जा सकता है. सीधा सा मतलब है कि अगर प्रीपेड में पैसा खत्‍म हो जाएगा, तो बिजली बंंद हो जाएगी.टैरिफ पॉलिसी में बदलाव की बात हो रही है, सुबह और शाम के समय, बिजली के दाम तय करने का प्रावधान है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों की मुश्‍किलें बढ़ सकती हैं.

किसानों को क्‍या परेशानी

इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल से किसानों को क्‍या परेशानियां हो सकती हैं, इस सवाल केज जवाब में इलेक्‍ट्रिसिटी इंपालाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के उपाध्‍यक्ष सुभाष लांबा कहते हैं कि इस बिल में बिजली सब्‍सिडी को डीबीटी के रूप में देने का प्रावधान किया गया है और यहां पर ये जानना जरूरी है कि किसानों को कृषि कनेक्‍शन पर सब्‍सिडी मिलती है. लांबा समझाते हुए कहते हैं कि मौजूदा समय में बिजली कंपनियों के उपभोक्‍ता तीन वर्गो में बंंटे हुए हैं, जिसमें एक, जिनकी खपत कम है. दूसरा, किसान तो तीसरा, नाॅन डेमोस्‍टिक और व्‍यवसायिक उपभोक्‍ता हैं.

वह बताते हैं कि पहले दो वर्गों के उपभोक्‍ताओं को बिजली सब्‍सिडी का लाभ मिलता है और इस बिल में बिजली सब्‍सिडी का लाभ डीबीटी में देने की व्‍यवस्‍था की गई है, जो किसानों का खर्च बढ़ाएगी. वह इसे उदाहरण देते हुए समझाते हैं कि मौजूदा समय में कृषि कनेक्‍शन के तहत जो बिजली मिलती है, उससे ट्यूबवेल चलते हैं. जिसका सब्‍सिडी के बाद रेट देश के अलग अलग राज्‍यों में फ्री से एक रुपये यूनिट तक है. अगर ये बिल कानून बन जाता है और डायरेक्‍ट सब्‍सिडी खत्‍म हो जाएगी.

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इससे किसानों को होने वाले नुकसान को समझाते हुए कहते हैं कि अगर सिंचाई के लिए किसान 7.5 HP की एक मोटर खेत में चलानी है तो मान लेते हैं कि उसे 6 घंटे चलाना होगा. इससे कुल 34 यूनिट बिजली की खपत होगी. अगर डायरेक्‍ट सब्‍सिडी खत्‍म हो जाती है तो 7.45 रुपये प्रति यूनिट का खर्च बिजली कंपनियों को आएगा है और जैसा की कहा जा रहा है कि निजी कंपनियों को 16 फीसदी लाभ दिया जाएगा तो ये खर्च 10 रुपये प्रति यूनिट तक हो जाएगा. इस हिसाब से एक दिन का बिल 340 रुपये होगा और एक सीजन में अगर 20 दिन भी मोटर भी चलेगी तो 6800 रुपये बिजली का बिल आएगा. इससे  किसान इनपुट कास्‍ट ही बढ़ जाएगी और डीबीटी में मिलने वाली सब्‍सिडी का हाल गैस सिलेंडर वाली सब्‍सिडी की तरह होगा तो किसानों को बड़ा नुकसान होगा.

वह कहते हैं कि किसानों को कृषि कनेक्‍शन पर बिजली सब्‍सिडी का लाभ तब दिया गया था, जब ये महसूस किया गया कि किसान फसलों को अपने लिए नहीं देश के लिए उगाते हैं. वहीं इस मामले में किसान नेता पूर्व वीएम सिंह कहते हैं कि जब 13 महीने तक पूर्व में किसान आंदोलन चला था, उस वक्‍त भी इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल को रद्द करने की मांग बनी थी, जिस पर सरकार ने सहमति जताई थी, लेकिन उसके बाद भी ये बिल सदन में रखा गया है. वह कहते हैं कि ये बिल किसानों की इनपुट कास्‍ट बढ़ाएगा. किसान पहले से ही बढ़ते खर्च और फसलों के वाजिब दाम नहीं मिलने की वजह से परेशान हैं. पहले जब, किसानाें को कृषि कनेक्‍शन पर सब्‍सिडी दी गई थी, उस वक्‍त ये विचार था कि किसान अनाज का उत्‍पादन देश की बड़ी आबादी के लिए करता है. ऐसे में किसानों की लागत कम करने पर जोर दिया गया था.

 

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