
बीते एक साल में मक्खन ने दो बड़े रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं. एक, यह पहला मौका था जब बाजारों में ढूंढे से महंगा मक्खन भी नहीं मिल रहा था. दूसरा, साल 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में चार गुना से भी ज्यादा मक्खन एक्सपोर्ट किया गया था. आंकड़े बताते हैं कि दिसंबर से मार्च तक रिकॉर्ड मक्खन का एक्सेपोर्ट किया गया. जानकारों की मानें तो कई डेयरियों ने अपने इमरजेंसी स्टॉक के मक्खन को भी एक्सपोर्ट कर दिया. मक्खन एक्सपोर्ट करने का यह सिलसिला खासतौर पर सितंबर 2021 से शुरू होकर अगस्त 2022 तक चला.
कॉमर्स इंडस्ट्री, एपीडा, डीजीसीआई (कोलकाता) के आंकड़े और मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2021-22 में रिकॉर्ड 19954 टन मक्खन एक्सपोर्ट किया गया. साल 2020-21 के मुकाबले यह करीब चार गुना था. इस साल सिर्फ 4449 टन मक्खन एक्सपोर्ट किया गया. डेयरी जानकार बताते हैं कि साल के जिन चार महीनों में डेयरी कंपनियां अपने इमरजेंसी सिस्टम में मक्खन का स्टॉक करती हैं, उस वक्त सबसे ज्यादा मक्खन एक्सपोर्ट किया गया.
कॉमर्स इंडस्ट्री के आंकड़े बताते हैं कि सबसे ज्यादा मक्खन का एक्सपोर्ट दिसंबर 2021 से मार्च 2022 तक हुआ. यह चार वो महीने थे जब एक साल पहले के मुकाबले 10 से 20 गुना तक मक्खन एक्सपोर्ट किया जा रहा था. इन चार महीनों में करीब 500 करोड़ रुपये के मक्खन का एक्सपोर्ट किया गया. जबकि एक साल पहले इन्हीं चार महीनों में 46 करोड़ रुपये का मक्खन एक्सपोर्ट किया गया था. इस आंकड़े के मुकाबले साल 2022 के मई में 67 करोड़ तो जून में 48 करोड़ रुपये के मक्खन का एक्सपोर्ट हो गया था. साल 2022 के सितंबर में सबसे कम 10 करोड़ रुपये का मक्खन एक्सपोर्ट किया गया था.
एपीडा के आंकड़े बताते हैं कि दो साल के मुकाबले 2021-22 में डेयरी प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट कई गुना बढ़ गया है. इस मामले में भारत से बड़ी मात्रा में डेयरी प्रोडक्ट खरीदने वालों में 10 प्रमुख देश हैं. यह वो देश हैं जिन्होंने इस साल कई गुना ज्यादा दूध, घी और मक्खन के साथ दूसरे प्रोडक्ट खरीदे हैं. इसमे पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर बांग्लादेश (684 करोड़), यूएई (438 करोड़) और बहरीन (214 करोड़ रुपये) हैं. जबकि साल 2019-20 में बांग्लादेश ने 8 करोड़ के डेयरी प्रोडक्ट, यूएई ने 264 करोड़ और बहरीन ने 25 करोड़ रुपये के डेयरी प्रोडक्ट भारत से खरीदे थे.
वीटा डेयरी, हरियाणा के सीईओ चरन सिंह ने बताया कि इमरजेंसी सिस्टम हर डेयरी में काम करता है. इस सिस्टम के तहत डेयरी में डिमांड से ज्यादा आने वाले दूध को जमा किया जाता है. जमा किए गए दूध का मक्खन और मिल्क पाउडर बनाया जाता है. डेयरियों में स्टोरेज क्वालिटी और कैपेसिटी अच्छी होने के चलते मक्खन और मिल्क पाउडर 18 महीने तक चल जाता है. अब तो इतने अच्छे-अच्छे चिलर प्लांट आ रहे हैं कि मक्खन पर एक मक्खी बराबर भी दाग नहीं आता है.
सीईओ चरन सिंह बताते हैं कि जब बाजार में दूध की डिमांड ज्यादा हो जाती है या किसान-पशु पालकों की ओर से दूध कम आने लगता है तो ऐसे वक्त में इमरजेंसी सिस्टम से शहरों को दूध की सप्लाई दी जाती है. जैसे गर्मियों में अक्सर होता है कि पशु दूध कम देते हैं, लेकिन डिमांड बराबर बनी रहती है. इस डिमांड को भी इमरजेंसी सिस्टम से ही पूरा किया जाता है.
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