शंंभू बॉर्डर से लौटकर: 23 फरवरी शुक्रवार सुबह 9 बजे दिल्ली-एनसीआर के गाजियाबाद से अंबाला के शंभू बॉर्डर का सफर शुरू हुआ. इस सफर का मकसद 13 फरवरी से शुरु होकर और मौजूदा समय में पंजाब-हरियाणा बॉर्डरों पर थम चुके किसान आंदोलन की 'आत्मा' को समझना था. इस सफर में कैब ड्राइवर साहिल और युवा पत्रकार चंद्र प्रकाश (सीपी) हमराह रहे.
किसान आंदोलन कवर करने का मौका मिलते ही ये तय किया गया था कि गाजियाबाद से सीधे शंंभू बॉर्डर पर पहुंचा जाए. इसके लिए छावनी में तब्दील हुए दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर स्थित सिंघु बॉर्डर को नजरअंंदाज करते हुए ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे से सफर में आगे बढ़ने का फैसला लिया गया, इस फैसले के पीछे भी किसान आंदोलन के पुराने अनुभव थे.
नवंबर 2020 से दिसंबर 2021 तक चले किसान आंदोलन में जब सिंघु बॉर्डर पर 13 महीनों तक मोर्चा डाला था, तो उस वक्त ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे आम जन के लिए लाइफ लाइन साबित हुआ था, फैसले के पीछे अनुभव स्मृतियों की खिड़की से निकलकर कई नई चर्चाओं का आकार लेते, उससे पहले ही अपनी गाड़ी नेशनल हाईवे 24 पर सरपट भागने लगी थी.
हाईवे के किनारे भव्य और सभ्य शहर की साकार कल्पना देश की तरक्की की ईबारत कह रही थी. इस बीच इन भव्य और सभ्य माने जा रही बहुमंजिला बिल्डिंंगों के बीच खेतों का दिखाई देना शुरू हो गया था, जो बता रहा था कि ये शहर अपने कद को विस्तार देने की कोशिश कर रहा है और इस कोशिश में शहर की खुराक भी खेती (कृषि योग्य जमीन) बन रही है.
शहरों की खिड़की से खेताें के झांकने के इस क्रम में ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे की शुरुआत हो गई और इसमें जैसे-जैसे अपनी गाड़ी आगे बढ़ती रही तो खेतों में लगी पीली सरसों और हरि गेहूं की फसल, आलू की खोदाई करते हुए किसान और गाड़ी की खिड़की से अंदर आती हवा प्रकृति पर फाल्गुन के रंग चढ़ने-बढ़ने की तरफ इशारा कर रहे थे. इस पूरे मनोभाव में अपनी गाड़ी कब ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे निकलकर सोनीपत पहुंच गई पता ही नहीं चला.
सोनीपत से अंबाला के लिए निकली अपनी गाड़ी ग्रैंड ट्रंक रोड पर फर्राटे भर रही थी, ये सफर पानीपत पहुंच चुका था. इस बीच चटक धूप में खेतों में लगे गेहूं, हाइवे किनारे बने लक्जरी ढाबे, बेहतरीन डिजाइन वाले घर हरियाणा की खुशहाली और एग्री 'कल्चर' की गवाही दे रहे थे.
इस सफर में अब तक ऐसा कहीं भी नहीं लगा कि किसान आंदोलन की वजह से हरियाणा अलर्ट की स्थिति में है. इस बीच मोबाइल के व्हाट्स एप पर लगातार मैसेज गिर रहे थे, जिसमें किसान आंदोलन के बीच हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की तरफ से विधानसभा में की गई घोषणाएं और दिए गए बयान अपनी तरफ ध्यान खींंचते हैं. इसमें वह खुद को किसान बताते हुए किसानों का दर्द समझने वाला मुख्यमंत्री बता रहे हैं और डिफाल्टर किसानों का ब्याज और पैनेल्टी माफ करने की बात कर रहे हैं, इस बीच सड़कों में लगे उनके होर्डिग्स भी अपनी तरफ ध्यान खींंच रहे थे, जिसमें खट्टर सरकार की योजनाओं का जिक्र...'जो ठाना वह करके दिखाया' के नारे के साथ किया गया है.
वहीं इस सफर में सड़क किनारे लगे कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा और शैलजा कुमारी के होर्डिंग्स भी दिखाई दे रहे थे. इन होर्डिंग्स में दीपेंद्र हुड्डा के समर्थक उन्हें CM बनाने की हुंकार भरते दिखे तो वहीं शैलजा कुमारी के समर्थक उन्हें CM का दावेदार नहीं बताते हुए हकदार बता रहे थे. ये बता रहा है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव की तैयारियां सड़कों पर तेज हो गई है. इन तमाम घटनाक्रमों को आंखों में कैद करते हुए हमारा सफर करनाल पहुंच चुका था और अब तक के सफर में ऐसा बिलकुल भी नहीं लगा कि किसान आंदोलन की वजह से हरियाणा अलर्ट पर है और सिंघु बॉर्डर को छावनी में तब्दील किया गया था.
हरियाणा में किसान आंदोलन की तासीर सबसे अधिक गर्म रही. भले ही इस सफर में अब तक हमें हरियाणा की फिजां पर किसान आंदोलन का असर नहीं दिखाई दिया, लेकिन आंदोलन शुरू होने से पहले ही हरियाणा सरकार ने जिस तरीके से गांव-गांव मुनादी करके किसानों को आंदोलन में ना जाने की चेतावनी दी थी, उससे समझा जा सकता है कि किसान आंदोलन को लेकर हरियाणा सरकार का मूड क्या रहा.
इस सफर में अब करनाल स्थित द ग्रेट खली ढाबा भी आ चुका था, लेकिन स्थितियां सब सामान्य रही और हमारी गाड़ी हाईवे पर फर्राटा भरती रही, लेकिन ढाबे से कुरुक्षेत्र की तरफ 2 से 3 किमी की दूरी पर चलने के बाद हरियाणा सरकार के अलर्ट का पता चलता है, जिसमें अचानक फोन से इंटरनेट गायब हो गया. फोन पर इंटरनेट की खोज के लिए हुए प्रयासों सरकार के ताजा आदेश तक पहुंचा दिया, जिसमें हिंदी और अंग्रेजी में साफ-साफ लिखा हुआ था कि सरकारी आदेश से इंटरनेट बंद किया गया है.
इंटरनेट बंदी के बाद गूगल बाबा ने रास्ता बताना बंंद कर दिया और इसी अंंदाज में हम कुरुक्षेत्र के शाहबाद से आगे निकल गए. पास में ही चढूनी गांव का बोर्ड दिखा. जो शायद बता रहा है कि हरियाणा के अग्रेसिव किसान नेता गुरुनाम सिंंह चढूनी का गांव ये ही है. थोड़ा से आगे चलने पर पुलिस ने हाइवे से ट्रैफिक डायवर्ट किया हुआ है, जो सिंघु बॉर्डर के बाद हरियाणा पुलिस का पहला एक्शन नजर आता है.
जानकारी मिलती है कि अंबाला यहां से तकरीबन 35 से 40 किमी दूर है.थोड़ी दूरी तय करने के बाद हमें शाहबाद मरकंडा पर पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की पहली बैरिकैंडिंग नजर आती है. यहां पर प्रशासन ने मारकंडेश्वर महादेव मंदिर के पास बने पुलिस को कंक्रीट के मसाले से सील किया है. साथ ही इस तरफ फायर बिग्रेड की 5 गाड़ियां नजर आती हैं.बात करने पर पता चलता है कि बीएसएफ की एक टुकडी का भी इन दिनों यहां पर ठिकाना है. बेशक नीचे पुल पर पहरा है, लेकिन उससे लगती दूसरी सड़क खुली है.
वहीं पुल के दूसरी तरफ जाने पर फिर से ट्रैफिक को पंचकूला-चंडीगढ़ की तरफ डायवर्ट किया जा रहा है और अंबाला जाने वाले सड़क पर प्रशासन के हैवी इंंतजाम नजर आ रहे हैं, जिसमें पुलिस के साथ ही बीएसएफ की तैनाती है तो वहीं यहां पर कंटीली तारों के साथ ही बैरिकेड भी हैं, लेकिन यहां की इंतजामों को हम कैमरे में कैद नहीं कर सके, लेकिन जिस तरह से मेन सड़क पर पुलिस का पहरा है वो मन में कई सवाल खड़ा करता है.
शाहबाद मरकंडी से अंबाला की दूरी तकरीबन 20 से 30 किमी है, लेकिन शाहबाद मरकंडा से अंंबाला सीधा पहुंचना बेहद ही चुनौतीपूर्ण साबित हुआ. असल में यहां से रूट काे चंंडीगढ़ के लिए डायवर्ट किया गया है. हमने तय किया गया कि हम गांवों से होते हुए अंबाला पहुंचेंगे और शंभू बॉर्डर यानी अंंबाला से लगते गांवाें में किसान आंदोलन की तासीर को एहसास करेंगे.
ऐसे में हमने अपनी गाड़ी गांवों की तरफ उतार ली. किसी स्थानीय से रास्ता पूछने पर लखनौर साहिब, मथेरी जट्टा, माजरी से अंबाला तक का रास्ता समझा दिया और हम भी इन्हीं गांवों का नाम पूछते-पूछते आगे बढ़ने लगे.
इन गांवों में पहुंचने पर पता चला कि रविदास जयंति भी आज ही है. क्योंकि कुछ गांवों में रविदास नगर कीर्तन चला रहा था. तो वहीं खेतों पर कुछ जगहों पर पीली सरसों दिखाई दे रही थी तो कुछ जगहों पर सरसों काट कर खेत पर ही सूखती दिख रही थी. इस दौरान हमने कुछ गांंव वालों से शंभू बॉर्डर का रास्ता पूछते हुए बात करने की कोशिश की तो उन्होंने शंभू बॉडर्र का रास्ता तो बता दिया है, लेकिन किसान आंदोलन पर कुछ भी बात करने से परहेज किया और इसी अंदाज में हम अंबाला शहर पहुंच गए. यहां हमने पुलिस वालों से शंभू बॉर्डर तक जाने का रास्ता पूछा तो पहले उन्होंने चंडीगढ़ होते हुए जाने को कहा, फिर आंदोलन कवर करने का हवाला जब उन्हें दिया तो उन्होंने कालिका चौक पर पहुंचकर गांव के रास्ते शंंभू बॉर्डर तक जाने काे कहा.
अंबाला के कालिका चौक पर भी ट्रैफिक को डायवर्ट किया था और इंटरनेट बंदी जारी है. ऐसे में हमने यहां पहुंचने पर किसी स्थानीय से शंभू बॉर्डर तक का रास्ता पूछा तो पता चला कि यहां से शंभू बॉर्डर की दूरी 5 से 8 किमी तक है, लेकिन आंदोलन की वजह से रास्ता बंद है. इस बंदी से परेशान स्थानीय निवासी बलजीत सिंह रास्ता पूछने पर कहते हैं कि शंभू बॉर्डर पर हवा भी बंद है.
ना पंजाब की हवा यहां आ रही है ना हरियाणा की हवा पंजाब जा रही है. बलजीत सिंह आगे कहते हैं कि इस बंदी की वजह से सब काम ठप है. इसके बाद वह रास्ता बताते हैं और हमारी कैब उसी रास्ते पर चल देती है. जिसमें लोहगढ़ और सरसैनी होते हुए हम मोहाली में प्रवेश करते हैं.
पता चलता हैं कि यहां से शंभू बॉर्डर की दूरी तकरीबन 15 से 20 किमी के पास है, लेकिन पंजाब की हवा में खुलापन नजर आता है. गांवों की दहलीज पर बैठे बुर्जुग रास्ता बताने के लिए आगे आते हैं और सबसे विशेष ये है कि कालिका चौक से 5 किमी आगे बढ़ने पर ही हमारे फोन पर कई व्हाट्स एप मैसेज गिरने लगते हैं, जो संकेत दे रहे हैं कि इंटरनेट सेवा यहां पर सुचारू है. इसमें सबसे विशेष ये हैं कि इंटरनेट की ये कनेक्टिविटी शंभू बॉर्डर पर भी है. जहां पहुंचने पर हम किसान तक के लिए एक लाइव करते हैं, लेकिन कालिका चौक से शंभू बॉर्डर तक का सफर जो 5 से 8 किमी तक है, उसे तय करने के लिए हमें 12 से 15 किमी तक का सफर तय करना पड़ा.
शंभू बॉर्डर पर पहुंचने के हम बहुत करीब है. मोहाली से शंभू बॉर्डर की दूरी कम होती जा रही है, इसके साथ ही मोबाइल पर मेरी निगाहे बनी हुई हैं और एक अलग से खुशी है. खुशी इस बात की है कि मोबाइल पर इंटरनेट बरकरार है. शंंभू बॉर्डरों पर किसानों का जमावड़ा दूर से ही दिखाई देने लगा है.
इसके साथ ही पंजाब पुलिस की मौजदूगी भी बॉर्डर पर दिखाई दे रही है. हमारी गाड़ी अब मोहाली से शंभू बॉर्डर को कनेक्ट करने वाली सड़क के पास पहुंच गई है और इसके साथ ही शाम की दस्तक होने लगी है. MSP गारंटी की मांग को लेकर शंंभू बॉर्डर टोल पर जमे किसानों का ट्रैक्टरों पर बना आशियाना जगमगाने लगा है. तो इसके साथ ही कई जगहों पर ट्रैक्टरों पर भंडारे का आयोजन हो रहा है.
शंभू बॉर्डर पर पहुंचते ही हमें पता चलता है कि युवा किसान शुभकरण सिंंह की मौत को लेकर आंदोलन का माहौल बेहद ही गमहीन है. जानकारी मिलती है कि थोड़ी देर पहले ही शंभू बॉर्डर टोल पर शुभकरण सिंह की मौत पर संवदेना जताते हुए किसानों ने कैंडल मार्च निकाला है.
हम हाइवे से लगते सर्विस रोड पर अपनी टैक्सी पार्क करके आंदोलन कर रहे किसानों के पास पहुंचते हैं, जो मेन रोड पर हैं. इस रोड पर किसानों का जमावड़ा है, लेकिन ये इस जमावड़े को देखकर लगता है कि इसमें कई गुट हैं.
मसलन, किसान छोटे-छोटे गुटों पर नजर आ रहे हैं. संभवत किसानों के ये गुट गांवाें या किसान संंगठनों के आधार पर बने हैं. इसके बाद हम बॉर्डर पर पहुंचते हैं. इसे सिर्फ बॉर्डर कहना इसलिए बेहतर है क्योंकि बीते कुछ दिनाें से यह जगह विवाद का विषय बनी हुई है. एक तरफ अर्धसैनिक बलों की तैनाती है, तो दूसरी तरफ किसान हैं. हम बॉर्डर पर पहुंचकर लाइव (नीचे देख सकते हैं)की तैयारी करते हैं.
रास्ते में किसानों का जेसीबी वाला बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर दिखता है, आगे पहुंंचकर मैं किसान तक पर लाइव कार्यक्रम में शामिल देता हूं. इसके बाद हम वापसी करते हैं तो कुछ लोग हमसे प्रसादा लेने के लिए कहते हैं. हम करके आगे बढ़ते हैं. आगे बढ़ने पर फिर से प्रसादा ग्रहण करने का अनुरोध होता है.
इस बार ये अनुरोध एक ऑफर के साथ है. प्रसादे का अनुरोध करने वाला युवक कहता है कि मटर पनीर बना है. इसके बाद हम वहां पर रूक जाते हैं. लंगर बांट रहे युवाओं से बात करने पर पता चलता है कि लंगर बनाने में ग्रामीण महिलाएं लगी हुई हैं, जो गांव में दिन से लंगर बनाने लगती हैं.
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