कुरकुरे-चिप्स बनाने वाली हो या फिर फ्रूट जूस और जैम बनाने वाली, हर एक मशीन को बाजार में बेचने से पहले सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPHET) से सर्टिफिकेट लेना होता है. सर्टिफिकेट मिलने के बाद ही कोई भी मशीन बनाने वाली कंपनी उस मशीन को बाजार में बेच सकती है. लेकिन मशीन को सर्टिफिकेट देने से पहले सीफेट खुद कई स्तर पर मशीन का परीक्षण करता है. उसके बाद ही मशीन को सर्टिफिकेट दिया जाता है. यह संस्थान पंजाब के लुधियाना में है. इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरर रिसर्च का यह संस्थान है.
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोंलॉजी, लुधियाना पंजाब और हिसार, हरियाणा का एग्रीकल्चर मशीनरी ट्रेनिंग एंड टेस्टिंग इंस्टीट्यूट देश के दो ऐसे संस्थान हैं जो खेती और फूड आइटम से जुड़ी मशीनों को बाजार में बेचने का सर्टिफिकेट देते हैं.
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सीफेट के डायरेक्टर डॉ. नचिकेता ने 'किसान तक' को बताया कि हमारा संस्थान खुद भी फूड आइटम से जुड़ी मशीनें बनाता है. मशीन बनाने के बाद हम उसकी टेक्नोलॉजी बाजार में 'नो प्रोफिट और नो लॉस' पर बेच पर बेच देते हैं. स्टार्टअप कंपनी या फिर दूसरे लोग उस टेक्नोलॉजी से मशीन बनाकर अपने कारोबार को आगे बढ़ाते हैं.
स्टार्टअप और छोटे स्तर पर कारोबार करने के लिए हमने छोटी-छोटी दाल और राइस मिल के लिए मशीन बनाई हैं. हमारे पास कई छोटी-छोटी ऐसी मशीन हैं कि अगर एक किसान किसी एक ब्लॉक में दो मशीन लगा ले तो साल के पांच-छह लाख रुपये कमा सकता है. साथ ही दूसरे लोगों को भी रोजगार दे सकता है.
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सीफेट के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. अरमान ने बताया कि अभी हमने एक ऐसी मशीन बनाई है जो मसाला पीसते वक्त हीट नहीं होती है. हीट न होने से एक तो मसाला जलता नहीं है और दूसरे मसाले की प्राकृतिक खुशबू बनी रहती है. वहीं मूंगफली से दूध निकालकर दही, पनीर और क्रीम बनाई जा रही है. नदी-तालाब या फिर समुंद्र से पकड़ी गई मछली को जिंदा बाजार तक लाने के लिए सीफेट ने कई छोटी-छोटी मशीनों के साथ एक कार्ट बनाई है. साफ-सफाई के साथ मछलियों की कटिंग करने के लिए भी एक मशीन बनाई गई है.
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